धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से मंगल के शुभाशुभ लक्षण एवं उपाय
मंगल पर्यायनाम
मंगल-आर-वक्र-क्रूर-आविनेय-कुज-भौम-लोहितांग-पापी-क्षितिज-अंगारक-क्रूरनेत्र-कूराक्ष-क्षितिनंदन-धरापुत्र-कुसुत-कुपुत्र-माहेय, गोश्रापुत्र-भूपुत्र-्ष्मापुत्र-भूमिसूनु- मेदिनीज- भूसुत-अवनिसुत-नंदन महीज-क्षोणिपुत्र, आषाढाभव-आषाढाभ-रक्तांग-आंगिरस-रेत-कोण-स्कंद-कार्तिकेय पडानन-सुब्रह्मण्य ।
मंगल का सामान्य परिचय
मंगल के जन्म संबंधित अनेक ग्रंथों में अलग-अलग व्याख्या है। स्कंद पुराण में कहा गया है कि मंगल का जन्म धरती पर गिरे श्रीहरि भगवान विष्णु के पसीने की बूंद से हुआ है। वामन पुराण में कहा गया है कि मंगल का जन्म तब हुआ था जब भगवान शंकर ने अंधकासुर का वध किया था। महाभारत में कहा गया है कि भगवान कार्तिकेय के शरीर से मंगल की उत्पत्ति हुई है। मंगल की माता पृथ्वी है मंगल को भारद्वाज ऋषि का वंशज माना जाता है। इसलिए इनका गोत्र भारद्वाज है तथा क्षत्रिय जाती है। इन्हें शौर्य का प्रतीक माना जाता है। मंगल प्रधान जातक का भाग्योदय 28 वें वर्ष में होता है। इसके सूर्य चंद्र गुरु मित्र हैं।
वैदिक ज्योतिष में मंगल को रूक्ष, उष्ण तथा दाहक ग्रह माना गया है। अतः इसके प्रभाव से बच्चों को गर्भस्थ अवस्था से ही उष्णता का अनुभव होता है। चेचक, फोड़े-फुन्सी आदि होते हैं। बचपन की अवस्था पर मंगल का अधिकार है। जिस बच्चे की कुंडली में मंगल प्रबल हो उसे ये रोग जल्दी होते हैं। यदि मंगल दुर्बल हो तो इनसे विशेष तकलीफ नहीं होती। लग्न में मंगल हो या न हो, कोई खास फर्क नहीं पड़ता।
मेष, सिह या धनु में मंगल हो तो शिर में दर्द और रक्तपीड़ा का अनुभव होता है। मिथुन, तुला, कुंभ में यह अनुभव कम आता है।
मंगल के स्त्रीघात आदि फल का अनुभव कर्क, सिंह, मीन का छोड़कर अन्यराशियों में आता है।
मिथुन, तुला, कुंभ का मंगल हो तो कार्यसिद्धि के समय विघ्न की उपस्थिति, यह फल अनुभव में आता है।
“सिंह समान पराक्रमी होना”। इस फल का अनुभव मेष, सिंह, घनु-कर्क, और वृश्चिक में आता है।
‘क्रोधी, व्यसनी, तीखे पदार्थ का प्यारा होना, आग से जलना, पित्तरोग’, ये फल पुरुष राशिगत लग्नस्थ मंगल के हैं ।
“स्वधर्म में श्रद्धा का न होना, सुधारक मतों का पक्षपात करना”, इन फलों का अनुभव मेष, सिंह, धनु, कर्क, वृश्चिक, एवं मीन राशि में होगा।
“स्वभाव की उग्रता” यह फल मेष, सिंह तथा धनु राशि का है ।”बहुत क्रूर और अल्पायु इस फल का अनुभव तब होगा जब मंगल के साथ रवि और चन्द्र का सम्बन्ध होगा ।
“अतीव बुद्धिमत्ता, भ्रमण, व्यभिचार, स्त्रियों के साथ सहवास के विषय में गम्यागम्य का विचार न करना’, इस फल का अनुभव मेष, सिंह, धनु तथा मिथुन-तुला-कुंभ राशियों में होगा।
“शरीर हट्टाकट्टा, बहुत खून का होना”,
इस फल को अनुभव मेष, सिंह तथा धनु में होगा, कुछ कममात्रा में वृष, कन्या तथा मकर में होगा।
“बचपन में उदरोग तथा दन्तरोग का होना” यह फल पुरुषराशि का है ।
“स्तब्ध होना, स्वाभिमानी, पराक्रमी तथा सुन्दर होना यह फल स्त्रीराशि का है। “बुद्धि भ्रम होना, मेष, वृश्चिक वा मकरराशि का
