जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से (ज्योतिष चर्चा) तुला राशि एवं लग्न परिचय…..

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से (ज्योतिष चर्चा) तुला राशि एवं लग्न परिचय…..



तुला लग्नोदये जातः सुधी: सत्कर्मजीविक:।
विद्वान सर्वकलाभिज्ञो धनाढ्यों जनपूजितः।।
गुणाधिकत्वाद द्रविणोप्लब्धि वाणिज्य कर्म व्याति नै पुणत्वम।
पदमालय तन्नीलये न लोला लग्न चेत्सकुलावतं स:।।

अर्थात तुला लग्न (राशि) में उत्पन्न जातक बुद्धिमान अच्छे कर्मों से आजीविका उपार्जन करने वाला विद्वान अनेक कलाओं में निपुण धनी व्यवहार कुशल तथा कुल में श्रेष्ठ होता है।

राशि चक्र में तुला सातवी राशि है। भचक्र में इस राशि का विस्तार 180 डिग्री अंश से 210 डिग्री अंश तक है। इस राशि का अधिपति स्वामी ग्रह शुक्र है। जो सौर मंडल में सर्वाधिक चमकने वाला आकाशीय पिंड है। आकाश मंडल में तुला राशि कन्या राशि से दक्षिण पूर्वी भाग में है तथा राशि का निवास (संबंध) वस्ती / नाभि के नीचे आसपास गुर्दो एवं मूत्राशय है। इस राशि के अंतर्गत चित्रा नक्षत्र के अंतिम दो पाद, स्वाति के चारों पाद, तथा विशाखा के प्रथम तीन पाद आते हैं। चित्रा का स्वामी मंगल स्वाति का राहु तथा विशाखा का स्वामी गुरु माना जाता है।

इस नक्षत्र चरणों के नामाक्षर इस प्रकार हैं।
रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते।

लग्न एवं लग्नेश के अतिरिक्त जन्म एवं नाम राशि व उसके नक्षत्र स्वामी का भी जातक के जीवन पर विशेष प्रभाव रहता है।
इसके अतिरिक्त किसी जातक के जन्म समय का लग्न स्पष्ट जिस नक्षत्र के अनुसार (पाद) चरण पर होता है। उस नक्षत्र भाग के स्वामी के अनुरूप भी जातक के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। यद्यपि राशि स्वामी या लग्नेश शुक्र का प्रभाव ग्रह स्थिति के अनुसार रहता ही है। इसके अतिरिक्त जातक के लग्न संबंधित होरा, द्रेष्काण, नवमांश, त्रिशांश, आदि षडवर्ग कुंडलियों का विश्लेषण कर लेने से जातक के व्यक्तित्व माता-पिता भाई-बहन स्त्री संतान आदि सुखों के संबंध में और अधिक क्षमता एवं स्पष्टता आ जाती है। उदाहरणत: यदि किसी जातक का जन्म तुला लग्न 3 अंश पर हो उसका प्रथम द्रेष्काण तुला का ही होगा तथा द्रे० कु० में यदि शुक्र चंद्र शनि आदि स्त्रीकारक ग्रहों में परस्पर संबंध हो तो जातक को प्रथम बहन का सुख अवश्य होगा। इसी भांति नवांश में भी प्रथम तुला का ही नवांश होने से नवांश लग्न वर्गोत्तम राशि का माना जाएगा जो कि विवाह के बाद सुंदर स्त्री धन लाभ व भाग्य उन्नतिनाड़ी सुखों में वृद्धिकारक होगा। अस्तु इसी भांति अन्य वर्ग कुंडलियों का विश्लेषण करना चाहिए।

तुला राशि के अन्य पर्यायवाची नाम तौली, वणिक, तुलाधर, पण्याजीव, युक इत्यादि उर्दू में मेजान तथा अंग्रेजी में लिब्रा (libra) कहते हैं।

