जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से दामोदर लीला……

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से दामोदर लीला……

एक दिन माता यशोदा भगवान को दूध पिला रहीं थीं, साथ ही साथ दही मथ रही थी। तभी उन्हें याद आया कि रसोई में दूध चूल्हे पर चढ़ाया हुआ था, अब तक ऊबल गया होगा। माता ने लाल को गोद से उतारा और उबलते दूध को आग से उतारने के लिये लपकीं। श्रीकृष्ण ने रोष-लीला प्रकट की और मन ही मन बोलने लगे कि मेरा पेट अभी भरा नहीं और माता मुझे गोद से उतार कर रसोई में चली गई।

बस फिर क्या था, भगवान ने सामने, दही रखे हुये मिट्टी के बर्तन को धीरे से पत्थर मार कर तोड़ दिया जिससे सारे कमरे में दही बिखर गया। परन्तु इससे भी बाल-कृष्ण का गुस्सा शान्त नहीं हुआ। उन्होंने कमरे में रखे सभी दूध और दही की मटकियों को तोड़ डाला। इसके बाद छींके पर रखे हुए मक्खन व दही के मटकों को तोड़ने के लिए एक ओखली के ऊपर चढ़ गये। श्रीकृष्ण ओखली पर चढ़े ही थे कि कुछ बंदर उस कमरे में आ गए। उन बंदरों को देखकर श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए मक्खन को बन्दरों की ओर फेंकने लगे। साथ ही साथ चंचल निगाहों से दरवाज़े की ओर भी देख रहे हैं की कहीं माता तो नहीं आ गई।

उधर यशोदा मैय्या जब दूध संभाल कर मुड़ीं तो, वे यह देख कर हैरान हो गयीं कि दरवाज़े में से दूध-दही-मक्खन बह रहा है। उनका सारा ध्यान गोपाल की ओर गया और वे समझ गयीं की यह सब उसी ने किया है। उन्होंने थोड़ा बढ़ कर देखा कि कमरे में क्या हो रहा है। माता को लगा कि अगर मैं अचानक कमरे में गयी तो लाला घबरा कर भागेगा तो ओखली से कूदते समय उसको चोट लग सकती है। माता यशोदा ने भगवान को सचेत करने के लिये कुछ आवाज़ की। माता को देखकर श्रीकृष्ण ओखली से कूद कर सरपट भागे। अपने घर में माखन चोरी की श्रीकृष्ण की यह पहली लीला थी। माता यशोदा श्रीकृष्ण को पकड़ने के लिए उनके पीछे दौड़ीं।

मैय्या तो मां के वात्सल्य से भगवान को बालक ही समझ रही थी व उन्होंने सोचा की आज कन्हैया को सबक सिखाना ही होगा। अतः छड़ी उठाई और उनके पीछे-पीछे भागीं।
यह निश्चित है कि सर्वशक्तिमान अनन्त गुणों से विभूषित भगवान यदि अपने आप को न पकड़वायें तो कोई उनको नहीं पकड़ सकता। यदि वे अपने आप को न जनाएं तो कोई उन्हें जान भी नहीं सकता। आगे-आगे श्रीकृष्ण और पीछे-पीछे माता यशोदा को देख, नन्द भवन के अड़ोस-पड़ोस की बहुत से गोप गोपियां इकट्ठे होने लगे। काफी देर यह चलता रहा। माता यशोदा का परिश्रम देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी चाल को थोड़ा धीमा किया। माता ने उन्हें पकड़ लिया और वापिस नन्द-भवन में वहीं पर ले आई जहां ऊखल पर चढ़ कर भगवान बंदरों को माखन बांट रहे थे।

सजा देने की भावना से माता यशोदा श्रीकृष्ण को ऊखल से बांधने लगीं। जब रस्सी से बांधने लगीं तो रस्सी दो ऊंगल छोटी पड़ गई। तब माता यशोदा ने पास खड़ी गोपियों को और रस्सियां लाने के लिए कहा। माता रस्सी पर रस्सी जोड़ती जाती परंतु भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य चमत्कारी लीला से हर बार रस्सी दो ऊंगल छोटी पड़ जाती। सारे गोकुल की रस्सियां आ गई किंतु भगवान नहीं बंध पाए रस्सी हमेशा दो ऊंगल छोटी रही।

भगवान ने अपनी इस लीला के माध्यम से हमें बताया की वे छोटे से गोपाल के रूप में होते हुए भी अनन्त हैं। साथ ही भक्त-वत्सल भी हैं। अपनी वात्सल्य रस की भक्त माता यशोदा की इच्छा पूरी करने के लिए वे लीला-पुरुषोत्तम जब बंधे तो पहली रस्सी से ही बंध गए बाकी रस्सियों का ढेर यूं ही पड़ा रहा। इस लीला के बाद से ही भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम हो गया दामोदर।

दो ऊंगल अर्थात् मनुष्य की भगवान को पाने की निष्कपट भक्तिमयी चेष्टा (एक ऊंगल) और भगवान की कृपा (दूसरी ऊंगल)। जब दोनों होंगे तब ही भगवान हाथ आयेंगे, नहीं तो कोई भी भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता।

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