जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से पंचकन्याओं का रहस्य……

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से पंचकन्याओं का रहस्य……



अहिल्या द्रोपदी कुन्ती तारा मन्दोदरी तथा
पंचकन्या स्वरानित्यम महापातका नाशका

पुराणानुसार ये पाँच स्त्रियाँ जो विवाहिता होने पर भी कन्याओं के समान ही पवित्र मानी गई है। अहल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा और मंदोदरी

हिन्दू धर्म से जुड़ी पौराणिक कथाओं में ज्यादातर प्रसिद्ध पात्र पुरुषों के ही हैं। पुरुषों को ही महायोद्धा, अवतार आदि का दर्जा दिया गया और उन्हीं से जुड़े चमत्कारों का भी वर्णन हुआ। लेकिन उनके जीवन से जुड़ी महिलाएं, जिनके बिना उनका अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना तक मुश्किल था, उन्हें मात्र एक भूमिका में लाकर छोड़ दिया गया।

पौराणिक स्त्रियां यही वजह है कि मंदोदरी को असुर सम्राट रावण की अर्धांगिनी के तौर तारा को वाली की पत्नी के तौर पर, अहिल्या को गौतम ऋषि की पत्नी के रूप में, कुंती और द्रौपदी को पांडवों की माता और पत्नी के रूप में ही जाना जाता है।

पंचकन्या हिन्दू धर्म में इन पांचों स्त्रियों को पंचकन्याओं का दर्जा दिया गया है। जिस स्वरूप में हम अपने पौराणिक इतिहास को देखते हैं, उसे विशिष्ट स्वरूप को गढ़ने का श्रेय इन स्त्रियों को देना शायद अतिश्योक्ति नहीं कहा जाएगा।

पंचकन्याओं का जीवन मंदोदरी, अहिल्या और तारा का संबंध रामायण काल से है, वहीं द्रौपदी और कुंती, महाभारत से संबंधित हैं। ये पांचों स्त्रियां दिव्य थीं, एक से ज्यादा पुरुषों के साथ संबंध होने के बाद भी इन्हें बेहद पवित्र माना गया। आइए जानते हैं कौन थी ये पंचकन्याएं और क्या था इनका जीवन।

अहिल्या गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या को अहल्या नाम से भी जाना जाता है। बहुत से लोग अहिल्या को पंचकन्याओं में सबसे प्रमुख मानते हैं। कई दस्तावेजों में यह उल्लिखित है कि अहिल्या को स्वयं ब्रह्मा ने बनाया था, वहीं कुछ दस्तावेज यह कहते हैं कि उनका संबंध सोमवंश से था।

अहिल्या की खूबसूरती से स्वयं देवता इन्द्र भी खुद को बचा नहीं पाए और एक बार उन्होंने ऐसा किया जिसका खामियाजा स्वयं अहिल्या को भुगतना पड़ा।

इन्द्र का जाल एक बार गौतम ऋषि की अनुपस्थिति में देवराज इन्द्र उनका वेश लेकर आश्रम में प्रवेश कर, अहिल्या के सामने प्रणय निवेदन करते हैं। अहिल्या, इन्द्र की असलियत जानने के बाद भी उनके साथ संबंध स्थापित करती हैं।

अहिल्या का घमंड कई जगह इस बात का उल्लेख है कि जब अहिल्या यह जान लेती हैं कि उनके पति के वेश में इन्द्र उनके सामने प्रणय निवेदन कर रहे हैं, तो उन्हें इस बात पर घमंड होने लगता है कि स्वयं इन्द्र उनके प्रति आकर्षित हुए हैं। इसी कारण वे संबंध स्थापित करने की अनुमति दे देती हैं। वहीं कुछ दस्तावेज यह कहते हैं देवी अहिल्या ने इन्द्र को अपना पति मानकर ही उनके साथ संबंध स्थापित किए थे।