तुला राशि सौंदर्य एवं संतुलन की राशि है। आकाश मंडल में इसका स्वरूप श्वेत वस्त्र धारी पुरुष के हाथ में तराजू धारण किए हुए एक श्वेत वस्त्र धारी पुरुष की भांति है। इसकी स्थिति कन्या राशि के दक्षिण-पूर्वी भाग में है। तुला न्याय प्रिय राशि मानी जाती है। क्योंकि इसका चिन्ह निशान तराजू है। जो कि न्याय का प्रतीक है। यह बृहतकाय राशि, पुल्लिंग,( पुरुष जाति) चरसंज्ञक, वायु तत्व प्रधान, युवावस्था वाली, नीलवर्ण, क्रूर लेकिन विचारशील स्वभाव, दिन में बलि, रजोगुणी, त्रिधातु प्रकृति, विषम संख्या, शूद्र जाति (मतांतर में वैश्य जाति) अल्प सीमित संतान, शीर्षोदय एवं पश्चिम दिशा की स्वामिनी है। शनि तुला राशि में 20 अंश पर परमोच्च तथा सूर्य इस राशि पर परम नीच अवस्था में माना जाता है। शुक्र इस राशि पर 1 से 10 अंश तक मूल त्रिकोण तथा 10 अंश से 30 अंश तक स्वराशिगत माना जाता है। निरयण सूर्य गोचर प्रतिवर्ष 17 अक्टूबर से 15 नवंबर के मध्य इस राशि में संचार करता है। फलित ज्योतिष अनुसार तुला राशि सूर्य की नीच राशि मानी जाती है अर्थात इस समय अवधि में तुला राशि पर शुभ विकर्णीय प्रभाव नहीं पड़ते।

तुला राशि के गुण एवं सामान्य विशेषताएं👉 तुला न्याय एवं अनुशासनप्रिय राशि है। क्योंकि इसका चिन्ह समभाग में रखा हुआ तराजू है। जो कि न्याय का प्रतीक है। यह सौंदर्य न्याय एवं संतुलन की राशि मानी जाती है। जातक सौम्य एवं हंसमुख मिलनसार, शांतिप्रिय, वैश्य जाति होने से व्यवहार कुशल, लेनदेन में स्पष्ट एवं इमानदार, सतर्क एवं मध्यस्थता के कार्य में निपुण होगा, चर एवं वायु तत्व राशि होने से संवेदनशील, भावुक परंतु दयालु परिस्थिति अनुसार स्वयं को ढाल लेने वाला, स्त्री वर्ग, सिनेमा, संगीत, अभिनय आदि कलाओं में विशेष रुचि होगी। यह राशि न्याय नीति धर्म एवं स्मृति आदि शास्त्रों का भी प्रतिनिधित्व करती है।

