जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से (ज्योतिष और रोग)मिथुन लग्न में रोगों के संभावित योग….

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से (ज्योतिष और रोग)मिथुन लग्न में रोगों के संभावित योग….



पिछले लेख के माध्यम से हमने वृष लग्न में होने वाले संभावित रोगों के विषय मे जानकारी दी थी। आज हम मिथुन लग्न में होने वाले संभावित रोगों की व्याख्या करेंगे।

मिथुन लग्न और रोग

मिथुन लग्न में ष्टेश मंगल लग्न में पापग्रहों से दृष्ट हो तो व्यक्ति जलस्राव मे
अंधा होता है।

मिथुन लग्न के चौथे भाव में पापग्रह हो तथा चतुर्थश बुध पापग्रहों के मध्य रे
तो जातक को हृदय रोग होता है।

मिथुन लग्न में चतुर्थेश बुध अष्टमेश शनि के साथ अष्टम स्थान में हो तो जातका
को हृदय रोग होता है।

मिथुन लग्न में चतुर्थेश बुध कर्क या मीन राशि में हो, अस्त हो तो जातक को
तीव्र हृदय रोग होता है।

मिथुन लग्न में शनि चौथे कन्या का, षष्टेश मंगल एवं सूर्य पापग्रहों के मध्य हो
तो जातक को हदय रोग है।

मिथुन लग्न में चतुर्थ एवं पंचम भाव में पापग्रह हो तो व्यक्ति को हृदय रोग होता
है।

मिथुन लग्न में कन्या का शनि चौथे एवं कुंभ का सूर्य नवमें हो तो व्यक्ति को
हृदय रोग होता है।

मिथुन लग्न में चतुर्थ स्थान में राहु अन्य पापग्रहों से दृष्ट हो तथा लग्नेश बुध
निर्बल हो तो जातक को असह्य हृदय शूल (हार्ट-अटैक) होता है ।

मिथुन लग्न में वृश्चिक का सूर्य दो पापग्रहों के मध्य हो तो जातक को तीव्र
(हार्ट-अटैक) होता है ।

मिथुन लग्न में बुध+ शनि + मंगल की युति एक साथ दुःस्थानों में हो तो वाहन
दुर्घटना से जातक की मृत्यु होती है।

मिथुन लग्न में पापग्रह हो, लग्न का स्वामी बुध बलहीन हो तो व्यक्ति रोगी रहता
है।

मिथुन लग्न में क्षीण चंद्रमा बैठा हो, लग्न पर पापग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति रोगी
रहता है।

अष्टमेश शनि लग्न में एवं लग्नेश बुध अष्टम में हो लग्न पर पापग्रह की दृष्टि हो
तो व्यक्ति दवाई लेने पर भी ठीक नहीं होता, सदैव रोगी बना रहता है।

मिथुन लग्न में लग्नेश बुध चौथे या द्वादश भाव में शनि + मंगल के साथ हो तो
जातक कुष्ठ रोग से पीड़ित होता है।

मिथुन लग्न में शनि + चंद्रमा से युत होकर बृहस्पति छठे भाव में स्थित हो तो
जातक कुष्ठ रोग से पीड़ित होता है।

मिथुन लग्न में अष्टमेश शनि सातवें हो, चंद्रमा पापग्रहों के साथ छठे या आठवें
हो तो व्यक्ति 58 वर्ष की आयु में गुजर जाता है।

मिथुन लग्न में शनि अन्य किसी भी ग्रह के साथ लग्नस्थ हो, चंद्रमा अष्टम या
द्वादश स्थान में हो तो व्यक्ति सैद्धांतिक एवं विद्वान् होता हुआ 52 वर्ष की आयु
में गुजर जाता है।

मिथुन लग्न में लग्नेश बुध पापग्रहों के साथ आठवें हो तथा अष्टमेश शनि
पापग्रहों के साथ छठे स्थान में, शुभग्रहों से दृष्ट न हो तो ऐसा जातक मात्र 45
वर्ष तक ही जी पाता है।

मिथुन लग्न में शनि+मंगल हो, चंद्रमा आठवें, बृहस्पति छठे हो तो जातक
32वर्ष की अल्पायु को प्राप्त होता है।

