जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से पौराणिक मणियो के बारे में रोचक जानकारी….

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से पौराणिक मणियो के बारे में रोचक जानकारी….



मणियाँ अनेक प्रकार की होती है
प्रकार की होती हैं। उनमें से 9 मणियों को मुख्य माना गया हैं

उनके नाम इस प्रकार हैं।

1 धृतमणि 2 तैलमणि

3 भीष्मकमणि 4 उपलकमणि

5 स्फटिकमणि 6 पारसमणि

7 उलूकमणि 8 जाजवतमणि

9 मासरमणि ।

इन मणियों में से पारसमणि का केवल नाम ही सुना जाता हैं। इसे पारस पत्थर भी कहते हैं । कहा जाता हैं कि पारस पत्थर अथवा पारसमणि का स्पर्ष पाते ही

लोहा सोना बन जाता हैं। इस मणि अथवा पत्थर को काल्पनिक माना जाता हैं क्योंकि न तो यह मणि किसी के पास हैं और न किसी ने इसे अब तक देखा है।

इस मणि के प्रभाव के विषय में सुना अवष्य जाता रहा है। ग्रह रत्नों की भांति ही इन मणियों को धारण करने से भी अनेक प्रकार के अनिष्टों की ष्षान्ति तथा

मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं मणियों का प्रभाव इस प्रकार कहा गया हैं

1 धृतमणि

इसे संस्कृत में गरूड़मणि फारसी में जबरजदद हिन्दी में कारकौतुक अंग्रेजी में पैरीडोट कहा जाता है।

हरे पीले लाल ष्ष्वेत ष्ष्याम एवं मधु मिश्रित रंग का पत्थर होता है। इस पर मोटे पिस्ते जैसे छींटे पाये जाते हैं मिथुन राशि में जडें । फिर हस्त नक्षत्र में सूय मन्त्र द्वारा रत्न जडि़त अंगुली में पहिनें । इस मणि के प्रभाव से धन संतान तथा स्नेह की वृद्वि होकर समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं छोटे बालकों के गले में इस मणि की माला पहिनाने से नजर तथा मृगी रोग से रक्षा होती है। इस मणि की माला पर हनुमत मन्त्र का जाप करने से अनेक प्रकार की सिद्वियज्ञू प्राप्त होती हैं। लहसुनियॉ की भांति इस मणि में दोष होते है तथा उनका फल भी वैसा ही होता हैं। अत सदैव निर्दोष मणि ही धारण करनी चाहिए ।

2 तैलमणि

इसे हिन्दी में उदउक अंग्रेजी में टर्मेजीन कहा जाता है । यह वैक्रंात जाति का रत्न होता है । इसका रंग अरूणाभ ष्ष्वेत पीला तथा काला होता है। यह मणि तेल के समान चिकनी होती हैं। यदि ष्ष्वेत रंग की तैलमणि को अग्नि में रखा जाए तो वह उसी समय पीली हो जाती है और यदि कपड़े में लपेटकर रखा जाए तो तीसरे दिन पीली हो जाती है पर हवा लगते ही यह अपने असली रंग को पुन प्राप्त कर लेती हैं मेष राशि के सूर्य में रोहीणी नक्षत्र पूर्ण अथवा जया तिथि एवं मंगलवार के दिन इस मणि को यदि किसी खेत में दो गज गहरा खोदकर गाढ़

दिया जाय और उपर से मिटी डालकर पानी सींच दिया जाए तो उस खेत में सामान्य से बीस गुना अधिेक फसल उत्पन्न होती हैं इस मणि को अगुठी में जड़वाकर धारण करने से बल तथा तेज में वृद्धि होती है तथा शारिरीक अंगों में सुगंध उत्पन्न होती है। संग गुदड़ी तथा संग पितरिया को इस मणि से उत्पन्न माना जाता है। अन्य रत्‍नों की भांति इसमें भी दोष होतें है। तथा उनका प्रभाव भी अशुभ होता है। इसलिए सदैव निर्दोष मणि ही धारण करनी चाहिए।

3 भीष्मक मणि

इस मणि के दो मुख्य भेद माने जाते है – 1 मोहिनी भीष्मक 2 कामदेव भीष्मक मणि

मोहिनी भीष्मक मणि को अमृतमणि तथा मोहिन भीषमक भी कहा जाता है। इसका रंग सरसों तथा तोरई के फूल जैसा केले के नवीन पत्र एवं गुलदाऊजी के फूल जैसा पीला भी होता है। इसमें हीरे जैसी चमक पाई जाती है। कामदेव भीष्मक मणि काली शहद जैसी, दही तथा फिटकरी के मिश्रण से बने रंग जैसी होती है। यह चिकनी, स्वच्छ, अच्छे घाट की तथा सुन्दर रंग व कान्ति वाली होती है।

