जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से धूप बत्ती के प्रकार लाभ और निर्माण विधि……….

धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से धूप बत्ती के प्रकार लाभ और निर्माण विधि……….



हिन्दू धर्म में धूप देने और दीपक जलाने का बहुत अधिक महत्त्व है। सामान्य तौर पर धूप दो तरह से ही दी जाती है। पहला गुग्गुल-कर्पूर से और दूसरा गुड़-घी मिलाकर जलते कंडे पर उसे रखा जाता है।
वर्तमान परिस्थितियों में समय की कमी एवं प्रचार की अधिकता के कारण आमतौर पर हम बाजार से लाई गई धूप ही प्रयोग करते है जिनमे भी हमे विभिन्न प्रकार की सुगंघ वाली धूप मिल जाती है लेकिन इनके निर्माण में अधिकांशतः कैमिकल और गाड़ियों का बचा हुआ काला तेल प्रयोग किया जाता है।

गुड़ और घी से दी गई धूप का ख़ास महत्त्व है। इसके लिए सर्वप्रथम एक कंडा जलाया जाता है। फिर कुछ देर बाद जब उसके अंगारे ही रह जाएँ, तब गुड़ और घी बराबर मात्रा में लेकर उक्त अंगारे पर रख दिया जाता है और उसके आस-पास अँगुली से जल अर्पण किया जाता है। अँगुली से देवताओं को और अँगूठे से अर्पण करने से वह धूप पितरों को लगती है। जब देवताओं के लिए धूप दान करें, तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश का ध्यान करना चाहिए और जब पितरों के लिए अर्पण करें, तब अर्यमा सहित अपने पितरों का ध्यान करना चाहिए तथा उनसे सुख-शांति की कामना करें।

नियम
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हिन्दू धर्म में धूपबत्ती आदि से धूप देने के भी नियम बताए गये हैं, जैसे-

किसी कारण से यदि रोज धूप नहीं दे पाएँ तो त्रयोदशी, चतुर्दशी तथा अमावस्या और पूर्णिमा को सुबह-शाम धूप अवश्य देना चाहिए। सुबह दी जाने वाली धूप देवगणों के लिए और शाम को दी जाने वाली धूप पितरों के लिए होती है।

धूप देने के पूर्व घर की सफाई करनी चाहिए। पवित्र होकर-रहकर ही धूप देना चाहिए। धूप ईशान कोण में ही दें। घर के सभी कमरों में धूप की सुगंध फैल जानी चाहिए। धूप देने और धूप का असर रहे तब तक किसी भी प्रकार का संगीत नहीं बजाना चाहिए। हो सके तो कम से कम बात करना चाहिए।

धूप के प्रकार
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तंत्रसार के अनुसार अगर, तगर, कुष्ठ, शैलज, शर्करा, नागरमाथा, चंदन, इलायची, तज, नखनखी, मुशीर, जटामांसी, कर्पूर, ताली, सदलन और गुग्गुल ये सोलह प्रकार के धूप माने गए हैं। इसे ‘षोडशांग धूप’ कहते हैं।

‘मदरत्न’ के अनुसार चंदन, कुष्ठ, नखल, राल, गुड़, शर्करा, नखगंध, जटामांसी, लघु और क्षौद्र सभी को समान मात्रा में मिलाकर जलाने से उत्तम धूप बनती है। इसे ‘दशांग धूप’ कहा जाता है।

इसके अतिरिक्त भी अन्य मिश्रणों का भी उल्लेख मिलता है, जैसे- छह भाग कुष्ठ, दो भाग गुड़, तीन भाग लाक्षा, पाँचवाँ भाग नखला, हरीतकी, राल समान अंश में, दपै एक भाग, शिलाजय तीन लव जिनता, नागरमोथा चार भाग, गुग्गुल एक भाग लेने से अति उत्तम धूप तैयार होती है। रुहिकाख्य, कण, दारुसिहृक, अगर, सित, शंख, जातीफल, श्रीश ये धूप में श्रेष्ठ माने जाते हैं।

इन सबके अतिरिक्त दैनिक पूजन अथवा विशेष कामना से निम्न धूप अथवा धूनी का प्रयोग भी किया जाता है इनके प्रकार और फल निम्नलिखित है।

1- कर्पूर और लौंग
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रोज़ाना सुबह और शाम घर में कर्पूर और लौंग जरूर जलाएं। आरती या प्रार्थना के बाद कर्पूर जलाकर उसकी आरती लेनी चाहिए। इससे घर के वास्तुदोष ख़त्म होते हैं। साथ ही पैसों की कमी नहीं होती।

2- गुग्गल की धूनी
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हफ्ते में 1 बार किसी भी दिन घर में कंडे जलाकर गुग्गल की धूनी देने से गृहकलह शांत होता है। गुग्गल सुगंधित होने के साथ ही दिमाग के रोगों के लिए भी लाभदायक है।

3- पीली सरसों
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पीली सरसों, गुग्गल, लोबान, गौघृत को मिलाकर सूर्यास्त के समय उपले (कंडे) जलाकर उस पर ये सारी सामग्री डाल दें। नकारात्मकता दूर हो जाएगी।

4- धूपबत्ती
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घर में पैसा नहीं टिकता हो तो रोज़ाना महाकाली के आगे एक धूपबत्ती लगाएं। हर शुक्रवार को काली के मंदिर में जाकर पूजा करें।