मिथुन लग्न के द्वितीय एवं द्वादश भाव में पापग्रह हो, लग्नेश बुध निर्बल हो तथा लग्न, द्वितीय या द्वादश भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो जातक मात्र 32 वर्ष की
अल्पायु को प्राप्त करता है।

मिथुन लग्न में शनि +मंगल दूसरे स्थान में, तृतीय स्थान में राहु, शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो ‘बालारिष्ट योग’ बनता है। ऐसे बालक की एक वर्ष के भीतर मृत्यु होती
है।

मिथुन लग्न के चौथे स्थान में राहु एवं छठे स्थान में चंद्रमा शुभ ग्रहों से दृष्ट न
हो तो ‘बालारिष्ट योग’ बनता है। ऐसा बालक आठ वर्ष के भीतर मृत्यु को प्राप्त
हो जाता है।

मिथुन लग्न में बुध सूर्य से अस्त हो, अष्टमेश शनि पापग्रहों के साथ छठे स्थान
में हो, मारकेश चंद्रमा पापग्रह के साथ द्वादश भाव में हो तो जातक की मृत्यु 51
वें वर्ष में फांसी के द्वारा होती है।

मिथुन लग्न में मंगल+सूर्य+ शनि अष्टम स्थान में, शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो
‘बालारिष्ट योग’ बनता है । उपाय न करने पर ऐसे बालक की मृत्यु एक वर्ष में
हो जाती है।

मिथुन लग्न में सूर्य मकर में तथा शनि सिंह में परस्पर स्थान परिवर्तन करके वैदे
हों एवं शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो ‘बालारिष्ट योग’ बनता है। ऐसे जातक की मृत्यु 12 वर्ष के पूर्व हो जाती है।

मिथुन लग्न के आठवें स्थान में सूर्य + मंगल हो, लग्नेश निर्बल हो तो
‘बालारिष्ट योग’ बनता है। शीघ्र उपाय न करने पर ऐसा बालक एक मास में ही
गुजर जाता है।

मिथनु लग्न में राहु+ शनि+ बुध द्वादश में हो, गुरु पंचम या अष्टम में हो, अन्य
शुभयोग न हो तो ऐसा बालक जन्म लेते ही गुजर जाता है।

मिथुन लग्न के आठवें स्थान में सूर्य + राहु+ बृहस्पति + मंगल हो, तथा शुक्र
सातवें हो तो ऐसा जातक बहुत कष्ट से जीता है। उसके शरीर में शारीरिक
रुग्णता बनी रहती है।

मिथुन लग्न के द्वितीय स्थान में मंगल के साथ राहु या केतु हो तो ऐसा बालक
‘मातृघातक’ होता है।

मिथुन लग्न के एकादश स्थान में शनि के साथ राहु या केतु हो तो ऐसा जातक
‘मातृघातक’ होता है।

मिथुन लग्न में लग्नेश बुध एवं लग्न दोनों पापग्रहों के मध्य हों, सप्तम में पापग्रह हो तथा आत्मकारक सूर्य निर्बल हो तो जातक जीवन में निराश होकर
‘आत्महत्या’ करता है।

मिथुन लग्न में षष्टेश मंगल सप्तम या दसम भाव में हो, लग्न पर क्रूर ग्रह की
दृष्टि हो तो जातक शत्रुकृत अभिचार से पीड़ित रहता है ।

मिथुन लग्न में चंद्रमा पापग्रहों के मध्य हो, शनि सप्तम में हो तो जातक देवता
के शाप अथवा शत्रुकृत अभिचार से पीड़ित रहता है ।

मिथुन लग्न में निर्बल चंद्रमा अष्टम में शनि के साथ हो तो जातक प्रेत बाधा एवं
शत्रुकृत अभिचार से पीड़ित रहता है तथा अकाल मृत्यु को प्राप्त करता है।

क्रमश… अगले लेख के माध्यम से कर्क में होने वाले संभावित रोगों के विषय मे चर्चा करेंगे।

नॉट जन्म कुंडली मे उपरोक्त योग किसी भी एक या दो ग्रह के उच्च अथवा शुभ होने पर परिवर्तित भी हो सकते है लेकिन इन योगों का फल कम या अधिक मिलता अवश्य है। ऐसा बहुत कम ही देखा गया है कि उपरोक्त योग वाले जातकों पर ये नियम मान्य ना हो।

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