धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से ग्रहों से उत्पन्न बीमारियाँ….
- बृहस्पति : पेट की गैस और फेफड़े की बीमारियाँ।
- सूर्य : मुँह में बार-बार थूक इकट्ठा होना, झाग निकलना, धड़कन का अनियंत्रित होना, शारीरिक कमजोरी और रक्त चाप।
- चंद्र : दिल और आँख की कमजोरी।
- शुक्र : त्वचा, दाद, खुजली का रोग।
- मंगल : रक्त और पेट संबंधी बीमारी, नासूर, जिगर, पित्त आमाशय, भगंदर और फोड़े होना।
- बुध : चेचक, नाड़ियों की कमजोरी, जीभ और दाँत का रोग।
- शनि : नेत्र रोग और खाँसी की बीमारी।
- राहु : बुखार, दिमागी की खराबियाँ, अचानक चोट, दुर्घटना आदि।
- केतु : रीढ़, जोड़ों का दर्द, शुगर, कान, स्वप्न दोष, हार्निया, गुप्तांग संबंधी रोग आदि।
10 दसवें और ग्यारहवें भाव का स्वामी नौंवें घर में प्रवेश करेगा जिससे आपको अत्यंत परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। मानसिक तनाव भी झेलना पड़ सकता है। लंबे समय से किसी चीज़ का इंतज़ार कर रहे थे तो अब वह इंतज़ार खत्म होगा। लेकिन ध्यान रहे शनि के प्रभाव में कोई भी फल धीरे-धीरे ही मिलता है इसलिए धैर्य से काम लें। कार्यक्षेत्र और वैवाहिक जीवन के लिए अच्छा समय रहेगा। स्वास्थ्य को लेकर थोड़ी चिंता हो सकती है। सतर्क रहें। कोई विपरीत लिंग का व्यक्ति आपके प्रति आकर्षित हो सकता है।
2. चंद्र : चन्द्रमा माँ का सूचक है और मनं का करक है |शास्त्र कहता है की “चंद्रमा मनसो जात:” | इसकी कर्क राशि है | कुंडली में चंद्र अशुभ होने पर। माता को किसी भी प्रकार का कष्ट या स्वास्थ्य को खतरा होता है, दूध देने वाले पशु की मृत्यु हो जाती है। स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। घर में पानी की कमी आ जाती है या नलकूप, कुएँ आदि सूख जाते हैं मानसिक तनाव,मन में घबराहट,तरह तरह की शंका मनं में आती है औरमनं में अनिश्चित भय व शंका रहती है और सर्दी बनी रहती है। व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार बार-बार आते रहते हैं।
उपाय : सोमवार का व्रत करना, माता की सेवा करना, शिव की आराधना करना, मोती धारण करना, दो मोती या दो चाँदी का टुकड़ा लेकर एक टुकड़ा पानी में बहा दें तथा दूसरे को अपने पास रखें। कुंडली के छठवें भाव में चंद्र हो तो दूध या पानी का दान करना मना है। यदि चंद्र बारहवाँ हो तो धर्मात्मा या साधु को भोजन न कराएँ और ना ही दूध पिलाएँ। सोमवार को सफ़ेद वास्तु जैसे दही,चीनी, चावल,सफ़ेद वस्त्र, १ जोड़ा जनेऊ,दक्षिणा के साथ दान करना और ॐ सोम सोमाय नमः का १०८ बार नित्य जाप करना श्रेयस्कर होता है |
शरीर की चमड़ी का कारक बुध है।
शरीर की चमड़ी का कारक बुध होता है। कुंडली में बुध जितनी उत्तम अवस्था में होगा, जातक की चमड़ी उतनी ही चमकदार एवं स्वस्थ होगी। कुंडली में बुध पाप ग्रह राहु, केतु या शनि से दृष्टि में या युति के साथ होगा तो चर्म रोग होने के पूरे आसार बनेंगे। रोग की तीव्रता ग्रह की प्रबलता पर निर्भर करती है.