मंगल लग्न में, केन्द्र में वा त्रिकोण में हो तो जातक का अनिष्ट नहीं होता है। इस फल का
अनुभव सभी राशियों में आ सकता है।
‘दुष्ट होना, विचारशून्य होना यह फल बृष, कन्या, मकर का है।
गर्वीलापन, रक्तविकार, यह फल वृष, कन्या,
मकर में, गुल्मरोग, प्लोहा रोग, यह फल कर्क, बृश्चिक, मीन में अनुभूत होगा।
‘गौरवर्ण, इृढ़शरीर, यह फल मेष, सिंह, धनु में अनुभव में आ सकता है।
“राजसम्मान” यह फल मेष, कर्क, सिंह, मीन में अनुभव में आता है।
लग्न अनुसार अशुभ मंगल
आज हम लग्न के अनुसार अशुभ मंगल की चर्चा करेंगे जिससे आप स्वयं ही अपनी पत्रिका में मंगल की स्थिति देख सकें इसके साथ ही मंगल के साथ बैठे ग्रह को देखें तथा मंगल पर कौन सा ग्रह दृष्टि डाल रहा है यह भी देखें वह मित्र है अथवा शत्रु इसके बाद ही निष्कर्ष निकाले की मंगल कितना शुभ अथवा अशुभ है।
मेष लग्न इस लग्न में मंगल द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, एकादश एवं द्वादश भाव में अत्यधिक अशुभ फल देता है यहां पर मंगल दूसरे 11 वें तथा 12 वें भाव में आर्थिक रुप से कमजोर करता है।
वृष लग्न इस लग्न में मंगल तृतीय, चतुर्थ, पंचम, अष्टम, द्वादश भाव में अधिक अशुभ फल देता है।
मिथुन लग्न इस लग्न में मंगल प्रथम, चतुर्थ, षष्ठम, अष्टम, नवम भाव व द्वादश भाव में अशुभ फलदाई होता है।
कर्क लग्न इस लग्न में मंगल तृतीय, षष्ठम, सप्तम, अष्टम तथा एकादश भाव में अधिक अशुभ रहता है।
सिंह लग्न इस लग्न में मंगल लग्न, षष्ठम, अष्टम तथा एकादश भाव में अशुभ फल ही देता है।
कन्या लग्न कन्या लग्न में मंगल धन भाव, चतुर्थ, षष्ठम व द्वादश भाव में पूर्णतया अशुभ फल देता है।
तुला लग्न लग्न चतुर्थ, अष्टम, एकादश तथा द्वादश भाव में विशेष अशुभ फल देता है।
वृश्चिक लग्न वृश्चिक लग्न में मंगल धन भाव, सुख भाव, रोग भाव, सप्तम, अष्टम, एकादश एवं द्वादश भाव में अशुभ फल देता है।
धनु लग्न इस लग्न में भी मंगल लग्न भाव, तृतीय तथा एकादश भाव में अत्यधिक अशुभ फल देता है।
मकर लग्न मकर लग्न में लग्न स्थित मंगल, धन भाव, सुख भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव, नवम भाव तथा व्यय भाव में अशुभ फलदायक होता है।
कुम्भ लग्न इस लग्न में भी मंगल पूर्णत: धन, सुख, रोग, मारक, कर्म तथा व्यय भाव में अशुभ फल ही देता है।
मीन लग्न इस लग्न में मंगल द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम, दशम, एकादश स्थान में सर्वदा अशुभ फल देता है।
विशेष विचार और अनुभव
जिस जातक के लग्नभाव में मंगल होता
है वह सभी व्यवसायों के प्रति आकृष्ट होता है, किन्तु किसी एक व्यवसाय को भी ठीक नहीं कर सकता-एकसाथ ही सभी व्यवसाय करने की प्रवृति अवश्य होती है। ऐसी स्थिति 36 वें वर्ष तक बराबर चलती रहती है । तदन्तर किसी एक व्यवसाय में स्थिरता आती है । इसको यह मिथ्या अभिमान होता है कि यह व्यवसाय में अत्यंत कुशल है और दूसरे निरेमूर्ख हैं । योग्यता के अभाव में भी दूसरों पर प्रभाव डालने का यत्न करता है।