तुला लग्न-प्रमुख विशेषताएं

शारीरिक संरचना एवं व्यक्तित्त्व तुला लग्न में जन्म लेने वाला जातक सुंदर एवं श्वेतवर्ण, मध्यम या ऊंचा कद, शुक्र की स्थिति अनुसार कुछ लंबा एवं कुछ लंबाई लिए हुए सुंदर आयताकार चेहरा, संतुलित शरीर रचना, भूरि या नीली आंखें, तीखे नयन नक्श तथा आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होगा अधिक आयु में भी युवा दिखाई देने वाला चेहरा होगा, बाल्यकाल में प्रायः दुबला किन्तु दृढ़ अस्थि एवं पुष्ट होगा तथा आयु वृद्धि के साथ-साथ संतुलित एवं स्वस्थ शरीर तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला होगा। तुला जातक प्रायः हंसमुख तथा दूसरों के मनोभावों को समझने तथा अपने विचार भी समझाने में कुशल होते हैं।
स्वभावगत चारित्रिक विशेषताएं तुला लग्न में उत्पन्न जातक सौंदर्य प्रिय, न्यायशील, शांतिप्रिय, ईमानदार, विचारशील, तीव्र बुद्धिमान, धर्म परायण, विनम्र, प्रियभाषी, स्पष्ट वादी एवं बातचीत करने में कुशल होगा। कुंडली में शुक्र के साथ चंद्र बुध एवं शनि ग्रह भी शुभस्थ हो तो जातक कल्पनाशील आदर्श एवं आशावादी दृष्टिकोण, उच्च अभिलाषी, अपने पहनावे एवं रहन सहन के प्रति विशेष सावधान, दयालु और उदार हृदय, परिस्थिति के अनुसार स्वयं को ढाल लेने वाला कुछ खर्चीले स्वभाव का भ्रमण प्रिय संगीत कलाकारों एवं साहित्यिक रुचियों के बावजूद क्रय विक्रय एवं तर्क वितर्क करने में कुशल होते हैं। इसके अतिरिक्त दूसरे मनुष्यों के मनोभावों को जान लेने में भी कुशल होते हैं। किसी अन्य व्यक्ति विशेष कर महिला वर्ग के साथ व्यवहार करते समय शिष्टता एवम् शालीनता को नहीं भूलते। नए नए संपर्क एवं मित्र बनाने में भी कुशल होते हैं। मानसिक एवं काल्पनिक शक्ति प्रबल होती है। परंतु मन की केंद्रीय शक्ति अधिक देर तक नहीं रहती। जब तक किसी कार्य में लगा रहे पूरे मनोयोग के साथ लगा रहेगा। परंतु अपने विचार या कार्य योजना में परिवर्तन करने में भी शीघ्र तैयार हो जाता है। तुला प्रधान व्यक्ति किसी प्रकार के अनुचित दबाव को सहन नहीं कर सकता। स्वच्छंद प्रकृति होती है। कुछ विषयों में लापरवाह होने पर भी अपने उद्देश्य एवं स्वास्थ्य के प्रति सतर्क एवं सावधान रहेगा ।चंद्र गुरु व शुक्र यदि चर राशि में हो तो जातक को देश-विदेश अनेक स्थानों में भ्रमण करने के अवसर प्राप्त होते हैं।
सामान्यतः तुला लग्न के जातक न्याय एवं मध्यस्ता के कार्य करने में निपुण, सच्चाई पसंद, लोकप्रिय, उदार हृदय, परोपकारी, दान देने की प्रवृत्ति, पराक्रमी, वाहन व अन्य सुख साधनों के शौकीन, देवी देवताओं और ब्राह्मणों में श्रद्धा रखने वाले, स्त्रियों से संबंध बनाने में कुशल तथा निजी पराक्रम वह कुशल युक्तियों द्वारा धन संपदा का अर्जन करने वाले होते हैं।
इनमें भौतिक एवं आध्यात्मिक गुणों का विशेष संतुलन रहता है। चंद्र, बुध, शुक्र एवं गुरु के प्रभाव से जातक उच्च अभिलाषी, मिलनसार, भ्रमनप्रिय एवं नए-नए मैत्री संबंध बनाने में कुशल होता है। उसमें नेतृत्व करने की योग्यता तथा उच्च प्रतिष्ठित लोगों के साथ संबंध तथा प्रत्येक विषय व गुण दोष के आधार पर शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता, दूरदर्शी, विवेकशील, उच्चादर्श, दृढ़ संकल्प तथा प्रत्येक स्थिति का पूर्वानुमान लगाने में कुशल होते हैं।

स्वास्थ्य और रोग लग्नेश शुक्र यदि बली होकर शुभस्थ हो तो तुला लग्न वाले जातकों का स्वास्थ्य प्राय अच्छा रहता है। जीवन में क्रियाशील चुस्त, व्यस्त, सक्रिय एवं युवा बने रहने की चेष्टा करते रहते हैं। तुला जातक संयमित भोजन एवं नियमित व्यायाम करते रहे तो बहुत कम रुग्ण होते हैं। तथा दीर्घायु होते हैं। परंतु यदि कुंडली में गुरु, शुक्र, शनि, मंगल ग्रह पापाक्रांत या अशुभ हो तो इनके शरीर में असंतुलन तथा स्वास्थ्य बिगड़ जाने की संभावना जल्दी होती है। इस स्थिति में तुला लग्न जातक को पेट विकार, स्नायु रोग, प्रमेह, अपेंडिक्स, मानसिक थकान, मधुमेह, गुर्दे के रोग, पथरी, पेट गैस, वीर्य विकार, गुप्त रोगों का भय रहता है। तुला लग्न में सूर्य एवं मंगल अशुभ हो तो सिरवेदना, मस्तिष्क एवं नेत्र रोग, नाक कान व गले के रोग या उच्च निम्न आदि अव्यवस्थित रक्तचाप संबंधित रोगों की आशंका होती है।

सावधानी तुला लग्न के जातकों को अत्यधिक भोग और विलासिता से बचना चाहिए। इन्हें अत्यधिक कामुकता, शराब, मांस आदि तामसिक वस्तुओं के प्रयोग से भी परहेज करना चाहिए। सुखी जीवन जीने के लिए प्रत्येक क्षेत्र में संयम एवं संतुलन अत्यंत लाभदायक होंगे। ध्यान और ईश्वर भक्ति विशेष सहायक होगी।

