जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से आध्यात्म एवं ज्योतिष में सप्तमी तिथि का महत्त्व

धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से आध्यात्म एवं ज्योतिष में सप्तमी तिथि का महत्त्व



हिंदू पंचाग की सातवी तिथि सप्तमी कहलाती है। इस तिथि को मित्रापदा भी कहते हैं। सप्तमी तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 73 डिग्री से 84 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष में सप्तमी तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 253 से 264 डिग्री अंश तक होता है। सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्यदेव माने गए हैं। मान सम्मान में व़द्धि और उत्तम व्यक्तित्व के लिए इस तिथि में जन्मे लोगों को भगवान सूर्यदेव का पूजन अवश्य करना चाहिए।

सप्तमी तिथि का ज्योतिष में महत्त्व

यदि सप्तमी तिथि सोमवार और शुक्रवार को पड़ती है तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा सप्तमी तिथि बुधवार को होती है तो सिद्धा कहलाती है। ऐसे समय कार्य सिद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें कि सप्तमी तिथि भद्र तिथियों की श्रेणी में आती है। यदि किसी भी पक्ष में सप्तमी शुक्रवार के दिन पड़ती है तो क्रकच योग बनाती है, जो अशुभ होता है, जिसमें शुभ कार्य निषिद्ध होते हैं। वहीं शुक्ल पक्ष की सप्तमी में भगवान शिव का पूजन करना चाहिए लेकिन कृष्ण पक्ष की सप्तमी में शिव का पूजन करना वर्जित है। ज्योतिष के अनुसार सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा का दिन माना जाता है, जो संकटों का नाश करने वाली हैं।

सप्तमी तिथि में जन्मे जातक अपने कार्यों को लेकर सजग और जिम्मेदार होते हैं, जिसकी वजह से इनके द्वारा किए गए कार्य हमेशा सफल होते हैं। सूर्य स्वामी होने की वजह से इनमें नेतृत्व का गुण पाया जाता है। इन लोगों को मेल मिलाप करना पसंद नहीं होता है लेकिन ये लोग घूमने का शौक रखते हैं। ये जातक धनवान होते हैं और मेहनत से किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने की कोशिश करते रहते हैं। इन लोगों में प्रतिभा कूट-कूटकर भरी होती है। इस तिथि में जन्मे जातक कलाकार भी होते हैं। इन व्यक्तित्व काफी प्रभावशाली होता है। लेकिन इन जातकों को जीवनसाथी का भरपूर सहयोग नहीं मिलता है, जिसकी वजह से तनाव झेलना पड़ता है। इन जातकों को संतान की तरफ से प्रेम और साथ जरूर मिलता है, जिसकी वजह से मन में संतोष बना रहता है।

सप्तमी में किये जाने वाले शुभ कार्य

सप्तमी तिथि में यात्रा, विवाह, संगीत, विद्या व शिल्प आदि कार्य करना लाभप्रद रहता है। इस तिथि पर किसी नए स्थान पर जाना, नई चीजों खरीदना शुभ माना गया है। इस तिथि में चूड़ाकर्म, अन्नप्राशन और उपनयन जैसे संस्कार करना उत्तम माना जाता है। इसके अलावा किसी भी पक्ष की सप्तमी तिथि में तेल और नीले वस्त्रों को धारण नहीं करना चाहिए। साथ ही तांबे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।

सप्तमी तिथि के प्रमुख त्यौहार एवं व्रत व उपवास

शीतला सप्तमी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतला सप्तमी मनाई जाती है। इस तिथि पर माता शीतला का पूजन किया जाता है, जो चिकन पॉक्स या चेचक नामक रोग दूर करने वाली माता हैं। इस दिन व्रतधारी घर पर चूल्हा नहीं जलते हैं बल्कि बासी भोजन ग्रहण करते हैं।

संतान सप्तमी भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को ललिता सप्तमी मनाई जाती है। इस तिथि पर सभी माताएं अपनी संतान की दीर्घायु और सफलता के लिए संतान सप्तमी का व्रत रखती हैं। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है।

गंगा सप्तमी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगा सप्तमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भागीरथ को गंगा माता को धरती पर लाने में कामयाबी मिली थी। इस दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व है।

विष्णु सप्तमी विष्णु सप्तमी मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनायी जाती है। इस तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। इस दिन व्रत करने से अधूरे या रुके हुए काम पूरे हो जाते हैं।

रथ आरोग्य सप्तमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ आरोग्य सप्तमी कहते हैं। इस दिन व्रत करने से कुष्ठ रोग नहीं होता है और जिसको होता है उसे मुक्ति मिल जाती है। क्योंकि इस तिथि पर श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब ने व्रत किया था और उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई थी।

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