धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से गुरु सूत्र….
गुरु मंत्र का कम से कम 1,25,000 जाप करने के बाद ही अन्य साधनाओं में प्रवृत्त हों-

गुरु, इष्ट और मंत्र को एक ही मानें.
गुरु कृपा से ही साधनाओं में सफ़लता मिलती है.
गुरु एक अद्भुत सत्ता है,
गुरु शिव का स्वरूप है.
गुरु सिद्धियों का इकलौता मार्ग है.
गुरु के साथ छ्ल ना करें.
गुरु आपकी हर बात जानने में समर्थ होता है , उसके साथ झूठ बोलने से, छ्ल करने से फ़िर भयानक अधोगति भोगनी पडती है। कैसी भी गलती की हो गुरु के सामने स्वीकार करके चरण पकड के माफ़ी मांग लेनी चाहिये। ऐसा भी हो सकता है कि आपको बेवजह डांट पड जाये, अपमानित होना पडे, ये सब गुरु का परीक्षण होता है, इसे सहज होकर स्वीकार करें, गुरु कृपा अवश्य होगी.।
गुरु अपने आप में महामाया की सर्वश्रेष्ठ कृति है।
गुरुत्व साधनाओं से, पराविद्याओं की कृपा और सानिध्य से आता है ।वह एक विशेष उद्देश्य के साथ धरा पर आता है और अपना कार्य करके वापस महामाया के पास लौट जाता है। बिना योग्यता के शिष्य को कभी गुरु बनने की कोशिश नही करनी चाहिये।
गुरु का अनुकरण यानी गुरु के पहनावे की नकल करने से या उनके अंदाज से बात कर लेने से कोई गुरु के समान नही बन सकता।
गुरु का अनुसरण करना चाहिये उनके बताये हुए मार्ग पर चलना चाहिये, इसीसे साधनाओं में सफ़लता मिलती है।
“शिष्य बने रहने में लाभ ही लाभ हैं, जबकि गुरु के मार्ग में परेशानियां ही परेशानियां हैं, जिन्हे संभालने के लिये प्रचंड साधक होना जरूरी होता है, अखंड गुरु कृपा होनी जरूरी होती है।”
श्रेष्ठ गुरु के लक्षण :-
श्रेष्ठ गुरु को अपने गुरु का एक अच्छा शिष्य होना चाहिये. अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण होना चाहिये।
श्रेष्ठ गुरु को साधक होना चाहिये,उसे निरंतर साधना करते रहना चाहिये।
श्रेष्ठ गुरु को सभी महाविद्या सिद्ध होनी चाहिये।
श्रेष्ठ गुरु को वाक सिद्धि होनी चाहिये अर्थात उसे आशिर्वाद और श्राप दोनों देने में सक्षम होना चाहिये।
श्रेष्ठ गुरु को पूजन करना और कराना आना चाहिये।
श्रेष्ठ गुरु को योग और मुद्राओं का ज्ञान होना चाहिये।
श्रेष्ठ गुरु को रस सिद्धि होनी चाहिये, अर्थात पारद के संस्कारों का ज्ञान होना चाहिये।
श्रेष्ठ गुरु को मन्त्र निर्माण की कला आती है।वह आवश्यकतानुसार मंत्रों का निर्माण कर सकता है और पुराने मंत्रों मे आवश्यकतानुसार संशोधन करने में समर्थ होता है।
“गुरु कृपा चार प्रकार से होती है ।”
1 स्मरण से
2 दृष्टि से
3 शब्द से
4 स्पर्श से
1 जैसे कछुवी रेत के भीतर अंडा देती है पर खुद पानी के भीतर रहती हुई उस अंडे को याद करती रहती है तो उसके स्मरण से अंडा पक जाता है। ऐसे ही गुरु की याद करने मात्र से शिष्य को ज्ञान हो जाता है। यह है स्मरण दीक्षा।
2 दूसरा जैसे मछली जल में अपने अंडे को थोड़ी थोड़ी देर में देखती रहती है तो देखने मात्र से अंडा पक जाता है। ऐसे ही गुरु की कृपा दृष्टि से शिष्य को ज्ञान हो जाता है। यह दृष्टि दीक्षा है।
3 तीसरा जैसे कुररी पृथ्वी पर अंडा देती है , और आकाश में शब्द करती हुई घूमती है तो उसके शब्द से अंडा पक जाता है। ऐसे ही गुरु अपने शब्दों से शिष्य को ज्ञान करा देता है। यह शब्द दीक्षा है ।।
4 चौथा जैसे मयूरी अपने अंडे पर बैठी रहती है तो उसके स्पर्श से अंडा पक जाता है ।
ऐसे ही गुरु के हाथ के स्पर्श से शिष्य को ज्ञान हो जाता है । यह स्पर्श दीक्षा है।।
।। जय गुरूदेव ।।
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