तुला लग्न जातको की शिक्षा, व्यवसाय, आर्थिक स्थिति

तुला लग्न जातको की शिक्षा

तुला लग्न के जातक की कुंडली में पंचम भाव बली हो तथा पंचमेश शनि भाग्येश बुध एवं लग्नेश शुक्र आदि ग्रहो का (स्थान दृष्टि आदि से) शुभ संबंध बना हो तो जातक उच्च व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने में सफल हो जाता है। पंचम भाव में शनि को छोड़कर कोई अन्य पाप ग्रह जैसे राहु-केतु मँगल आदी हो तो उच्च विद्या प्राप्ति में विघ्न बाधाएं होती हैं। परंतु यदि जातक को ग्रह दशा एवं अंतर्दशा किसी शुभ व योगकारक ग्रह की लगी हो तो अड़चनों के बावजूद जातक उच्च व्यावसायिक विद्या प्राप्त करने में सफल होता है।

व्यवसाय और आर्थिक स्थिति तुला लग्न जातकों की स्वतंत्रता प्रिय सृजनात्मक एवं कलात्मक अभिरुचि होने के कारण यह चिरकाल तक किसी की अधीनता स्वीकार नहीं कर पाते। नौकरी की अपेक्षा अपने निजी व्यवसाय में अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जन्म कुंडली में शुक्र शनि बुध एवं चंद्र आदि ग्रह शुभ भावस्थ अथवा शुभ या योग कारक ग्रहो द्वारा देखे जा रहे हो तो जातक निम्नलिखित व्यवसायों में विशेष कामयाब एवं लाभान्वित होते हैं प्राध्यापक, वकील, न्यायाधीश, क्रय विक्रय व्यापार, कवि,संगीतकार, गायक, अभिनय, कलाकार, डॉक्टर, राजनीतिज्ञ, बैंकिंग, भवन निर्माण, लोह, कलपुर्जे, टेलीविजन, लेडीस गारमेंट, फैशन डिजाइनिंग, वस्त्र विक्रेता, बेकरी, मिठाई, होटल, फर्नीचर डीलर, आर्किटेक्ट (आंतरिक सज्जा) औषधि विक्रेता, नौसेना कर्मचारी, आइसक्रीम आदि फास्ट फूड, स्टेशनरी, मोटर आदि के स्पेयर पार्ट्स कंप्यूटर या कंप्यूटर से संबंधित काम, फोटोग्राफी, प्लास्टिक उद्योग खिलौने इत्यादि से संबंधित व्यवसाय में विशेष उन्नति प्राप्त कर सकते हैं। किसी जातक की कुंडली में दशम या दशमेश ग्रह अथवा उनसे संबंधित जो ग्रह बैठे हो उसके अनुसार ही जातक को व्यवसाय में लाभ होता है। जैसे सूर्य बली हो तो जातक को सरकारी क्षेत्र में विशेष लाभ होगा।

आर्थिक स्थिति

तुला लग्न के जातक की आर्थिक स्थिति मुख्यतः चंद्र, मंगल, शुक्र, शनि, रवि ल, बुध आदि ग्रहों की शुभ -अशुभ स्थिति पर निर्भर करती है. यदि तुला जातक की कुंडली में शनि, सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध एवं शुक्र शुभ या योगकारक स्थिति में हो तो व्यवसाय द्वारा अच्छा धन अर्जन करते हैं। दो या अधिक ग्रहों में दृष्टि योग आदि का संबंध बना हो तो जातक निजी पुरुषार्थ के अतिरिक्त भाग्यवश एक से अधिक धन प्राप्ति के साधन प्राप्त करता है। विशेषकर सूर्य, मंगल एवं बुध ग्रह से संबंध हो तो धन आगमन में पारंपरिक पैतृक योगदान विशेषकर प्रमुख होता है।

शनि शुभस्थ (स्वक्षेत्रीय उच्चस्थ) हो तो जातक अपने बुद्धि कौशल एवं गुप्त युक्तियों से धनार्जन करने में कुशल होता है। भूमि, मकान, वाहन आदि के सुख भी प्राप्त होते हैं। तुला लग्न में मंगल भी स्वक्षेत्रीय उच्चस्थ हो तो विवाह के बाद धन एवं संपदा में विशेष लाभ व उन्नति होती है। सामान्यतः अनुभव में यही आया है कि तुला लग्न में जातक कठिन परिस्थितियों में भी अपने परिश्रम निष्ठा एवं समायोजित योजना से निर्वाह योग्य आय के साधन प्राप्त कर ही लेते हैं। तथा जल्द ही अपने परिवार के लिए सुंदर एवं अन्य वस्तुएं खरीदने के लिए उदारतापूर्वक खर्च भी कर देते हैं। तुला जातक सीमित साधनों में भी रहीसी ढंग से खर्च करने में नहीं हिचकिचाते हैं।

