जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से रामचरितमानस में बालि पुत्र अंगद ने अहंकारी रावण को समझायी महत्वपूर्ण बातें……
रावण बुराई का प्रतीक है, लेकिन उसे विद्वान भी माना जाता है। वह सभी वेदों और शास्त्रों का जानकार था, प्रकांड पंडित था। एक ओर तो रावण में ये गुण थे, वहीं दूसरी ओर रावण में कई अवगुण भी थे। रावण ने कामवश होकर सीता का हरण किया और श्रीराम से युद्ध में पराजित हुआ।रावण को कई बार सभी ने समझाने की कोशिशें भी की, लेकिन उसे अपनी शक्तियों का घमंड था और उसने किसी की बात नहीं मानी। बालि पुत्र अंगद ने भी रावण को समझाने का प्रयास किया था।श्रीरामचरित मानस के लंका कांड में अंगद और रावण के बीच हुए संवाद का वर्णन है। इस संवाद में अंगद ने 14 तरह के लोग बताए थे जो जीते जी मृत समान माने गए हैं।तुलसीदासजी ने लिखा है कि-कौल कामबस कृपिन विमूढ़ा। अतिदरिद्र अजसि अतिबूढ़ा।।सदारोगबस संतत क्रोधी। विष्णु विमूख श्रुति संत विरोधी।।तनुपोषक निंदक अघखानी। जिवत सव सम चौदह प्रानी।।इन चौपाइयों में 14 लोगों को मृत समान बताया गया है। यहां जानिए चौपाइयों का अर्थ…कामवश- जो व्यक्ति सिर्फ कामवासना में लिप्त हो, वह मृत समान है। जिसके काम इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती और जो अपनी इन इच्छाओं को पूरा करने के लिए ही जीता है, वह मृत समान है।वाम मार्गी- जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले। जो हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो। नियमों, परंपराओं और सदाचार के खिलाफ चलता हो, वह वाम मार्गी कहलाता है। ऐसे काम करने वाले लोग भी मृत समान माने गए हैं।कंजूस- बहुत ज्यादा कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो व्यक्ति धर्म के कार्य करने में, आर्थिक रूप से सामाजिक भलाई के कामों में हिस्सा लेने में हिचकता हो, दान करने से बचता हो, वह भी मृत समान माना गया है।अति दरिद्र- जो व्यक्ति धन, आत्म-विश्वास, सम्मान और साहस से गरीब हो, वो भी मृत समान है। जो व्यक्ति गरीबी दूर करने के प्रयास नहीं करता है और भाग्य को दोष देता है, वह भी मृत समान माना गया है। व्यक्ति कर्म करते हुए इस कमी को दूर करने के प्रयास करते रहना चाहिए।विमूढ़- अत्यंत मूढ़ यानी मूर्ख व्यक्ति भी मृत समान होता है, जिसके पास बुद्धि न हो, जो खुद निर्णय ना ले सके। हर काम को समझने या निर्णय लेने में दूसरों पर आश्रित हो, ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुए मृत समान ही है।अजसि- जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ है। जो घर, परिवार, कुटुंब, समाज, नगर या राष्ट्र, किसी भी जगह सम्मान नहीं पाता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही होता है। जीवन में मान-सम्मान होना बहुत जरूरी है।सदा रोगवश- जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता है, वह भी मृत समान माना गया है। स्वस्थ शरीर के बिना मन विचलित रहता है। नकारात्मकता हावी हो जाती है। जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति स्वस्थ्य जीवन के आनंद से दूर रह जाता है।अति बूढ़ा- अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह दूसरे लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि, दोनों काम करना बंद कर देते हैं। ऐसे में कई बार बूढ़ा व्यक्ति भी खुद की मृत्यु की कामना करने लगता है, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।हमेशा क्रोध में रहने वाला- 24 घंटे क्रोध में रहने वाला भी मृत समान ही है। हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करना ऐसे लोगों का काम होता है। क्रोध के कारण मन और बुद्धि, दोनों पर ही काबू नहीं हो पाता है।जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता है।अधार्मिक कामों से धन कमाने वाला- जो व्यक्ति पाप कर्मों से धन कमाता है और अपने परिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही है। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है।खुद के लिए जीने वाला व्यक्ति- ऐसा व्यक्ति जो सिर्फ खुद के स्वार्थों के लिए ही जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना ना हो तो ऐसा व्यक्ति भी मृत समान है।जो लोग यही सोचते हैं कि सारी चीजें पहले उन्हें ही मिल जाएं, बाकि किसी दूसरे को मिले ना मिले, वे मृत समान होते हैं।हमेशा बुराई करने वाला – बिना वजह बुराई करने वाला व्यक्ति भी मृत समान होता है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियां ही नजर आती हैं। जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी बुराई करने से नहीं चूकता, वह भी मृत समान होता है।विष्णु विमुख- जो व्यक्ति भगवान का विरोधी है, वह भी मृत समान है। जो व्यक्ति ये सोच लेता है कि कोई परमात्मा है ही नहीं। हम जो कुछ करते हैं, वह हम ही करते हैं। संसार हम ही चला रहे हैं, ऐसा सोचने वाले व्यक्ति भी मृत माने गए हैं।संत और वेद विरोधी- जो संत, ग्रंथ, पुराण और वेदों का विरोधी है, वह भी मृत समान माने गए हैं।