गौतम ऋषि का क्रोध जब गौतम ऋषि ने इन्द्र को अपने ही वेश में अपने आश्रम से निकलते हुए देखा तब वह सारी बात समझ गए। क्रोधावेग में उन्होंने अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बन जाने का श्राप दिया और कहा कि जब तक स्वयं भगवान राम अपने पैरों से उन्हें नहीं छुएंगे, तब तक अहिल्या इंसानी रूप धारण नहीं कर पाएगी। यह श्राप देकर गौतम ऋषि तप करने के लिए हिमालय की ओर प्रस्थान कर गए।

राम द्वारा उद्धार गुरू विश्वामित्र के साथ विचरण करते हुए राम ने गौतम ऋषि के सुनसान पड़े आश्रम पहुंचे। जहां उन्हें अहिल्या रूपी पत्थर दिखा। विश्वामित्र ने राम को सारी घटना बताई, जिसे सुनकर राम ने अहिल्या का उद्धार किया।

तारा किष्किंधा की महारानी और वालि की पत्नी तारा का पंचकन्याओं में दूसरा स्थान है। कुछ ग्रंथों के अनुसार तारा, बृहस्पति की पौत्री थीं तो कुछ के अनुसार समुद्र मंथन के समय निकली मणियों में से एक मणि तारा थी। तारा इतनी खूबसूरत थी कि देवता और असुर सभी उनसे विवाह करना चाहते थे।

वालि की पत्नी वालि और सुषेण, मंथन में देवताओं के सहायक के तौर पर मौजूद थे। जब तारा क्षीर सागर से निकली तब दोनों ने ही उनसे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। वालि, तारा के दाहिनी तरफ खड़ा था और सुषेण उनकी बाईं ओर। तब विष्णु ने इस समस्या का हल किया कि जो व्यक्ति कन्या की दाहिनी ओर खड़ा होता है वह उसका पति और बाईं ओर खड़ा होने वाला उसका पिता होता है। ऐसे में वालि को तारा का पति घोषित किया गया।

सुग्रीव के साथ युद्ध असुरों के साथ युद्ध के दौरान वालि के मृत्यु को प्राप्त जैसी अफवाह उड़ने पर सुग्रीव ने वालि की पत्नी के साथ विवाह कर खुद को किष्किंधा का सम्राट घोषित कर दिया। लेकिन जब वालि वापस आया तब उसने अपने भाई से राज्य और अपनी पत्नी को हासिल करने के लिए आक्रमण कर दिया।

वालि ने सुग्रीव को अपने राज्य से बाहर कर दिया और साथ ही उसकी प्रिय पत्नी रुमा को अपने पास ही रखा। जब सुग्रीव को राम का साथ प्राप्त हुआ तब उसने वापस आकर फिर वालि को युद्ध के लिए ललकारा।

तारा का सुझाव तारा समझ गई कि सुग्रीव के पास अकेले वालि का सामना करने की ताकत नहीं है इसलिए हो ना हो उसे राम का समर्थन प्राप्त हुआ है। उसने वालि को समझाने की कोशिश भी की लेकिन वालि ने समझा कि सुग्रीव को बचाने के लिए तारा उसका पक्ष ले रही है। वालि ने तारा का त्याग कर दिया और सुग्रीव से युद्ध करने चला गया।

वालि का कथन जब राम की सहायता से सुग्रीव ने वालि का वध किया तो मृत्यु शैया पर रहते हुए वाली ने अपने भाई सुग्रीव से कहा कि वे हर मामले में तारा का सुझाव अवश्य ले, तारा के परामर्श के बिना कोई भी कदम उठाना भारी पड़ सकता है।

मंदोदरी तीसरा नाम है असुर सम्राट रावण की पत्नी मंदोदरी का, जिसने रावण की हर बुरे कदम पर खेद प्रकट किया और उसे हर बुरा काम करने से रोका। हिन्दू धर्म से जुड़े दस्तावेजों में मंदोदरी को एक ऐसी स्त्री के रूप में दर्शाया गया है जो हमेशा सत्य के मार्ग पर चली। मंदोदरी, असुर राजा मयासुर और हेमा नामक अप्सरा की पुत्री थी। मंदोदरी की सुंदरता पर मुग्ध होकर रावण ने उससे विवाह किया था।