तुला लग्न जातको का पारिवारिक जीवन एवं प्रेम संबंध

तुला लग्न के जातक के जीवन में प्रेम और सौंदर्य का विशेष महत्व होता है। अपने स्वच्छंद व्यवहार सहज मुस्कान एवं वाकपटुता के कारण पुरुष मित्रों के साथ साथ महिला मित्रों में भी आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं। चाहे किसी आयु में हो अपने मित्रों से संबंध बनाए रखते हैं। यदि शुक्र मंगल की राशि में हो अथवा मंगल के साथ हो तो उस स्थिति में सामाजिक मर्यादाओं को तोड़ कर भी अपनी इच्छा के अनुसार जीवन साथी का चयन करते हैं। कहीं अनैतिक संबंध भी हो सकते हैं। परंतु प्रेम संबंध चिरस्थाई नहीं रह पाते। अशुभ योगों के कारण कई बार तंबाकू शराब आदि व्यसनों के भी शिकार हो जाते हैं।

शुभ राशि जातक एवं उपयुक्त जीवन साथी इसके लिए मैत्री चक्र के अतिरिक्त तत्व दृष्टि से भी विचार करना चाहिए। तुला राशि या लग्न को मेष, मिथुन, तुला एवं कुंभ राशि वालों के साथ वैवाहिक या व्यवसायिक संबंध शुभ एवं लाभदायक रहते हैं। वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, धनु एवं मकर राशि के साथ मिश्रित अर्थात मध्यम फली। जबकि सिंह व मीन राशि वालों के साथ षडाष्टक दोष होने से लाभदायक एवं शुभ नहीं होता। इसके अतिरिक्त मेलापक संबंधित गुण आदि अन्य नियमों पर भी विचार कर लेना चाहिए।

गृहस्थ जीवन तुला जातक प्रेम संबंधों में प्रायः चंचल स्वच्छंद प्रकृति एवं उन्मुक्त व्यवहार में विश्वास करते हैं। परंतु विवाहोपरांत यदि (उपयुक्त जीवन साथी हो) उनके जीवन में विशेष परिवर्तन देखे गए हैं। विशेषकर बच्चों की पैदाइश के पश्चात उनकी प्रकृति में विशेष सुधारात्मक परिवर्तन होते हैं। अपने परिवार एवं गृहस्थ जीवन के प्रति पूरे इमानदार एवं समर्पित होते हैं। अपने परिवार को जीवन उपयोगी सभी प्रकार की सुख सुविधाएं देने के लिए जीवन पर्यंत कठोर परिश्रम करते हैं। पंचमेश शनि के कारण संतान अल्प अथवा सीमित संख्या में होती है।

