स्वास्थ्य डेस्क। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से मेंहदी के स्वास्थ्यवर्धक गुण
मेंहदी के हिना,, नखरंजनी,, मेंदी आदि अन्य नाम प्रचलित हैं। मेंहदी सौभाग्य एवं सौंदर्यकारक मंगल प्रतीक के रूप में पुरातनकाल से उपयोगी रही है। इसका पौधा ५-६ फीट ऊँचा होता है। इसके फल छोटे छोटे गोल होते हैं। इसके पत्तों को छाया मे सुखाकर चूर्ण बनाया जाता है जो बाजार में उपलब्ध होता है।
गुण – दोष
मेंहदी एक धातुपरिवर्तक रसायन है। यह रक्तशोधक,, घाव भरने वाला,, दाह नाशक तथा स्वेत कुष्ट मे लाभप्रद है। इसके फूल हृदय तथा मज्जा तंतुओं को बल देने वाले होते हैं। बीज ज्वर नाशक तथा मानसिक रोगों मे लाभप्रद होते हैं। बीज मसरोधक होने से अतिसार दस्त मे लाभप्रद होते हैं। यकृत की वृद्धि में मेंहदी की छाल का प्रयोग किया जाता है।
घरेलू उपयोग
पथरी एवं गुरदे के रोग में ५० ग्राम मेंहदी के पत्तों को पीसकर आधा लीटर पानी में उबालें। जब आधा शेष रहे तब छानकर गुनगुना होने पर रोगी को पिलाएं। यह प्रयोग निराहार प्रात: नित्य करें। इससे गुरदे के रोग भी ठीक होते हैं। पथरी के रोगी को पर्याप्त पानी पीना चाहिए तथा खीरा, खरबूजा,, तरबूज,, संतरा,, मौसमी,, नीबू पानी इत्यादि का भरपूर प्रयोग करने से पथरी नष्ट होती है।
मिरगी में २० ग्राम गाय के दूध के साथ मेंहदी के ताजे पत्तों का २० ग्राम रस मिलाकर लेने से लाभ होता है।
मानसिक असंतुलन में मेंहदी के पत्तों का काढ़ा बनाकर नित्य पिलाने से मस्तिष्क को बल मिलता है। मानसिक संतुलन सधता है। पानी में १२ घंटे तक ४-५ भिगोए हुए बादाम तथा ३-४ अंजीर नित्य सेवन करने से लाभ शीघ्रता से होता है। उचित वातावरण एवं स्वाध्याय,, ध्यान,, प्राणायाम भी क्रम में अवश्य जोड़ें।
अनिद्रा में सोने से पूर्व १० मिनट कुर्सी पर बैठकर गरम पानी में पैर डुबोकर रखें फिर पैर कपड़े से पोछकर शयन करें तथा बिस्तर के सिरहाने मेंहदी के फूल फैला देने से फूलों की सुगंध से गहरी नींद आती है।
उच्च रक्तचाप में ताजे पत्ते पीसकर हाथ तथा पैरों के तलवों पर लेप करने से लाभ होता है। प्रात: नीबू पानी पीएँ,, दोपहर बाद लौकी का रस,, तरबूज का रस या खीरा का रस पीना चाहिये ।
संधिवात में मेंहदी के आधा किलो ताजे पत्तों को पीसकर रस निकालें। जितना रस निकले,, उससे दो गुनी मात्रा में तिल या सरसो का तेल लेकर आग पर पकाएँ। जब तेल मात्र शेष रह जाए तब ठंढ़ा करके काँच की शीशी में भरकर रखें।। यह मेंहदी का सिद्ध तेल है। इसे लगाने से जोड़ों का दर्द दूर होता है।
हथेलियों तथा पैरों की बिवाई फटने पर मेंहदी के पत्तों क् साथ दूब पीसकर लेप करने से वैसलीन की तरह तत्काल प्रभाव दिखाई देता है। नित्य लेप करने से पूरा लाभ होता है।
असाध्य चर्म रोगों मे मेंहदी की छाल का काढ़ा बनाकर चाय की तरह नित्य पिलाने से लाभ होता है। (साबुन का प्रयोग त्वचा को नुकसान पहुँचाती है) ४० दिनों तक चावल के साथ दूध का सेवन करना चाहिए। सफेद नमक,, मिर्च,, मसालों ,, अचार इत्यादि से परहेज रखें। नीम के तेल से मालिस करना चाहिए।
आग से जलने पर पत्तों को महीन पीसकर गाढ़ा लेप करने से जलन मिटती है,, घाव जल्दी भरता है। मेंहदी मे घाव भरने का गुण एलोवेरा जैसा है।
कुष्ट रोग मे १०० ग्राम पत्तों को पीसकर ३०० पानी में भिगो दे। प्रात: मसलकर,, छानकर पिलाने से लाभ होता है।
खूनी दस्त मे बीजों को कूटकर घी के साथ मिलाकर ४ ग्राम सुबह शाम खाने से शीघ्र लाभ होता है।
प्रमेह में पत्तों का रस १२० ग्राम लेकर १२० ग्राम गोदुग्ध के साथ नित्य पिलाने से लाभ होता है।
तनावजन्य व्याधियों में सिरदर्द, स्मरण शक्ति की कमी,, तनाव,, अनिद्रा आदि में फूलों का काढ़ा बनाकर पीने से तथा ३ ग्राम बीजों को शहद के साथ चाटने से लाभ होता है।
पैरों की जलन में गरमी के दिनों मे जिन लोगों के पैरों में जलन होती है,, उनके पैरों पर ताजी मेंहदी का लेप करने से लाभ होता है।
पीलिया में १०० ग्राम पत्तों को कूटकर २०० ग्राम पानी में रात भर भिगोकर रखें। प्रात: पानी निथारकर एक सप्ताह तक पिलाने से पीलिया मे लाभ होता है ।
आधाशीशी में सिर के आधे भाग में तेज दरद होता है । ताजे पत्तों को पीसकर मस्तक पर लेप करने से लाभ होता है । कब्ज न रहे,, ऐसा रेशे दार आहार लेना चाहिए ।
मुँह के छालों में ताजे पत्तों को मुँह में रखकर खूब अच्छी तरह चबाएँ या मेंहदी के पत्तों को कूटकर रात भर पानी में भिगोकर रखें। प्रात: पानी को छानकर पिलाने से लाभ होता है।
परहेज मिर्च मसालों से परहेज रखें। ३-४ दिनों तक,, छाले ठीक होने तक दूध रोटी या दलिया दूध का सेवन करना उचित रहता है।
चाय,, काफी,, अचार,, तले खाद्य, चीनी,, मैदा,, बेसन तथा दालों से परहेज करें। हरी सब्जी तथा चोकर युक्त आटे की रोटी,, सलाद तथा फलों का सेवन करें। हल्दीयुक्त दूध पिएँ।