धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से श्री राम और गिलहरी के पीठ पर दो काली धारियों का क्या रहस्य है?
जब हम किसी भी प्राणी को देखते हैं तो उसकी शारीरिक संरचना देख कर कभी ना कभी मन में ये ख़याल अवश्य आता है की भगवान् ने इसे ऐसा क्यों बनाया जैसे जिराफ की गर्दन इतनी लम्बी क्यूँ बनाई या हाथी की सूंढ़ क्यूँ होती है वगैरह वगैरह| फिर हम स्वयं को संतुष्ट करने के लिए ये धारणा बना लेते हैं की इन जानवरों की शारीरिक संरचना का विकास इनके वातावरण के अनुसार हुआ है|
और विज्ञान भी यही कहता है की हांथी की खुराक ज्यादा होने की वजह से उन्हें ऊँचे पेड़ों की टहनियां तोड़ने के लिए सूंढ़ उगी है और जिराफ जहाँ रहते है वहां के वृक्ष की लम्बाई ज्यादा होने की वजह से उनकी गर्दन लम्बी हो गयी होगी|
परन्तु हिन्दू धर्म के वेदों के अनुसार कुछ प्राणी ऐसे भी है जिनकी शारीरिक संरचना अभी के मुकाबले भिन्न थी परन्तु उनके साथ हुए वाकये की वजह से उनकी संरचना में बदलाव हुआ| आज हम बताने जा रहे हैं गिलहरी के बारे में सभी ने कभी ना कभी गिलहरी अवश्य देखी होगी और कुछ लोगों के मन में ये ख़याल अवश्य आया होगा की गिलहरी के पीठ पर बनी दो काली धारियों का क्या उपयोग है|
ये काली धारियां उनकी क्या मदद करती हैं या उनके वातावरण के अनुसार ऐसा क्या था की उनकी पीठ पर दो काली धारियां बनी| दरअसल पहले गिलहरी की पीठ पर कोई भी काली धारी नहीं थी और उनका पूरा शरीर एक ही रंग का था|
बात उस समय की है जब त्रेता युग में भगवान् राम का अवतार हुआ था और उनकी धर्मपत्नी देवी सीता जो की माता लक्ष्मी का अवतार थी का अपहरण लंकापति रावण के द्वारा कर लिया गया था| तो श्री राम ने वानरों की सेना की मदद से लंका नरेश रावण की कैद से देवी सीता को मुक्त कराने के लिए रामसेतु का निर्माण करवा रहे थे|
सारे वानर बड़े बड़े पत्थर से रामसेतु का निर्माण कर रहे थे और भगवान् श्री राम लक्ष्मण के साथ समुद्र के किनारे बैठ कर ये सारा वाक्या देख रहे थे| इसी दौरान उन्होंने देखा की एक गिलहरी बार बार रेत में लोट कर रेत के कण अपने शारीर में चिपका लेती थी और सेतु पर जाकर अपने शरीर से सारे रेत के कण झाड देती थी|
इसपर भगवान् राम ने लक्ष्मण से पुछा की ये गिलहरी क्या कर रही है तो लक्ष्मण ने जवाब दिया की ये खेल का आनंद ले रही है| इसपर श्री राम मुस्कुराये और उस गिलहरी को बुला कर पुछा की ये तुम क्या कर रही हो सवाल सुनकर गिलहरी ने जवाब दिया की मैं भी इस सेतु को बनाने में अपना योगदान दे रही हूँ| हालांकि मुझे पता है की मुझ जैसे छोटे प्राणी की कहीं गिनती भी नहीं है परन्तु इस अधर्म के विरुद्ध धर्म की लड़ाई में मैं भी अपना योगदान देना चाहती हूँ|
गिलहरी की इन बातों से प्रभावित होकर श्री राम ने प्रेम पूर्वक उसके पीठ पर हाँथ फेरना आरम्भ कर दिया जिसके परिणाम स्वरूप गिलहरी के पीठ पर भगवान् राम की ऊँगली के निशान पड़ गए| और आज भी गिलहरी के पीठ पर दो धारियां होती हैं|।