डाक्टरों की कुंडली में लग्नस्थ मंगल हो तो शिक्षाकाल में सर्जरी को विशेष ध्यान दिया जाता है। अनुभव के समय में आपरेशन का मौका बहुत कम मिलता है। लग्नस्थ मंगल डाक्टरों की भाँतिं वकीलों के लिए विशेष अच्छा नहीं है। फौजदारी मुकदमें मिलते हैं अवश्य, परन्तु धनप्राप्ति विशेष नहीं होती। अदालत में प्रभाव विशेष अवश्य पडता है, धनाभाव में विशेष उपयोग नहीं होता है । लग्नस्थल मंगल मोटर, हवाई जहाज, रेलवे इंजिन ड्राइवरों के लिए विशेषतया अच्छा है । लोहार, बढ़ई-सुनार, मैकेनिकल इंजीनियर, टर्नर, तथा फिटर आदि लोगों के लिए भी यह योग बहुत अच्छा है। यदि मंगल वृष, कन्या, मकर में हो तो उत्तमफल मिलता है । जमीन सर्वैयर का काम भी अच्छा रहता है ।
मकर का मंगल पिता के लिए भारी कष्टकर है-शारीरिक व्याधियाँ होती हैं । मेष, सिंह, कर्क, वृश्चिक, धनु राशियों का लग्नस्थ मंगल पुलिस इन्सपैक्टरों के लिए अच्छा है । रिश्वत लेने वाले अफसरों के लिए भी यह योग अच्छा है- क्योंकि इनकी पकड़ नहीं हो सकेगी । परन्तु ऐसा फल तब होता है जब
मंगल के साथ शनि का योग होता है ।
लग्नस्थ मंगल यदि कर्क राशि का हो तो जातक को अपने परिश्रम से उन्नति तथा धनप्राप्ति होती है। सिंहराशि में हो तो दैवयोग से ही उन्नति तथा धनप्राप्ति होती है। लग्नस्थ मंगल यदि वृष, कन्या वा मकर में हो तो जातक कृपण ( कंजूस ) होता है । एक व्यक्ति का भोजन भी इनहे असहाय होता है । मिथुन और तुला में मंगल होने से जातक मिलनसार होता है । थोड़़ा खर्च मित्रों के लिए भी होता है।
यदि लग्नस्थ मंगल कर्क, वृश्चिक, कुंभ तथा मीन में होता है तो जातक किसी से जल्दी मित्रता नहीं करता है-किन्तु मित्रता हो जाने पर कभी भूलता नहीं है । यह जातक पैसे का लोभी तथा स्वार्थी होता है-अच्छे बुरे उपायों का विचार नहीं करता है ।
वृष, कन्या, मकर, कुंभ में लग्नस्थ मंगल होने से जातक का छुकाव कुछ-कुछ चोरी करने की तरफ रहता है। बच्चों के लिए इसकी दृष्टि बाधक होती है।
मंगल का प्रत्येक भाव पर दृष्टि फल
प्रत्येक ग्रह अपने घर से सातवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है। इसके साथ ही साथ कुछ ग्रह जैसे गुरु, मंगल, शनि व मतांतर से राहु व केतु की कुछ अन्य दृष्टि भी होती है। इसके अतिरिक्त मंगल की अन्य दृष्टि भी होती है। जिसे एक पाद, द्विपाद कहते हैं परंतु फल पूर्ण दृष्टि का होता है इसलिए हम यहां मंगल की पूर्ण दृष्टि के फल की चर्चा करेंगे मंगल अपनी सातवीं दृष्टि के अतिरिक्त चतुर्थ, अष्टम भाव को भी पूर्ण दृष्टि से देखता है।
प्रथम भाव अर्थात लग्न पर यदि मंगल की दृष्टि हो तो ऐसा जातक उग्र प्रवृत्ति का, प्रथम जीवन साथी का 22 वर्ष अथवा 28 वर्ष की आयु में भी वियोग तथा भूमि के माध्यम से आर्थिक लाभ प्राप्त करने वाला होता है।
द्वितीय भाव पर मंगल की यदि पूर्ण दृष्टि हो तो जातक गुदा रोगी, परिवार से अलग रहने वाला होता है। स्वयं के श्रम से धन अवश्य आता है परंतु उसकी मात्रा कम होती है। ऐसा व्यक्ति परिश्रमी भी बहुत होता है लेकिन श्रम का पूर्ण फल ना मिलने से उसका चित्त सदैव उच्चाट व खिन्न रहता है।
