धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से धन संबंधित उपायों की सम्पूर्ण व्याख्या (भाग २)
कल की पोस्ट में आपने उपाय सम्बन्धित नियम निर्देश जाने थे आज हम आपको बताएंगे उपाय कब आरम्भ करने चाहिये।
उपाय कब आरम्भ करें?
जातको के समक्ष अक्सर किसी उपाय को करने से पहले यह समस्या आती है। इस विषय में संक्षिप्त रूप से बता रहा हूँ।
आप कोई भी उपाय किसी भी शुक्ल पक्ष में उस उपाय के प्रतिनिधि दिन से आरम्भ कर सकते है उदाहरण के लिये आपको धन प्राप्ति के लिये लक्ष्मी जी से संबंधित कोई उपाय करना है तो आप किसी भी शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से आरम्भ कर सकते है। इसके अतिरिक्त यदि आप शीघ्र लाभ चाहते है तो अपनी कुंडली मे चंद्र राशि अनुसार उस दिन चंद्र चौथा, अथवा एवं बारहवां ना हो इसका ध्यान रखें इसके अतिरिक्त रिक्ता अर्थात चतुर्थी, नवमी अथवा चतुर्दशी ना हो, घर में सूतक ना हो आचार्य वारहमीर के अनुसार बताये समय पर कार्य करने पर सफलता की संभावना शत प्रतिशत रहती है। यह निम्न लिखित है।
१. प्रथमा (प्रतिपदा/पढ़वा) स्तंभन प्रयोग के लिये।
२. द्वितीया (दूज/दोज) उच्चाटन प्रयोग।
३. तृतीया (तीज) आकर्षण।
४.चतुर्थी (चौथ) स्तंभन प्रयोग।
५.पंचमी मारण प्रयोग अर्थात शत्रु को कष्ट देने वाले प्रयोग।
६.षष्ठी (छठ) उच्चाटन प्रयोग।
७.सप्तमी वशीकरण प्रयोग।
८.अष्टमी धन एवं सम्मोहन प्रयोग।
९. नवमी सम्मोहन एवं धन प्रयोग।
१०.दशमी सौम्य प्रयोग (इस तिथि पर यदि गुरुवार अथवा पुष्य नक्षत्र हो तो कुछ भी ना करें।
११.एकादशी मारण अर्थात शत्रु को कष्ट देने वाले प्रयोग।
१२.द्वादशी मुख स्तंभन एवं मारण प्रयोग।
१३.त्रयोदशी आकर्षण व वशीकरण प्रयोग।
१४.चतुर्दशी स्तंभन प्रयोग।
१५. पूर्णिमा मारण एवं शत्रु नाशक प्रयोग।
३०. अमावस्या कोई भी सिद्धि के प्रयोग यदि इस तिथि पर मंगलवार हो तो कोई महात्त्वपूर्ण सिद्धि करें सिद्धि जल्दी होती है।
पुष्य नक्षत्र
पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रों का राजा कहा जाता है २७ नक्षत्रों में एक यही ऐसा अकेला नक्षत्र है जिसमे कुछ विशेष कार्य सिद्ध किया जा सकता है। नीचे पढ़े वार अनुसार पुष्य नक्षत्र के फल।
रविपुष्य रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र पड़ने पर रविपुष्य के नाम से जाना जाता है। जिसमे की विशेष रत्न धारण कोई भी विशेष कार्य सिद्धि अथवा स्वर्ण या वाहन खरीदा जा सकता है।
सोमपुष्य सोमवार को पुष्य नक्षत्र होने पर सोमपुष्य के नाम से जाना जाता है।इस योग में कोई भी प्रयोग करने पर व्यवधान नही आते पूर्ण सफलता मिलती है।
भौमपुष्य मंगल के दिन पड़ने वाला पुष्य भौमपुष्य के नाम से जाना जाता है। इसयोग में वशीकरण संबंधित प्रयोग सफल होते है।
बुद्धपुष्य बुधवार को पढ़ने वाला पुष्य योग होता है। यह योग केवल सट्टा, शेयर अथवा म्युचुअल फंड का काम करते है इस योग में बताये गए कार्य करने पर लाभ अवश्य होता है।
