धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जानें क्या है विश्वकर्मा पूजा का महत्व, व्रत कथा और पूजन विधि…
भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिन को विश्वकर्मा पूजा, विश्वकर्मा दिवस या विश्वकर्मा जयंती के नाम से जाना जाता है। यह दिन हिन्दुओं के लिए बेहद ख़ास माना गया है। इस दिन के बारे में लोगों के बीच में ऐसी मान्यता है कि, इस दिन भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के सातवें धर्मपुत्र के रूप में जन्म लिया था।
विश्वकर्मा पूजा तिथि और शुभ मुहूर्त
विश्वकर्मा पूजा- 17 सितम्बर 2020-
विश्वकर्मा जी के बारे में माना जाता है कि एक महान ऋषि होने के साथ-साथ वो एक बेहद ही शानदार शिल्पकार और ब्रह्मा ज्ञानी भी थे। ऋग्वेद में उनके बारे में कई जगह उल्लेख किया गया है। ऐसी मान्यता है कि उन्होंने देवताओं के घर, नगर, अस्त्र-शस्त्र आदि चीजों का निर्माण किया था।
इसके अलावा हस्तिनापुर, द्वारिकापुरी, पुष्पक विमान, भगवान शिव का त्रिशूल इत्यादि चीजों के निर्माता भी विश्वकर्मा जी को ही माना जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र भी विश्वकर्मा जी ने ही निर्मित किया था।
विश्वकर्मा जी की उत्पत्ति
विश्वकर्मा जी का जन्म कब हुआ और कैसे हुआ इस बात को लेकर अलग-अलग कहानियां और तथ्य पेश किए जाते हैं। एक कहानी के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र धर्म थे। जिनकी पत्नी का नाम वस्तु था। वस्तु के सातवें पुत्र थे वास्तु, जो शिल्प शास्त्र के आदी थे। उन्हीं वासुदेव की अंगीरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था।
वहीं स्कंद पुराण में बताया जाता है कि धर्म ऋषि के आठवें पुत्र प्रभास का विवाह गुरु बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मवादिनी के साथ हुआ था। ब्रह्म वादिनी ही विश्वकर्मा जी की माँ थी।
इसके अलावा वराह पुराण में इस बात का उल्लेख है कि सब लोगों के उपकारार्थ ब्रह्मा परमेश्वर ने बुद्धि से विचारक विश्वकर्मा को पृथ्वी पर उत्पन्न किया था।
पूजन विधि
इस दिन सूर्य निकलने से पहले स्नान आदि करके पवित्र हो जाना चाहिए।
इसके बाद रोजाना उपयोग में आने वाली मशीनों को साफ किया जाता है।
फिर पूजा करने बैठे।
इस दिन पूजा में भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान विश्वकर्मा की भी तस्वीर शामिल करें।
इसके बाद दोनों ही देवताओं को कुमकुम, अक्षत, अबीर, गुलाल, हल्दी, व फूल, फल, मेवे, मिठाई इत्यादि अर्पित करें।
आटे की रंगोली बनाएं और उनके ऊपर सात तरह के अनाज रखें।
पूजा में जल का एक कलश भी शामिल करें।
धूप दीप इत्यादि दिखाकर दोनों भगवानों की आरती करें।
विश्वकर्मा पूजा घर के साथ-साथ ही दुकानों, फैक्ट्री, दफ्तरों और कार्यालयों में भी की जाती है। इस दिन भगवान विष्णु, भगवान विश्वकर्मा, के साथ ही उनके वाहन हाथी की भी पूजा किए जाने का विधान बताया गया है।
भगवान विश्वकर्मा ने ही लंका का निर्माण किया था
एक पौराणिक कथा के अनुसार बताया जाता है कि, एक बार भगवान शिव ने माता पार्वती के लिए एक महल का निर्माण कराने के बारे में सोचा। इस बात की जिम्मेदारी उन्होंने विश्वकर्मा जी को दी। विश्वकर्मा जी ने अपनी बुद्धि सूझबूझ इत्यादि से एक सोने का बेहद ही खूबसूरत महल बनाया।
इस महल की पूजा रखी गई तो भगवान शिव ने रावण को भी बुलाया। लेकिन यह महल इतना खूबसूरत था कि इस महल को देखते ही रावण के मन में लालच उत्पन्न हो गया और उसने पूजा के बाद दक्षिणा के रूप में भगवान शिव से इस महल को ही मांग लिया। भगवान शिव ने यह महल रावण को दे दिया और खुद कैलाश पर्वत पर जाकर रहने लग गए। इसी महल को हम लंका के नाम से जानते हैं।
विश्वकर्मा जी के अनेकों रूप
भगवान विश्वकर्मा को ‘देवताओं का शिल्पकार’, ‘वास्तुशास्त्र का देवता’, ‘प्रथम इंजीनियर’, ‘देवताओं का इंजीनियर’ और ‘मशीन का देवता’ इत्यादि रूपों में जाना जाता है। इसके अलावा विष्णु पुराण में विश्वकर्मा को ‘देव बढ़ई’ कहा गया है। मान्यता है कि विश्वकर्मा भगवान की पूजा करने से व्यापार में दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि होती है।