तृतीय भाव इस घर पर मंगल की दृष्टि होने से व्यक्ति भाई के प्रेम के सुख से हीन होता है। व्यक्ति पराक्रमी तथा भाग्यवान होता है एक बहन विधवा अवश्य होती है।
चतुर्थ भाव इस भाव पर मंगल की दृष्टि होने से भी जातक माता पिता के सुख से विहीन, श्रम के कार्यों से दूर रहने वाला, 28 वर्ष आयु तक दुखी फिर सुख प्राप्त करने वाला, चतुर्थ भाव तथा भावेश की स्थिति भी शुभ अथवा अनुकूल हो तो वाहन सुख प्राप्त करता है। परंतु शारीरिक कष्ट कुछ ना कुछ बना रहता है।
पंचम भाव इस भाव को मंगल के देखने से व्यक्ति की पहली संतान की मृत्यु अथवा गर्भपात हो सकता है। जातक अनेक भाषा का ज्ञानी, विद्वान परंतु व्यभिचारी तथा संतान से कष्ट पाने वाला तथा उपदंश रोग होता है।
षष्ठ भाव इस घर को मंगल के देखने से व्यक्ति मातृ पक्ष के लिए कष्टकारी होता है अर्थात मामा मौसी को कष्ट होता है। शत्रु को भय देने वाला, रक्त विकार से पीड़ित तथा यश व कीर्ति प्राप्त करने वाला होता है।
सप्तम भाव इस भाव को यदि मंगल पूर्ण दृष्टि से देखें तो व्यक्ति कामी स्वभाव वाला, जीवनसाथी के अतिरिक्त दूसरे से संबंध बनाने वाला, मद्यपान प्रेमी तथा 21 अथवा 28 वर्ष आयु में प्रथम जीवन साथी का वियोग सहने वाला होता है।
अष्टम भाव इस भाव पर मंगल के देखने से जातक की अग्नि अथवा विस्फोट से मृत्यु का भय होता है। ऐसा व्यक्ति अपने पिता के द्वारा संचित धन व कुटुंब का नाश करता है। सदैव ऋण ग्रस्त रहने वाला परिश्रमी परंतु दुखी व भाग्य हीन होता है।
नवम भाव इस भाव पर मंगल की दृष्टि के शुभ फल अधिक मिलते हैं। जातक धनवान, बुद्धिमान व पराक्रमी किंतु नास्तिक भी हो सकता है।
दशम भाव इस घर पर मंगल की दृष्टि से व्यक्ति सरकारी सेवाओं में नौकरी करने वाला तथा सुखी जीवन व्यतीत करने वाला होता है। भाग्यवान भी होता है परंतु माता पिता के लिए कष्टकारी होता है।
एकादश भाव इस घर पर भी मंगल की दृष्टि से ऐसा व्यक्ति धनवान अवश्य होता है परंतु उसे संतान से कलेश व कष्ट मिलते हैं। परिवार कुटुंब के दुख में स्वयं भी बहुत दुखी होता है।
द्वादश भाव इस भाव पर मंगल की पूर्ण दृष्टि से व्यक्ति गलत मार्ग पर चलने वाला, मातृ पक्ष के लिए कष्टकारी, उग्र क्रोधी स्वभाव का शत्रु वर्ग का नाश करने वाला तथा गुदा रोग से पीड़ित व शल्यक्रिया करवाने वाला होता है।
मंगल अरिष्ट निवारण हेतु विशेष उपाय एवं टोटके
1 मंगल कृत अरिष्ट शांति के लिए किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार से शुरू करके लाल वस्त्र पहनकर श्री हनुमान जी की मूर्ती से सामने कुशाशन पर बैठा कर गेरू अथवा लाल चंदन का टीका लगाकर एवं घी की ज्योति जगाकर श्री हनुमानाष्टक अथवा हनुमान चालीसा का प्रतिदिन काम से कम 21 संख्या में पाठ करे।ऐसा नियमित 41 दिन तक करने पर कठिन से कठिन कार्य की सिद्धि होती है।श्री हनुमानाष्टक पाठ के प्रारंभ में श्री हनुमत-स्तवन के सात मंत्रो का भी पाठ करने से विशेष लाभ होता है।पाठ के बाद किशमिश या लड्डू का भोग लगाना शुभ रहेगा।