जब सूर्च आद्रा नक्षत्र पर तथा चन्द्रमा मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, अथवा कुंभ राषि में हो तब मोहिनी भीष्मक मणि को रूई में लपेटकर, पूर्व दिशा की ओर, पानी में डुबा कर रख दें। फिर जब चन्द्रमा वृषभ, कर्क कन्या, वृष्चिक, अथवा मकर राशि पर आये तब मणि को पश्चिम दिशा में रखकर विधिवत् पूजन करें, ऐसा करने से श्रेष्ठ वर्षा होती है।

अगर मणि का पूजन करने से पांच दिन के भीतर ही वर्षा हो तो अच्छी होगी। यदि 10 दिन के भीतर वर्षा हो तो अनाज का भाव सस्ता होगा यह समझना चाहिए। अगर वर्षा आरम्भ होनें के बाद 5 से 10 दिन तक निरन्तर पानी बरसता रहे तो अकाल पड़ेगा – यह समझना चाहिए और यदि 24 दिन तक पानी बरसता रहे तो भारी संकट आयेगा।

मोहिनी भीष्मक को धारण करने से धन धान्य, ऐष्वर्य, शारिरीक –सुख, तथा स्त्री सुख की वृद्धि होती है। यह मणि प्रसन्नता देने वाली भी है। ‘कामदेव भीष्मक को धारण करनें से शत्रु पर विजय सम्पुर्ण कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। हद्धय रोग तथा अन्य अनेक प्रकार के रोगों को भी दूर करता है।

मोहिनी भीष्मक के संग जहरात, संग पनिया, संग वदिनी, संग सेलखड़ी, यह चार उपरत्न बताएं गये है। कामदेव भीष्मक के संगमरमर तथा संगभूरा – ये दो उपरत्न कहे गये हैं। अन्य रत्नों की भांति इस मणि में भी दोष पाये जाते है। और उनका प्रभाव भी होता है। अतः सदैव निर्दोष मणि ही धारण करें।

4 उपलक मणि

इस उपल रत्नोपाल तथा अंगे्रजी में ओपल कहते है। यह मणि शहद के समान तथा अनेक प्रकार के विभिन्न रंगो वाली होती हैं इसके उपर लाल, पीले, नीले, श्वेत, तथा हरें रंग के बिन्दू पाये जाते है। यदि इसे तेल, जल अथवा दूध में डाला जाये तो अधिक चमकती है। इस मणि को धारण करने से भक्ति, वैराग्य तथा आत्मोन्नति की प्राप्ति होती है तथा अनेक प्रकार की मनोभिलाषाएं पूर्ण होती है।

संग अजूबा तथा संग अबरी को इस मणि का उपरत्न माना जाता है। इसमें भी अन्य रत्नों की भांति दोष होतें है और उनका प्रभाव भी अशुभ होता है। अतः सदैव निर्दोष मणि को धारण करें। इसको धारण करनें से वाकसिद्धी प्राप्त होती है। ज्योतिष्यिों, हस्तरेखाविदों एवं तांत्रिकों को यह रत्न अवश्‍य धारण करना चाहिए।

5 स्फटिक मणि

इसे बिल्लौर तथा अग्रेंजी में क्वाटर्ज कहा जाता है। यह मणि श्वेत रंग की चमकदार, हल्की या भारी होती हैं इस मणि युक्त अंगूठी को धारण करनें से सुख, संतोष, रूप, बल, वीर्य की प्राप्ति होती है। यदि इस मणि की माला पर मंत्र का जप किया जाये तो वह सिद्ध हो जाता है। संग दूधिया तथा संग बिल्लौर को इस मणि का उपरत्न माना गया है। इसमें भी अन्य रत्नों की भांति दोष होते है। अैर उनका प्रभाव भी अशुभ होता है। अतः सदैव निर्दोष मणि को ही धारण करें। स्फटिक की माला गले में पहननें से धन धान्य सुख समृद्धि प्राप्त होती है।

