श्रीलंका में त्रिकोणमाली नाम की जगह पर चट्टान पर बना शंकरी देवी का मंदिर तमिलभाषी हिंदुओं की आस्था का केंद्र रहा है।

धर्म।श्रीलंका के कोलंबो से 250 किमी दूर त्रिकोणमाली नाम की जगह पर चट्टान पर बना शंकरी देवी का मंदिर सभी भक्तों और तमिलभाषी हिंदुओं की आस्था का केंद्र रहा है।हमारे भारत में भगवान के अनेकों चमत्कारी मंदिर हैं जहां भगवान के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्तों की टोली दर्शन के लिए आते हैं। हर एक धार्मिक स्थल का अपने में एक खास स्थान और महत्व होता है, आज हम आपको एक ऐसे ही चमत्कारी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो मां के सभी शक्तिपीठों में एक माना जाता है।

बता दें, श्रीलंका के कोलंबो से 250 किमी दूर त्रिकोणमाली नाम की जगह पर चट्टान पर बना शंकरी देवी का मंदिर सभी भक्तों और तमिलभाषी हिंदुओं की आस्था का केंद्र रहा है। त्रिकोणमाली जिले की 1 लाख हिंदू आबादी की आस्था का भी केंद्र है। यह मंदिर त्रिकोणमाली आने वाले लोग इसे शांति का स्वर्ग भी कहते हैं। दोनों ही नवरात्र पर यहां कई विशेष आयोजन होते हैं, जिसमें श्रीलंका के अलावा भारत के तमिलनाडु से श्रद्धालु भी आते हैं। नवरात्रि में यहां पहुंचने वालों की संख्या रोजाना 500 से 1000 के बीच है, लेकिन अष्टमी और नवमी पर भीड़ बढ़ जाती है। बता दें देवी मां का यह आस्था केंद्र माता शक्ति के सभी शक्तिपीठों में एक माना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती के शरीर का उसंधि हिस्सा गिरा था। जिससे इस स्थल को शक्तिपीठ का नाम दिया गया। कुछ ग्रंथों में यहां सती का कंठ और नूपुर गिरने का उल्लेख भी है। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। बताया जाता है कि शंकरी देवी मंदिर की स्थापना खुद रावण ने की थी। यहां शिव का मंदिर भी है, जिन्हें त्रिकोणेश्वर या कोणेश्वरम कहा जाता है। इसलिए इस स्थान का महत्व शिव और शक्ति, दोनों की पूजा में है।

इस मंदिर की गणना शंकराचार्य द्वारा निश्चित 18 महा-शक्तिपीठों में भी किया गया है। इतिहास में इस मंदिर पर कई बार हमले हुए, जिनसे मंदिर का स्वरूप बदलता रहा, लेकिन प्रतिमा को हर बार बचा लिया गया। चोल और पल्लव राजाओं ने इस मंदिर में काफी काम कराया। दरअसल, इस भव्य मंदिर को 17वीं शताब्दी में पुर्तगाली आक्रमणकारियों ने ध्वस्त कर दिया था, जिसके बाद मंदिर के एकमात्र स्तंभ के अलावा यहां कुछ भी नहीं था।

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