जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से हम लोग मन्दिर क्यों जाते हैं ?

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से हम लोग मन्दिर क्यों जाते हैं ?

हम लोग मन्दिर क्यों जाते हैं ?

हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या फिर दुनिया के अन्य धर्म। सभी धर्मों में धार्मिक स्थलों का महत्व बहुत अधिक माना जाता है। हम किसी भी धार्मिक स्थल पर जाते हैं तो हम अपने अंदर एक आंतरिक शांति, एक आंतरिक सुख की अनुभूति करते हैं। आइये जानते हैं क्यों होता है यह अलग सा अहसास और क्या होता है खास इन धार्मिक स्थलों पर जाने के बाद।

शांति देते हैं धार्मिक स्थल आप चाहे किसी भी धर्म, जाति या समुदाय से संबंधित हों लेकिन जब आप किसी धार्मिक स्थल की यात्रा पर जाते हैं या यात्रा छोड़ें वैसे ही किसी मंदिर, गुरुद्वारे, चर्च आदि में चले जाते हैं तो एक अलग सा शांत वातावरण आपको महसूस होता है।

अपने अंदर भी एक आत्मिक शांति आप महसूस करते हैं। आपको लगने लगता है जैसे आपकी सारी चिंताएं गायब हो रही हैं। आपको एक आत्मिक सुख की, आनंद की अनुभूति होने लगती है।

मंदिर की घंटी हो या फिर गुरुद्वारे में सर ढांपकर जल से पैरों को धोकर गुरुद्वारे के प्रांगण में प्रवेश करना सुकून देने वाला होता है। क्या कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है।

क्यों अचानक हमारे अंदर हम यह परिवर्तन, यह शांति, यह सुख महसूस करते हैं। इसका कारण है धार्मिक स्थलों का वातावरण और इस वातावरण से मिलने वाली सकारात्मक ऊर्जा।

अधिकतर धार्मिक स्थल विशेषकर हिंदूओं के धार्मिक स्थल प्रकृति की गोद में निर्मित किये गये हैं जिस कारण प्राकृतिक रूप से ही इन स्थलों पर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता रहता है।

यही सकारात्मक ऊर्जा हमें भी प्रभावित करती है और हमें सुख की अनुभूति होने लगती है। गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने भी अपनी एक पुस्तक “साधना- द रियलायज़ेशन ऑफ लाइफ” में कहा है कि यह जगहें आत्मा को सुख प्रदान करती हैं, प्रकृति का यह रूप हमारी आत्मा को परमात्मा से मिलाने में सहायक सिद्ध होता है।

क्यों मिलता है धार्मिक स्थलों पर सुख

निर्माण कला – मंदिरों के निर्माण का कार्य बहुत ही सोच-समझकर वास्तुनुसार किया जाता है। जगहें भी प्राकृतिक वातावरण को देखकर चुनी जाती हैं। प्राचीन मंदिर तो ऐसे स्थलों या पर्वतों पर बनाए गये हैं जहां से चुंबकीय तरंगे घनी होकर गुजरती हैं।

प्रतिमाओं की स्थापना भी ऐसे स्थान पर की गई हैं जहां चुबंकीय प्रभाव ज्यादा हो। तांबे के छत्र और पाट रखने के पिछे भी यही कारण होता था कि तांबा बिजली और चुंबकीय तरंगों को अवशोषित करता है।

इस तरह जो भी मंदिर में देवी-देवता के दर्शन करने आता है और उनकी परिक्रमा है वह भी इस ऊर्जा को अवशोषित कर लेता है। जिससे उसमें सकारात्मकता का संचार होता है।

जाने का समय – धार्मिक स्थलों पर जाने का भी एक निश्चित समय होता है। प्रात:काल और सांयकाल के समय ही मंदिरों में जाना लाभकारी रहता है दोपहर 12 बजे से लेकर दोपहर बाद 4 बजे तक मंदिरों में जाना निषेध माना गया है।

इसलिये आमतौर पर देखा भी होगा कि सूर्योदय और सूर्यास्त के समय ही ज्यादातर श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिरों में दिखाई देती है।

देवोपासना – मंदिर हों या अन्य धार्मिक स्थल वहां पर जाकर देवमूर्ति के समक्ष मस्तक अपने आप झुक जाता है और श्रद्धालु उनकी प्रार्थना, ध्यान, कीर्तन-भजन, पूजा-आरती के जरिये अपनी श्रद्धानुसार उपासना करने लगते हैं।

पूजा-आरती के जरिये दीपक की लौ, संगीत और मंदिर के वातावरण का मिलाजुला प्रभाव भक्त पर पड़ता है। कई विद्वान तो इसे आयनिक क्रिया तक बताते हैं जिससे व्यक्ति के शारीरिक रसायन परिवर्तित हो जाते हैं और कई बार उसे बिमारियों तक से मुक्ति मिल जाती है।

प्रार्थना करने से भी हमें शक्ति मिलती है। मन में विश्वास पैदा होता है और सकारात्मक भाव जाग्रत होने लगते हैं। भजन कीर्तन करने का भी अपना एक अलग सुख है। संगीत की लहरियों में मिलकर भजनों से अंतरमन निर्मल और हल्का हो जाता है। ध्यान हमें एकाग्र ही नहीं करता बल्कि वह हमें जागरुक करता है, सचेत करता है असल में ध्यान को विद्वानों ने मोक्ष का द्वार माना है। कहते भी हैं

श्रद्धा बिन भक्ति नहीं, भक्ति बिन ज्ञान कैसा
ज्ञान बिन ध्यान नहीं, ध्यान बिन भगवान कैसा

मंदिर और मन की भक्ति में अंतर वैसे तो मन भी एक मंदिर ही कहा जाता है लेकिन मन में और मंदिर में की जाने वाली भक्ति में बहुत अंतर है। मन के द्वारा हम कहीं भी कहीं भी सीधे परमात्मा का अर्थात अपने ईष्ट देवी-देवता का ध्यान कर सकते हैं, मन ही मन अपनी इच्छाओं को पूरा करने की प्रार्थना उनसे करते हैं।

माना जाता है कि हमारी इच्छाएं, प्रार्थनाएं तरंगें बन कर प्रभु तक पंहुचती हैं। जब किसी खुले स्थान पर हम प्रार्थना करते हैं तो प्रार्थना या इच्छा रुपी ये तरंगे ब्रह्माण्ड में कहीं बिखर जाती हैं जबकि मंदिर जो कि गुंबदनुमा होते हैं।

उनमें की जाने वाली प्रार्थनाओं, मनोकामनाओं का एक संग्रह बन जाता है क्योंकि वह गुंबद से टकराकर आप तक पंहुचती हैं फिर गुंबद तक जाती हैं इस प्रकार यह प्रक्रिया शुरु होती है और एक मजबूत संग्रह बनकर बिना बिखरे संबंधित देवी-देवता तक आपकी आवाज़ पंहुच जाती है। इसलिये मन से भक्ति कीजिये लेकिन मंदिर में।

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