5 स्फटिक मणि

इसे बिल्लौर तथा अग्रेंजी में क्वाटर्ज कहा जाता है। यह मणि श्वेत रंग की चमकदार, हल्की या भारी होती हैं इस मणि युक्त अंगूठी को धारण करनें से सुख, संतोष, रूप, बल, वीर्य की प्राप्ति होती है। यदि इस मणि की माला पर मंत्र का जप किया जाये तो वह सिद्ध हो जाता है। संग दूधिया तथा संग बिल्लौर को इस मणि का उपरत्न माना गया है। इसमें भी अन्य रत्नों की भांति दोष होते है। अैर उनका प्रभाव भी अशुभ होता है। अतः सदैव निर्दोष मणि को ही धारण करें। स्फटिक की माला गले में पहननें से धन धान्य सुख समृद्धि प्राप्त होती है।

6 पारसमणि

इस स्पर्षमणि तथा अंगे्रजी में फिलोस्फर्ष स्टोन कहा जाता है। इसका रंग काला होता है और इसमें सुगन्ध आती है। इस मणि को स्पर्ष करानें मात्र से ही लोहा सोना बन जाता है ऐसा माना गया है। यह मणि जिस राजा के पास होती है उसके राज्य में कोई दुखीः व रोगी नहीं रहता है। यह नैत्र ज्योति वर्धक शीतल तथा बल पराक्रम एवं तेज की वृद्धि करनें वाली कही जाती है। संग कसौटी संग टेड़ी, संग चुम्बक को इस मणि का उपरत्न माना जाता है। यह मणि मैनें
आज तक किसी के पास देखी सुनी नहीं है।

7 उलूक मणी

उल्ल रत्न भी कहा जाता है इसका रंग मटमैला तथा अंग नरम होता है। कहा जाता है कि यह मणि उल्लू के घोषलों में मिलती है परन्तु यह अभी तक किसी को मिल नहीं पाई है इस मणि को नैत्र रोग नाषक बताया जाता है। यह भी कहा जाता है कि यदि किसी अन्धे व्यक्ति को अंधेरे स्थान में जाकर तथा वहां दीप जलाकर इस मणि को उसकी आंखों से लगा दिया जाये तो उसे दिखाई देनें लगता है 1 संगवासी तथा 2 संगवसरों को इस मणि का उपरत्न माना जाता है। यह मणि भी मैनें किसी के पास देखी सुनी नहीं है, हाँ खोज में अवश्‍य हॅू।

8 लाजावर्त मणि

इसे हिन्दी में लाजावर्त, अंग्रेजी में लैपिस लैजूली कहा जाता है, इसका रंग मोरकण्ठ की भांति नीला श्याम होता है और इस पर सोनें के छींटे पाये जाते है। इस मणि को मंगलवार के दिन धारण करना चाहिए। इसके प्रभाव से बल, बुद्धि एवं शक्ति की वृद्धि होती है तथा भूत, पिषाच, दैत्य, सर्प आदि का भय दूर संगमूसा तथा संग बादल को इस मणि का उपरत्न माना जाता है। अन्य रत्नों की भांति इस मणि में भी दोष पाये जाते हैं। दोषी मणि को धारण करना अशुभ फलदायक होता है इसलिए सदैव निर्दोष मणि ही धारण करना चाहिए।

9 मासर मणि

इस मणि को अग्रेंजी में एमनी कहा जाता है। यह हकीक पत्थर जैसी होती है। यह सफेद, लाल, पीले, व काले इन चार रंगो में होती है इसमें कमल के फल जैसी चमक तथा चिकनापन पाया जाता है। इस मणि की अग्नि तथा जल ये दो जातियां होती है अग्नि वर्ण वाणी मणि को अगर सूत में लपेटकर अग्नि के ऊपर रख दिया जाये तो सूत नहीं जलता तथा जलवर्ण वाली को यदि पानी मिश्रित दूध में डाल दिया जाये तो दूध व पानी अलग अलग हो जाते है। अग्नि वर्ण मणि को धारण करने वाला व्यक्ति आग में नहीं जलता तथा जलवर्ण मणि को धारण करने वाला पानी में नहीं डूबता ऐसा कहा जाता है। यह मणि भूत प्रेत चोर शत्रु, अग्नि के भय से भी दूर करती है। इसको भी मैंने कभी नहीं देखा हैं पर सुना अवश्‍य है। संग शहीद तथा हींग हकीक को इस मणि का उपरत्न माना जाता है। अन्य रत्नों की भांति इसमें भी दोष पाये जाते है और उनका प्रभाव अशुभ होता है।

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