एक ग्रह दूसरे ग्रह को कितनी डिग्री से पूर्ण दीप्तांशों में देखता है या नहीं। रोग सामान्य भी हो सकता है और गंभीर भी। ग्रह किस नक्षत्र में कितना प्रभावकारी है यह भी रोग की भीषणता बताता है क्योंकि एक रोग सामान्य सा उभरकर आता है और ठीक हो जाता है। दूसरा रोग लंबा समय लेता है, साथ ही जातक के जीवन में चल रही महादशा पर भी निर्भर करता है।
1. सूर्य : सूर्य पिता, आत्मा समाज में मान, सम्मान, यश, कीर्ति, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा का करक होता है | इसकी राशि है सिंह | कुंडली में सूर्य के अशुभ होने पर पेट, आँख, हृदय का रोग हो सकता है साथ ही सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न होती है। इसके लक्षण यह है कि मुँह में बार-बार बलगम इकट्ठा हो जाता है, सामाजिक हानि, अपयश, मनं का दुखी या असंतुस्ट होना, पिता से विवाद या वैचारिक मतभेद सूर्य के पीड़ित होने के सूचक है |
उपाय : ऐसे में भगवान राम की आराधना करे | आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करे, सूर्य को आर्घ्य दे, गायत्री मंत्र का जाप करे | ताँबा, गेहूँ एवं गुड का दान करें। प्रत्येक कार्य का प्रारंभ मीठा खाकर करें। ताबें के एक टुकड़े को काटकर उसके दो भाग करें। एक को पानी में बहा दें तथा दूसरे को जीवन भर साथ रखें। ॐ रं रवये नमः या ॐ घृणी सूर्याय नमः १०८ बार (१ माला) जाप करे|
ज्योतिष द्वारा कैंसर रोग की कुछ बातें।
कैंसर रोग द्वारा
(मृत्यु योग है या नहीं)
(कैंसर रोग है या नहीं )
इस पोस्ट को आपके सामने ला रहा हूं कैंसर रोग की पहचान कई ज्योतिषीय योग होने पर बड़ी आसानी से हम सहज में जान सकते हैं पर उसकी गहराई को समझने के लिए ज्योतिषी विद्या होना जरूरी है ज्योतिष गणित होना जरूरी है आइए आप सबको मैं कैंसर रोग के कुछ योग बताता हूं
1 राहु को विष माना गया है यदि राहु का किसी भाव या भावेश से संबंध है एवं इसका लग्न या रोग भाव से भी संबंध हो तो शरीर में विष की मात्रा बढ़ जाती है
2 षष्ठेश लगन या अष्टम य दशम भाव में स्थित होकर राहु से दृष्ट हो तो कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है
3 बारहवे भाव में शनि- मंगल या शनि -राहु या फिर शनि और केतु की युक्ति हो तो जातक को कैंसर रोग की संभावना होती है
4 राहु की त्रिक भाव या त्रिकेस पर दृष्टि हो तो भी कैंसर रोग की संभावना बढ़ती है
5 षष्ठम भाव अर्थात रोग भाव तथा षष्ठेश पीडित या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में हो तो भी कैंसर रोग को देखा जाता है
6 बुध ग्रह त्वचा का कारक है अतः बुध अगर क्रूर ग्रहों से पीड़ित हो तथा राहु से दृष्ट हो तो जातक को कैंसर होता है
7 बुध ग्रह पीड़ित या हिंनबलि या क्रूर ग्रह होने के नक्षत्र में स्थित हो तो भी कैंसर रोग को जन्म देता है।
बृहत्पाराशरहोराशास्त्र के अनुसार छठ भाव पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है अर्थात जातक रोगी होगा और यदि षष्ठ भाव में राहु व शनि हो तो असाध्य रोग से पीड़ित हो सकता है।
मूकता (गूंगापन):-
द्वितीयेश यदि गुरु के साथ आठवे भाव में स्थित हो तो व्यक्ति के गूंगा होने की प्रबल सम्भावना रहती है|
बुध और छठे का स्वामी लग्न में हो तो भी व्यक्ति गूंगा हो सकता है| कर्क, वृश्चिक या मीन लग्नो में बुध कहीं भी और कमज़ोर चंद्रमा उसे देखे तो जातक को हकलाहट की समस्या हो सकती है|
कोई भी लग्न हो परन्तु शुक्र यदि द्वितीय भाव में क्रूर ग्रह से युक्त हो तो व्यक्ति काना या नेत्र विकार युक्त अथवा तुतलाकर बोलने वाला होता है|
द्वितीयेश और अष्टमेश की युति हो या द्वितीयेश पाप पीड़ित हो और अष्टमेश उसे देखे तो हकलाहट या गूंगेपन की पूरी सम्भावना रहेगी|