जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से माता-पिता व बुजुर्गों की सेवा क्यों करनी चाहिये?

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से माता-पिता व बुजुर्गों की सेवा क्यों करनी चाहिये?

माता-पिता व बुजुर्गों की सेवा क्यों करनी चाहिये?

अपने माता-पिता की सेवा न करने वाला, अपने माता-पिता को परेशान करने वाला, उन्हें दुःखी करने वाला कभी महान नहीं बन सकता है।
ऐसा व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग में तो कभी भी तरक्की नहीं कर सकता। श्रीमद् भागवतम् के अनुसार गोकर्ण जब काफी लम्बी तपस्या के बाद घर आये तो उन्होंने देखा कि उनका घर तो सुनसान पड़ा है। एक दम विरानी छायी हुई है।

उन्होंने जब भीतर प्रवेश किया तो एक दम खाली था, उनका घर। किसी प्रकार से रात रुकने की व्यवस्था की। रात को बहुत डरावनी आवाज़ें उन्हें आने लगीं। जैसे अचानक कोई जंगली सूयर उनके कमरे के अन्दर भागा आ रहा हो। फिर उल्लू व बिल्ली के रोने की आवाज़ें आने लगीं।
गोकर्ण समझ गये की यह क्या है? वे कड़कती आवाज़ में बोले – कौन हो तुम? क्या बात है?
गोकर्ण की कड़कड़ती आवाज़ सुन कर, अचानक रोने की आवाज़ आने लगी। दिख कुछ नहीं रहा था, बस आवाज़ आ रही थी।
फिर वो आवाज़ बोली – भाई! मैं धुंधकारी हूँ। मैं आपका भाई धुंधकारी। मैं बहुत कष्ट में हूँ। मैं बहुत परेशान हूँ। मुझे भूख लगती है, मैं कुछ खा नहीं सकता हूँ। प्यास लगती है तो भी मैं पी नहीं पाता हूँ। हालांकि मेरा शरीर नहीं है किन्तु मुझे ऐसा ही लगता रहता है जैसे मैं जल रहा हूँ। हवा के थपेड़ों से मैं कभी इधर होता हूँ तो कभी उधर। मैं एक स्थान पर टिक भी नहीं पाता हूँ। मेरे भाई! मैं बहुत कष्ट में हूँ। मैं एक प्रेत बन गया हूँ।
गोकर्ण जी कहते हैं — धुंधकारी! तुम प्रेत कैसे हो सकते हो? तुम्हारा तो गया तीर्थ में, पिण्ड दान किया है, मैंने।

धुंधकारी – मैंने पिताजी को इतना परेशान किया की वे सह नहीं पाये, और मेरी वजह से जंगलों में चले गये। उनके जाने के बाद मैं शराब के लिये, मीट इत्यादि खाने के लिये, माँ से पैसे लेता था। माँ, जब मना करती थी तो मैं माँ को मारता था। माँ मेरे अत्याचारों से, मेरे खराब व्यवहार से, इतना दुःखी हुई की उसने कुएँ में छलांग लगा कर आत्म-हत्या कर ली।
भैया! जिसने अपने माता-पिता को इतना कष्ट दिया हो, उसका पिण्ड दान से कल्याण कैसे हो सकता है? भैया! आप कुछ और उपाय सोचें।
धुंधकारी का कैसे भला हो सकता है, उसके लिये गोकर्णजी ने सूर्य देव से

सलाह की। सूर्य देव जी ने कहा – गोकर्ण! भगवद्- भक्ति ही, श्रीमद् भागवतम् कथा अथवा श्रीकृष्ण की कथा ही धुंधकारी का कल्याण कर सकते हैं, और अन्य कोई उपाय नहीं है।
उसके उपरान्त श्रीगोकर्ण जी ने गाँव के सभी लोगों को इकट्ठा कर, श्रीमद् भागवतम् कथा का आयोजन किया। भगवान श्रीकृष्ण की महिमा कीर्तन का अयोजन किया। वहीं पर एक बांस गाढ़ दिया, ताकि उसमें धुंधकारी रह सके। हवा के थपेड़ों की वजह से वो हरिकथा से वंचित न हो।
इस तरह श्रीकृष्ण महिमा श्रवण करके, श्रीमद् भागवतम् की कथा सुनकर धुंधकारी का कल्याण हुआ।
अन्यथा उसने तो जीवन में इतने पाप किया थे, कि उनसे मुक्त होना उसके लिये असम्भव था। क्योंकि जिन माता-पिता ने हमें जन्म दिया, जिन माता-पिता ने इतने कष्टों के साथ हमें पढ़ाया-लिखाया, बड़ा किया, जिन माता-पिता ने हमारे सुख के लिये अपने सुखों को छोड़ा, उन माता-पिता की अगर कोई सेवा न करे, उन माता-पिता को कोई कष्ट दे अथवा परेशान करे तो भगवान कैसे सहन करेंगे?
इसलिये माता-पिता की सेवा न करने वाला, माता-पिता को परेशान करने वाला, अपने माता-पिता को कष्ट देने वाला कभी भी महान नहीं बन सकता।

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