जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय से  ज्योतिष ज्ञान

धर्म डेस्क।जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय से ज्योतिष ज्ञान

वृष लग्न में शुभ एवं योगकारक ग्रह एवं भावानुसार ग्रहो का फल

सूर्य,बुध,शुक्र,शनि वृष लग्न में भावानुसार प्रायः शुभ फल करते है।

चंद्र,मंगल,एवं गुरु इस लग्न में प्रायः अशुभ कारक माने जाते है।
राहु इस लग्न या राशि में उच्चस्थ माना जाता है।

भावानुसार ग्रहो के फल

सूर्य चतुर्थेश होने से २,४,५,१०,११ भावो में शुभ ३, ६, ८, वे स्थानों में अशुभ तथा १, ७, ९ एवं १२ भावो में मिश्रित फल देता है।

चंद्र १, ३, ५, ७, ९ एवं ११ वे भाव में शुभ तथा अन्य भावो में अशुभकारक होता है।

मंगल ६, ९, एवं ११ वे भाव में शुभ एवं अन्य भावो में अशुभ फल देता है।

बुध ३, ६, ८, ११, एवं १२ वे भाव में अशुभ और अन्य भावो में शुभ फल देता है।

गुरु ३, ७, १० एवं ११ भाव में शुभ १, ३, ६ वे भाव में अशुभ तथा ४, ५, ८, ९ और १२ वे भाव में मिश्रित फल देता है।

शुक्र १, २, ५, ६, ९ एवं १० वें भाव में शुभ फलदायी तथा शेष भावो में अशुभ कारक है।

शनि १, २, ५, ६, ९, १०, ११ वें भावो में शुभ योग कारक होता है। ३, ४, ८ वे भाव में मिश्रित फलदायी तथा ७ एवं १२ वे भाव में अशुभ फल देता है।इस लग्न में शनि राजयोग कारक भी होता है।

राहु १, ३, ५, ९, १०, व् १२ वें भाव में शुभ तथा अन्य भावो में अशुभ फली होता है।

केतु ४, ६, ७, ८, ११ वे भाव में शुभ शेष में अशुभ फल देता है।

वृष लग्न में शुभाशुभ योग

१. शुक्र-शनि का योग २, ३, ५, ९, १०, एवं ११ वे भावो में शुभ फल देता है।अन्य स्थानों में अशुभ फल होता है।इस योग के प्रभाव से जातक बुद्धिमान,उच्चप्रतिष्ठित, भाग्यवान, एवं जातक की ३६ वर्ष के बाद भाग्योन्नति होती है।

२. मंगल-शनि योग ७ एवं ९ वें भाव में शुभ फल देता है,अन्य स्थानों में अशुभ फल होता है।
इस योग के फलस्वरूप जातक अत्यंत संघर्ष के बाद विलम्ब से जीवन में सफलता पाने वाला, एवं स्त्री से मतान्तर और अशांतोषि रहता है।

३. सूर्य-बुध का योग वृष लग्न में २, ६, ८ एवं व्यय स्थानों में अशुभ अन्य सभी स्थानों में शुभ फल प्रदान करता है।इस योग से जातक उच्च शिक्षित,धनवान, भूमि,वाहन आदि सुखो से संपन्न होता है।

४. सूर्य-मंगल का योग ४,९ भावो में शुभ शेष भावो में अशुभ फल देता है।इस योग के प्रभाव से जातक विशेषकर विवाह के बाद भाग्यवान होता है तथा देश-विदेश की यात्राये एवं खर्च अधिक करता है।

५. सूर्य-शनि का योग ५, ७, १०, ११ एवं १२ वें भाव में शुभ अन्य भावो में अशुभ फल प्रदान करता है,इस योग के प्रभाव से जातक को संघर्ष एवं काफी उलझनों के बाद पैतृक सम्पति प्राप्त होती है।वाहन का सुख श्रेष्ठ रहता है।

६. बुध शनि का योग २, ४, ५, ९, १०, एवं ११ वें भाव में शुभ अन्य भावो में अशुभ फल प्रदान करता है।इस योग के कारण जातक के आय के साधन एक से अधिक होते है।क्रय-विक्रय के कार्यो से लाभ होता है।

७. मंगल-बुध का योग वृष लग्न में २, ५, ७, ९ वें भाव में शुभ तथा अन्य भावो में अशुभ होता है।इस योग के प्रभाव स्वरूप जातक को देशी-विदेशी सम्पर्को से धन के मार्ग प्रशस्त होते है।विदेश यात्रा के प्रबल योग बनते है।

८. बुध-शुक्र का योग २ व् ५ वे भाव में शुभ माना जाता है,अन्यत्र मिश्रित फलदायी होता है।इस योग के प्रभाव स्वरूप जातक विभिन्न साधनो द्वारा धन अर्जित करता है,वस्त्र, कागज़, कम्प्यूटर, एवं सौंदर्य प्रसाधनो में धनार्जन की सम्भावनाये अधिक होती है।

इसके अतिरिक्त निम्नलिखित ग्रह योग अन्य किसी भी भाव में प्रायः विशेष फल नही करते अर्थात निष्प्रभावी रहते है।

बुध-गुरु, मंगल-गुरु एवं गुरु- शनि।

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