तुला लग्न की जातिकाये

तुला लग्न राशि में उत्पन्न होने वाली लड़की का ऊंचा कद, सुंदर मुख और आयताकार आकृति कुछ लंबाई लिए हुए संतुलित खूबसूरत एवं आकर्षक शरीर रचना वाली होती है। नयन नक्श तीखे तथा अधिक आयु में भी प्रायः युवा दिखने वाली होती है। बाल्यकाल में कुछ दुबली किंतु आयु वृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य में सुधार होता है। राशि स्वामी शुक्र शुभस्थ हो तो तुला राशि जातिका विनम्र स्वभाव सहज मुस्कान लिए हुए हंसमुख मिलनसार, नए नए मित्र बनाने में कुशल, बुद्धिमान, न्याय प्रिय, व्यवहार कुशल, स्पष्टवादी, स्वाभिमानी एवं उत्साह शील प्रकृति की होगी। इसके अतिरिक्त सौंदर्य एवं कलात्मक अभिरुचिययो से युक्त अपने रहन-सहन के तरीके, उचित पहरावे एवं खानपान के प्रति विशेष सतर्क होगी। सौंदर्य एवं सजावट के प्रसाधनों श्रृंगार एवं कलात्मक वस्तुओं के संग्रह करने का शौक रखती है।
तुला जातिका स्वभावतः प्रिय भाषी, दयालु, उदार, परोपकारी, सामाजिक कार्य कलापों में सक्रिय होती है। किसी भी विषय पर गंभीर सोच विचार के उपरांत ही अंतिम निर्णय लेती है। कुंडली में यदि चंद्र शुक्र अथवा मंगल शुक्र का योग हो तथा उन पर गुरु की भी दृष्टि हो तो जातिका उच्च शिक्षित होती है। इन्हें साहित्य, लेखन, संगीत, नृत्य, नाट्य आदि ललित कलाओं की ओर भी विशेष अभिरुचि होती है। व्यवसायिक तौर पर इनके द्वारा लाभ भी प्राप्त होता है।
शुक्र के कारण तुला जातिका की कल्पना शक्ति प्रबल होती है। परंतु मन की केंद्रीय शक्ति अधिक देर तक नहीं रहती। जब तक किसी कार्य क्षेत्र में लगी रहे जब तक पूरे मनोयोग से और मजबूत दिल से करेगी। परंतु अपने विचार और योजना में भी परिस्थिति अनुसार परिवर्तन करने को तैयार हो जाती हैं। वैसे स्वभाव वश परिस्थितियों में स्वयं को ढाल लेने की क्षमता रखती है। तुला जातिका सामान्यतः वर्तमान में जीने का विश्वास रखती है। बाधाओं के बावजूद उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सफल हो जाती है। मंगल यदि शुभस्थ हो अथवा चंद्र शुक्र का योग हो
तथा उस पर गुरु की दृष्टि हो तो उच्च शिक्षा के पश्चात प्राध्यापक या अर्धसरकारी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त कर लेती है

गृहस्थ जीवन तुला जाति का प्रेम संबंधों एवं विवाह आदि के संबंध में स्वतंत्र विचार रखती हैं। यद्यपि माता पिता की आशा के विरुद्ध आचरण भी कम ही करती देखी गई है। विवाह के पश्चात अपने पति को गृहस्थी एवं व्यवसाय में अच्छा सहयोग प्रदान करती हैं। ग्रह की सजावट, सुंदर वस्त्र, उच्च स्तरीय सवारी, बड़ा सुंदर मकान, आदि की विशेष अभिलाषी होती हैं। परंतु अपने पति के प्रति वफादार एवं निष्ठावान रहती हैं। तुला जातिका के बच्चे सीमित संख्या में होते हैं। सप्तम भाव में यदि राहु केतु शनि सूर्य आदि अशुभ ग्रह हो या उनकी अशुभ दृष्टि हो तो वैवाहिक जीवन के सुख में कमी रहती है।

उपयुक्त जीवन साथी तुला जातिका (राशि या लग्न) को मेष, मिथुन, तुला व कुंभ राशि वालों के साथ वैवाहिक संबंध शुभ एवं उत्तम। वृश्चिक, कर्क, कन्या, वृश्चिक, धनु, मकर राशि लग्न वालों के साथ मध्यम फली तथा सिंह व मीन राशि वालों के साथ शुभ फल ही नहीं होंगे। यद्यपि इस संबंध में कुंडली मिलान संबंधी नियमों का भी अनुसरण करना चाहिए।

उपयुक्त व्यवसाय तुला लग्न जातिका अपनी रुचि के अनुसार ही व्यवसाय में भी कलात्मक परिवर्तन लाने के प्रयास करती रहती है। तुला जातिका को फैशन डिजाइनिंग, कंप्यूटर, ब्यूटी पार्लर, सिलाई कढ़ाई, शिल्पकारी, मॉडलिंग, गृह साज सज्जा, रेडीमेड वस्त्र विक्रेता, गायन, अभिनय, प्राध्यापक, वकालत, न्यायाधीश, बैंकिंग, सिनेमा, टेलीविजन, होटल, रेस्टोरेंट, फोटोग्राफी, खिलौनों आदि से संबंधित कार्यों में विशेष सफलता प्राप्ति के अवसर मिलते हैं।

