जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से मृत्यु के बाद क्यों जल्दी होती है लाश को जलाने की जाने

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से मृत्यु के बाद क्यों जल्दी होती है लाश को जलाने की जाने



जब भी हमारे परिचित या किसी अपने की मृत्यु होती है तो इसका गहरी पीड़ा होती है .. लेकिन फिर भी मत्यु के साथ ही उसके अंतिम संस्कार की तैयारियों में लग जाते हैं। कल तक जिसे जीवित रूप में हम अपना मानते थे आज वही सिर्फ एक लाश बनकर रह जाता है और ऐसे में घर वालों से लेकर गांव और मोहल्ले वालों की यही कोशिश रहती है कि जल्द से जल्द व्यक्ति की चिता जलाई जाए। ऐसे में क्या आपके मन में ये प्रश्न आया है कि आखिर सभी को मृत व्यक्ति की लाश जलाने की इतनी जल्दी क्यों रहती है।अगर आप इसके विषय में नही जानते हैं तो चलिए आज आपको बताते हैं कि आखिर किसी मौत के बाद लोगों को क्यों जल्दी रहती है उसकी लाश जलाने की, इसके साथ ही जानते हैं अंतिम संस्कार के महत्व को..

सनातन धर्म में मनुष्य के लिए जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार बताए गए हैं.. जिसमें आ‌‌ख‌िरी संस्कार है मृत्यु के बाद होने वाला अंतिम संस्कार है। शास्‍त्रों में अंत‌िम संस्कार को बहुत महत्व द‌िया गया है माना जाता है क्योंक‌ि इसी के जरिए मृत व्यक्त‌ि की आत्मा को परलोक में उत्तम स्थान और मिलता है। गरुड़ पुराण में मृत्यु और अंतिम संस्कार के विषय में बहुत सारी बाते वर्णित हैं,गरूण पुराण की माने तो अगर किसी मृत व्यक्त‌ि का अंत‌िम संस्कार नहीं होता है तो उसकी आत्मा को मुक्ति नही मिलती और मृत्‍यु के बाद वो प्रेत बनकर भटकती रहती है और कष्ट भोगती है।

गरूण पुराण में अंतिम संस्कार के महत्व बताते हुए ये कहा गया है कि अंतिम संस्कार करने से इसका लाभ मृत्यु व्यक्ति के साथ उसको परिजनों को भी मिलता है। गरुड़ पुराण की माने तो अंतिम संस्कार का इतना महत्व है कि अगर कोई व्यक्ति दुष्ट भी हो तो, उसका सही ढंग से अंतिम संस्कार कर देने पर उसकी दुर्गति नहीं होती है बल्कि उसकी आत्मा को मुक्ति और शान्ति मिल जाती है।

अंतिम संस्कार के महत्व के साथ गरुड़ पुराण में ये बात कही गई है की जब तक गांव या मोहल्ले के किसी भी घर कोई लाश पड़ी रहती है तब तक पूरे गांव-मोहल्ले में कोई शुभ कार्य नही हो सकता.. ना ही किसी घर में पूजा होती है और ना ही चूल्हा जलता है!.. इसके अलावा उस दौरान स्नान-ध्यान जैसा कोई शुभ काम नही किया जा सकता है। गरूण पुराण की इसी मान्यता के चलते किसी की मृत्यु होते ही लोग शीघ्र ही उसका अंतिम संस्कार करने की कोशिश करते हैं। साथ ही अगर किसी कारण वश अंतिम संस्कार में देरी होती है तो फिर लाश की विशेष रखवाली करते हैं ताकि कोई जीव-जन्तु उसे छू ना ले छुले क्योंकि इससे उसकी दुर्गति होती है।

अंतिम संस्कार के दौरान पिंड दान का भी विशेष महत्व है.. चिता जलाने से पहले घर में और रास्ते में पिंड दान करने से व्यक्ति के गृह देवता, वास्तु देवता, के साथ पिशाच प्रसन्न हो जाते हैं और इस तरह लाश अग्नि में समर्पित करने योग्य होती है।

इन सारे कर्मकाण्डों के बाद अंतिम शैया पर रखते वक्त लाश के हाथ और पैर बाँध दिए जाते है, इसके बारे में मान्यता है की ऐसा करने से बुरी ताकतें और नकारात्मक शक्तियां लाश पर अपना प्रभाव नही डाल पाती हैं। इसके साथ चिता जलाने में चन्दन और तुलसी की लकड़ियों का प्रयोग करने का विधान है, इसे काफी शुभ माना जाता है और ये जीवात्मा को दुर्गति से बचाता है।

इस तरह पूरे विधि विधान से गरूण पुराण में अंतिम संस्कार की करने की रीति बताई गयी है जबकि आज के आधुनिक समय ये पुराने रीति-रिवाज और कायदे लोग भूलते जा रहे हैं लेकिन ऐसा नही होना चाहिए और मृत व्यक्ति के साथ साथ उसके अपनो के लिए भी अंतिम संस्कार का महत्व समझते हुए इसे पूरी विधि विधान से सम्पादित करना चाहिए।

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