मिर्जापुर।स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज का परमहंस आश्रम सक्तेशगढ़ आगमन।
दर्शन को सुबह उमड़े हजारों भक्तों का सद्गुरु ने रखा मान, बांचा ‘यथार्थ गीता” का ज्ञान
वाराणसी। यथार्थ गीता के प्रणेता परमहंस आश्रम सक्तेशगढ़ के स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज का ४८ दिनों बाद शरद पूर्णिमा की पावन तिथि पर आश्रम में आगमन हुआ। श्री अड़गड़ानंद जी महाराज को सूरजकुंड से उड़न खटोला (हेलीकाप्टर) लेकर शुक्रवार की सायं पांच बजे शक्तिधाम सक्तेशगढ़ पहुंचा। उनके आगमन की सूचना पहले से ही भक्तों को मिल चुकी थी
और इसीलिए हजारों भक्तों का हुजूम गुरु दर्शन की लालसा लिए सुबह से ही आश्रम परिसर में उमड़ा रहा। गुरु महाराज के आगमन पर आश्रम परिसर में दीपावली से पूर्व ही दीपावली मनी। परिसर का कोना-कोना रोशनी से जगर-मगर रहा और गुरु महाराज की अगुवानी में आतिशबाजी जमकर हुई। इस दौरान भक्तों ने गगनभेदी जयकारों के साथ अपने सद्गुरु महाराज का स्वागत किया। हेलीकाप्टर उतरने के बाद हैलीपैड पर महराज की आगवानी आश्रम के वरिष्ठ संत नारद महराज समेत अन्य संतों ने की।
इसके बाद आश्रम परिसर में सुबह से ही प्रतीक्षा करते भक्तों का मान रखते हुए स्वामी अडगड़ानंद महाराज ने सुसज्जित मंच पर पहुंच कर दर्शन देने के साथ ही अपने प्रवचन से उन्हें निहाल कर दिया। उन्होंने कबीरदास के दोहे को संदर्भित करते हुए कहा कि संत होने के लिए मन व इंद्रियों पर वश करना आवश्यक है। सांसारिक मोह माया को त्याग कर ईश्वर में रम जाना ही संत की पहचान है। उन्होंने भगवान भोलेनाथ के बारे में भी संक्षिप्त चर्चा करते हुए शिव बारात के प्रसंग को सुनाया। महाराज ने कहा कि धर्म के विषय में तमाम भ्रांतियां हैं, जिसे मानव मात्र के धर्मशास्त्र ‘यथार्थ गीता” द्वारा समझने का प्रयास किया जा सकता है। जन्म-जन्मांतर से चली आ रही कुरीतियों के चलते ही ईश्वर और धर्म के विषय में भ्रांतियां फैली हुई हैं। ईश्वर ही शाश्वत और सत्य है, जिन्हें प्राप्त करने का मार्ग सद्गुरु के रास्ते से होकर जाता है।