गुरुपुष्य गुरुवार के दिन पड़ने वाले पुष्य योग को कहा जाता है। पुष्य संबंधित सभी योगों ने यह सबसे बलवान माना जाता है। इस योग में वाहन, स्वर्ण एवं अन्य महत्त्वपूर्ण सामग्री का खरीदना शुभ माना जाता है। इस योग जो सामग्री खरीदी जाती है वह चिरस्थाई होती है तथा आगे और अधिक सामग्री खरीदने का अवसर मिलता है। परन्तु इस योग में विवाह नही किया जाता। भगवान राम एवं पांडवों ने अपना राज्य गुरुपुष्य योग में ही वापस प्राप्त किया था।
शुक्रपुष्य शुक्रवार के दिन पुष्य नक्षत्र पड़ने पर माना जाता है। प्रेम संबंधित कार्यो में सफलता के लिये यह योग उत्तम है। यह योग प्रेम कार्यो में उत्तम होने पर भी इसमे विवाह नही कराया जाता क्योकि इस योग का एक नाम चांडाल योग भी है।
शनिपुष्य शनिवार के दिन पुष्य नक्षत्र पड़ने पर माना जाता है। किसी भी प्रकार के तांत्रिक कार्य इस योग में सफल होते है।
उपायों से जुड़ी आचार संहिता
श्रीमद्भगवद्गीता में प्रभु ने स्पष्ट कहा है जो मनुष्य शास्त्रोक्त विधि को छोड़ मनमाना आचरण करता है वह न सिद्धि को, न सुख को और न ही परमगति को प्राप्त होता है। अतः तेरे लिये कर्तव्य-अकर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है। ऐसा जानकर इस लोक में शास्त्रविधि से नियत कर्तव्य कर्म करने चाहिये।
आपको कुछ सरल नियम बताए रहा हु जिन्हें आप जीवन मे उतार कर अवश्य लाभान्वित होंगे।
१. अस्सी वर्ष का वृद्ध, सोलह वर्ष से कम आयु का बालक, स्त्री एवं बालक सैदव ही आधे प्रायश्चित योग्य होते है। पांच वर्ष से अधिक लेकिन ग्यारह वर्ष से कम के बालक द्वारा किया गया अपराध का प्रायश्चित उसके माता पिता को करना चाहिये। उपरोक्त वर्ग द्वारा कभी आपकी कोई हानि हो जाय तो इनपर क्रोध नही करना चाहिये नही कभी इनका अपमान ही करें।
२ जिन पर कभी झूठा आरोप लगाया जाता है उस समय उसके नेत्रों से जो आंसू निकलते है वह आरोप लगाने वाले के पुत्र पशुओ का नाश कर देते है इसलिये जब तक सत्य का पता ना लगे किसी पर आरोप ना लगाए।
३ नौ बाते अत्यंत गोपनीय है इनको कभी भी प्रकट नही करना चाहिये। आयु, धन, परिवार का कोई भेद, मंत्र, मैथुन, औषधि, तप, दान एवं अपमान इनको चर्चा में लाने पर हानि के सिवा कुछ नही मिलता।
४ यदि किसी मरणासन्न व्यक्ति के प्राण नही निकल रहे है तो उसके हाथ से नमक का दान करना चाहिये आपका यह कार्य मृत्यु प्राप्त करने वाले के कष्टों में कमी लाता है।
५ मुझे कुछ दे दीजिये यह शब्द आपके मुख से निकलते ही बुद्धि, लज्जा, श्री, एवं यश, शांति आदि आपके शरीर के ये पांच देवता तुरंत आपके शरीर से निकल कर चल देते है कभी किसी से कुछ मांगना नही चाहिये कुछ लोगो की मांगने की आदत बन जाती है इससे आत्मसम्मान तो जाता ही है साथ मे उन्नति में भी बाधाये आने लगती है।