5- नीम के पत्ते
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घर में सप्ताह में एक या दो बार नीम के पत्ते की धूनी जलाएं। इससे जहां एक और सभी तरह के जीवाणु नष्ट हो जाएंगे। वही वास्तुदोष भी समाप्त हो जाएगा।

6- षोडशांग धूप
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अगर, तगर, कुष्ठ, शैलज, शर्करा, नागर, चंदन, इलायची, तज, नखनखी, मुशीर, जटामांसी, कर्पूर, ताली, सदलन और गुग्गल, ये सोलह तरह के धूप माने गए हैं। इनकी धूनी से आकस्मिक दुर्घटना नहीं होती है।

7- लोबान धूनी
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लोबान को सुलगते हुए कंडे या अंगारे पर रख कर जलाया जाता है, लेकिन लोबान को जलाने के नियम होते हैं इसको जलाने से पारलौकिक शक्तियां आकर्षित होती है। इसलिए बिना विशेषज्ञ से पूछे इसे न जलाएं।

8- दशांग धूप
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चंदन, कुष्ठ, नखल, राल, गुड़, शर्करा, नखगंध, जटामांसी, लघु और क्षौद्र सभी को समान मात्रा में मिलाकर जलाने से उत्तम धूप बनती है। इसे दशांग धूप कहते हैं। इससे घर में शांति रहती है।

9- गायत्री केसर
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घर पर यदि किसी ने कुछ तंत्र कर रखा है तो जावित्री, गायत्री केसर लाकर उसे कूटकर मिला लें। इसके बाद उसमें उचित मात्रा में गुग्गल मिला लें। अब इस मिश्रण की धुप रोज़ाना शाम को दें। ऐसा 21 दिन तक करें।

पुराण में उल्लेख
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‘हेमाद्रि’ ने धूप के कई मिश्रणों का उल्लेख किया है, यथा- अमृत, अनन्त, अक्षधूप, विजयधूप, प्राजापत्य, दस अंगों वाली धूप का भी वर्णन है।

‘कृत्यकल्पतरु’ ने ‘विजय’ नामक धूप के आठ अंगों का उल्लेख किया है।

‘भविष्य पुराण’ का कथन है कि विजय धूपों में श्रेष्ठ है, लेपों में चन्दन लेप सर्वश्रेष्ठ है, सुरभियों (गन्धों) में कुंकुम श्रेष्ठ है, पुष्पों में जाती तथा मीठी वस्तुओं में मोदक (लड्डू) सर्वोत्तम है। ‘कृत्यकल्पतरु’ ने इसका उदधृत किया है। धूप से मक्खियाँ एवं पिस्सू नष्ट हो जाते हैं।

सामान्य धुप बत्ती बनाने की सामग्री
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गोबर 100 ग्राम
लकड़ी कोयला 125 ग्राम
नागरमोथा 125 ग्राम
लाल चन्दन 125 ग्राम
जटामासी 125 ग्राम
कपूर कांचली 100 ग्राम
राल। 250 ग्राम
घी 200 ग्राम
चावल की धोवन 200 ग्राम
चन्दन तेल या केवड़ा तेल 20 ml

षोडशांग धूप के लिये सामग्री
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अगर, तगर, कुष्ठ, शैलज, शर्करा, नागरमाथा, चंदन, इलायची, तज, नखनखी, मुशीर, जटामांसी, कर्पूर, ताली, सदलन और गुग्गुल ये सोलह प्रकार की सामग्री मिलाकर बनाए।

दशांग धूप के लिये सामग्री
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चंदन, कुष्ठ, नखल, राल, गुड़, शर्करा, नखगंध, जटामांसी, लघु और क्षौद्र सभी को समान मात्रा में मिलाकर जलाने से उत्तम धूप बनती है। इसे ‘दशांग धूप’ कहा जाता है।

इन सभी को मिलाकर आटे की तरह गूथ ले यहाँ ध्यान दें इसे गूथने में जितनी ज्यादा मेहनत करेंगे परिणाम उतने ही अच्छे मिलेंगे अन्यथा बाद में जलाने से पहले इसे आकार देने के लिये हाथों में जब रगड़ते है तो यह बत्ती बनने की जगह फैल भी सकती है। अच्छी तरह गूथने पर बाद में मनचाहे आकर की धूपबत्ती बना सकते है।

धूप जलाने के लाभ
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गोमय और जड़ी बूटियों से बनी इस पूजा धुप के उपयोग से कई लाभ है।
यह पर्यावरण को शुद्ध कर प्रदूषणमुक्त करता है। इसके धुंए से वातावरण में फैले रोगाणु नष्ट होते है। धूप देने से मन, शरीर और घर में शांति की स्थापना होती है। रोग और शोक मिट जाते हैं। गृह कलह और आकस्मिक घटना-दुर्घटना नहीं होती। घर के भीतर व्याप्त सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलकर घर का वास्तुदोष मिट जाता है। ग्रह-नक्षत्रों से होने वाले छिटपुट बुरे असर भी धूप देने से दूर हो जाते हैं। श्राद्ध पक्ष में 16 दिन ही दी जाने वाली धूप से पितृ तृप्त होकर मुक्त हो जाते हैं तथा पितृदोष का समाधान होकर पितृयज्ञ भी पूर्ण होता है।

प्रतिदिन घर, कार्यालय में धुप का उपयोग करने से गो शाला स्वावलम्बी बनेगी और उसकी रक्षा होगी।

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