2 हर मंगलवार को स्नान आदि से निवृत होकर लाल वस्त्र एवं लाल चंदन का तिलक धारण कर कुशाशन पर बैठ कर 41 दिन नियमित रूप से 108 बार हनुमान चालीसा का पाठ एवं लड्डू का भोग लगाने से भौमकृत अरिष्ट की शांति होती है।
3 जन्म कुंडली में मंगल योग कारक होकर भी शुभ फल ना दे रहा हो तो हर मंगल वार कपिला गाय को मीठी रोटियां खिलाकर नमस्कार करना चाहिए गौ को हरा चारा जल सेवा एवं लाल वस्त्र पहना कर अलंकृत करने से मंगल के अशुभ फल की शांति होती है।
4 अपने इष्ट देव को घर में ही 27 मंगलवार सिंदूर का तिलक लगाकर खुद भी प्रसाद स्वरूप तिलक लगाना शुभदायक रहेगा।
5 सोमवार की रात्रि को ताँबे के बर्तन में पानी सिराहने रख कर मंगलवार की प्रातः घर में लगाये हुए गुलाब के पौधों को वही जल मंगल का बीज मंत्र पढ़ते हुए डाले।
6 किसी भी विशेष यात्रा पर जाने से पहले शहद का सेवन शुभ रहेगा।
7 यदि कुंडली में मंगल नीच राशिगत हो या अस्त हो तो शरीर पर सोने या तांबे का गहना या अन्य कोई वस्तु धारण नहीं करना चाहिए।इस स्तिथि में लाल रंग के वस्रों एवं लाल चंदन का भी परहेज करना चाहिए।
8 मंगल अशुभ होने की स्तिथि में मंगल सम्बंधित वस्तुओ (ताम्र बर्तन, इलेक्ट्रॉनिक वस्तु, लाल वस्त्र, गुड़ आदि) के उपहार विशेष कर मंगलवार या मंगल के नक्षत्रो में ग्रहण ना करे अपतु इनका दान इन दिनों विशेष लाभदाय रहेगा।
9 गेंहू तथा मसूर की दाल के सात-सात दाने लाल पत्थर पर सिंदूर का तिलक लगाकर इनको लाल वस्त्र में लपेटकर मंगलवार को मंगल का बीज मंत्र पढ़ते हुए बहते जल में प्रवाहित करें।
10 27 मंगलवार किसी अंध विद्यालय में या किसी अंगहीन व्यक्ति को मीठा भोजन कराना शुभ होगा।
11 मंगल की अशुभता में माँस-मछली-शराब आदि तामसिक भोजन का परहेज विशेष जरूरी है।
12 बिना नमक का एक समय भोजन या फलाहारी रहते हुए मंगलवार का व्रत रखना कल्याण प्रद रहेगा।
13 सोमवार की रात्रि सरहाने ताम्र पात्र में जल रख कर प्रातः बरगद की जड़ में मंगल के बीज मंत्र या ब्राह्मण को वैदिक मन्त्र से जल चढ़ाना शुभ रहेगा।
14 कर्ज से छुटकारे एवं संतान सुख के लिए ज्योतिषी से परामर्श कर सवा दस रत्ती का मूंगा धारण करना, भौम गायत्री मंत्र का नियमानुसार जप ,तथा मंगल स्त्रोत्र का पाठ करना कल्याणकारी रहता है।
15 ऋण, रोग एवं शत्रु भय से मुक्ति के लिए एवं आयोग्य,धन – संपदा – पुत्र प्राप्ति के लिए मंगल यंत्र धारण तथा मंगल की औषधियों से नियमित स्नान इसके अतिरिक्त मंगल के वैदिक मंत्रों का निर्दिष्ट अनुसार ब्राह्मणों द्वारा जप और दशांश हवन करना शीघ्र कल्याणकारी रहेगा।
16 कुंडली में मांगलिक आदि दोष के कारण मंगल अशुभ फल दे रहा हो तो जातक/जातिका को श्री सुंदरकांड का नियमित 108 दिन तक हनुमान जी की चोला -जनेऊ एवं भोग लगाकर पाठ करने से वैवाहिक एवं पारिवारिक सुखों में वृद्धि करता है।इसके अतिरिक्त भौम शांति के लिए मंगल चंडिका स्त्रोत्र का पाठ भी विशेष लाभप्रद माना गया है।
17 अनंतमूल की जड़ मंगलवार को अनुराधा नक्षत्र में लाल धागे से दाएं बाजू में बाँधने से भौम कृत अरिष्ट की शांति होती है।