रावण की नजरअंदाजगी पंच कन्याओं में से एक मंदोदरी को चिर कुमारी के नाम से भी जाना जाता है। मंदोदरी अपने पति द्वारा किए गए बुरे कार्यों से अच्छी तरह वाकिफ थी, वह हमेशा रावण को यही सलाह देती थी कि बुराई के मार्ग को त्याग कर सत्य की शरण में आ जाए, लेकिन अपनी ताकत पर गुमान करने वाले रावण ने कभी मंदोदरी की बात को गंभीरता से नहीं लिया।

सीता को श्राप रावण की मृत्यु के पश्चात, भगवान राम के कहने पर विभिषण ने मंदोदरी से विवाह किया था। कुछ ग्रंथों में यह भी उल्लेख मिलता है कि मंदोदरी ने सीता को यह श्राप दिया था कि उनका पति उन्हें त्याग देगा।

कुंती रामायण काल के बाद चौथा नाम आता है कुंती का। हस्तिनापुर के राजा पांडु की पत्नी और तीन ज्येष्ठ पांडवों की माता, कुंती को ऋषि दुर्वासा ने एक ऐसा मंत्र दिया था, जिसके अनुसार वह जिस भी देवता का ध्यान कर उस मंत्र का जाप करेंगी, वह देवता उन्हें पुत्र रत्न प्रदान करेगा।

मंत्र का प्रभाव कुंती को इस मंत्र के प्रभावों को जानना था इसलिए एक दिन उन्होंने भगवान सूर्य का ध्यान कर उस मंत्र का जाप आरंभ किया। सूर्य देव ने प्रकट हुए और उन्हें एक पुत्र प्रदान किया। वह पुत्र कर्ण था, लेकिन उस समय कुंती अविवाहित थी इसलिए उन्हें कर्ण का त्याग करना पड़ा।

पांडु की मौत स्वयंवर में कुंती और पांडु का विवाह हुआ। पांडु को एक ऋषि द्वारा यह श्राप मिला हुआ था कि जब भी वह किसी स्त्री का स्पर्श करेगा, उसकी मृत्यु हो जाएगी। पांडु की मृत्यु के पश्चात कुंती ने धर्म देव को याद कर उनसे युद्धिष्ठिर, वायु देव से भीम और इन्द्र देव से अर्जुन को प्राप्त किया।

मादरी की प्रार्थना पांडु की दूसरी पत्नी मादरी ने कुंती से इस मंत्र का जाप कर पुत्र प्राप्त करने की अनुमति मांगी, जिसे कुंती ने स्वीकार कर लिया। अश्विनी कुमार को याद कर मादरी ने उनसे नकुल और सहदेव को प्राप्त किया।

द्रौपदी महाभारत की नायिका द्रौपदी भी पंच कन्याओं में से एक हैं। पांच पतियों की पत्नी बनने वाली द्रौपदी का व्यक्तित्व काफी मजबूत था। स्वयंवर में के दौरान अर्जुन को अपना पति स्वीकार करने वाली द्रौपदी को कुंती के कहने पर पांचों भाइयों की पत्नी बनकर रहना पड़ा।

काली का अवतार द्रौपदी को वेद व्यास ने यह वरदान दिया था कि पांचों भाइयों की पत्नी होने के बाद भी उसका कौमार्य कायम रहेगा। प्रत्येक पांडव से द्रौपदी को एक-एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। चौपड़ के खेल में हारने के बाद जब पांडवों को अज्ञातवास और वनवास की सजा हुई, तब द्रौपदी ने भी उनके साथ सजा का पालन किया। कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने पुत्र, पिता और भाई को खोने वाली द्रौपदी को कुछ ग्रंथों में मां काली तो कुछ में धन की देवी लक्ष्मी का अवतार भी कहा जाता है।

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