तुला लग्न में दशान्तर्दशा का फल एवं अन्य शुभाशुभ ज्ञान

तुला लग्न में उत्पन्न जातक-जातिका को शुक्र, शनि, चंद्र (यदि कुंडली में शुभ हो) तो अपनी दशा अंतर्दशा में शुभ फल प्रदान करेंगे। शनि अपनी दशा या भुक्ति में भूमि सवारी का सुख, विद्या या कंपटीशन में सफलता, संतान सुख, तकनीकी विद्या में कामयाबी दिलाएगा, चंद्रमा और शुक्र अपनी दशाओं में कार्य व्यवसाय या नौकरी में लाभ व उन्नति, माता एवं स्त्री का सुख, सौंदर्य प्रसाधन या सवारी आदि अन्य सुख साधनों की प्राप्ति के साथ उन पर खर्च भी कराएंगे। कुंडली में यदि शनि, चंद्र या शुक्र अशुभ हो तो उपरोक्त सुखों से विघ्न उत्पन्न होंगे।

मंगल की दशा में कुछ परेशानियों एवं विघ्नों के पश्चात धन लाभ तथा पारिवारिक सुख प्राप्त होगा। तुला लग्न में मंगल धनेश एवं मारकेश भी होने से इस दशा में दुर्घटना से चोट अथवा रक्त विकार आदि से शरीर कष्ट का भय होता है। बुध की दशा में भाग्य में कुछ सुखद परिवर्तन होने की संभावना होती है। परंतु इस दशा में विभिन्न स्थानों पर यात्रा एवं फिजूलखर्ची भी अधिक होती है।

गुरु की दशा चतुर्थ, अष्टम एवं द्वादश भाव में स्थित गुरु अशुभ फल तथा अन्य भावो में प्राय: शुभ फल प्रदान करता है।

राहु-केतु तुला लग्न में अपनी स्थिति एवं ग्रहयोग अनुसार फल प्रदान करते है।

तुला लग्न संबंधित अन्य शुभाशुभ ज्ञान एवं उपाय

शुभ रंग श्वेत हल्का नीला काला गुलाबी रंग अनुकूल रहेंगे हरे और पीले रंग के प्रयोग से बचें

शुभ नग (रत्न) सवा रत्ती का हीरा प्लेटिनम या चांदी की अंगूठी में शुक्रवार को अथवा किसी शुभ योग में पंडित जी के परामर्श अनुसार शुभ मुहूर्त पर निम्नलिखित मंत्र का कम से कम 16 बार पाठ करके धारण करना लाभदायक रहता है।
मंत्र ॐ द्रां द्रीं दौं सः शुक्राय नमः।

इस दिन श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करके ब्राह्मण दंपत्ति का तथा पांच कन्याओं का पूजन करके उन्हें चांदी, श्वेत वस्त्र, फल, बर्फी, दूध, दही, चावल आदि का दान करना शुभ एवं कल्याणकारी होगा।

यदि तुला लग्न में किसी जातिका की जन्म राशि या नाम राशि धनु हो तो वैवाहिक सुख में वृद्धि के लिए श्वेत पुखराज भी धारण करवाया जा सकता है।

धन लाभ एवं वैवाहिक सुख के लिए मंगलवार का व्रत रखना तथा उस दिन गाय को मीठी रोटियां डालना शुभ होगा। कुंडली में सूर्य अशुभ हो तो रविवार का व्रत रखना तथा सूर्य भगवान को प्रतिदिन विशेष कर रविवार के दिन ॐ घृणि सूर्याय नमः मंत्र द्वारा तांबे के पात्र में जल लेकर तीन बार अर्घ देना शुभ रहता है।

शुभ दिन रविवार, सोमवार, मंगलवार, शुक्रवार तथा शनिवार शुभ होंगे बुधवार मिश्रित प्रभाव देगा जबकि गुरुवार अशुभ फलप्रद रहेगा।

शुभ अंक 3,4,5,7 मध्यमफली 8 अशुभ अंक 2,6,9 ।

भाग्यशाली वर्ष 16, 27, 28, 32, 34, 35, 39, 40, 41 ,42 वे वर्ष।

सावधानी तुला लग्न राशि के जातक जातकों को अत्यधिक भावुकता, भोग विलासिता, और उतावलेपन की प्रवृत्ति का यथासंभव त्याग करना चाहिए। बाह्यमुखी प्रवृतियों के कारण आप विशेष परेशान एवं अशांत रह सकते हैं। बनावट श्रृंगार कीमती वस्तु सवारी आदि सुख साधनों तथा मानक व्यसनों पर वृथा खर्चों से बचें। सात्विक एवं संतुलित भोजन करना आपके मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होगा

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