रेणुकूट, दिनांक 01 अक्टूबर – विगत 55 वर्षों से हिण्डाल्को रामलीला परिषद द्वारा हिण्डाल्को रामलीला मैदान में लगातार आयोजित की जा रही दक्षिणाचंल की प्रसिद्ध रामलीला सोमवार दिनांक 01 अक्टूबर की रात को पूजन-अर्चन के साथ प्रारम्भ हुई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, हिण्डाल्को, रेणुकूट के वित्त एवं वाणिज्य विभाग के प्रमुख श्री संजीब राजदेरकर ने हिण्डाल्को रेणुकूट क्लस्टर के एचआर हेड एवं रामलीला परिषद के मुख्य सलाहकार श्री सतीश आनन्द, रामलीला परिषद् के अध्यक्ष वी.एन. झा, सलाहकार कर्नल संदीप खन्ना, महासचिव डीपी सिंह, कोषाध्यक्ष विजय शर्मा, निर्देशक सुनील परवाल एवं आदित्य पांडेय व अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ गौरी- गणेश पूजन व रामायण पूजन कर हिण्डाल्को की रामलीला का शुभारंभ किया।
रामलीला मंचन में भाग ले रहे कलाकारों ने गणेश स्तुति पर एक साथ नौ मंचों पर नृत्य करके रामलीला मंचन का पूरी भव्यता व अनूठे ढंग से शुभारम्भ किया। इसी के साथ-साथ शिव-पार्वती वार्तालाप व नारद मोह के बहुत ही सजीव मंचन के साथ लीलायें प्रारम्भ हुईं जिसमें भगवान शंकरजी, पार्वतीजी को राम की कथा सुनाते हुये बताते है कि नारदजी को दो घड़ी से भी ज्यादा कहीं नही ठहर पाने का श्राप मिला हुआ था। श्राप मुक्त होने के लिये नारदजी तपस्या में लीन हो जाते हैं। नारदजी की तपस्या से देवराज इन्द्र का सिंहासन डोलने लगता है, तब इन्द्रजी कामदेव को नारदजी के पास उन्हें समझाने के लिये भेजते हैं। कामदेव पर जीत प्राप्त कर लेने पर नारदजी को घमण्ड हो जाता है। उनके घमण्ड को तोड़ने के लिये विष्णुजी अपनी माया से लक्ष्मीजी को मोहनी के रूप में नारदजी के पास भेजते हैं जिस पर नारदजी मोहित हो जाते हैं। मोहिनी को रिझाने के लिये नारदजी सुन्दर रूप पाने के उद्देश्य से विष्णुजी के पास जाते हैं जहां विष्णुजी उन्हें वानर का रूप दे देते हैं जिसका पता चलने पर नारदजी का मोह भंग होता है और साथ ही उनका घमण्ड भी चूर हो जाता है। प्रथम दिन की अन्य लीलाओं में मनु-सतरूपा प्रसंग, रावण वरदान प्राप्ति एवं राक्षसों के अत्याचार तथा पृथ्वी की पुकार का बहुत ही विहंगम दृष्य मंचित किया गया। तत्पश्चात् राजा दशरथ द्वारा किये गये पुत्रेष्ठि यज्ञ से उनकी तीनों रानियों कौशल्या, कैकेई और सुमित्रा को पुत्र रत्नों की प्राप्ति होती है। रामलला के जन्म की खबर पर पूरे अयोध्या में खुशी की लहर दौड़ जाती है और रामलला के दर्शन पाकर मैदान पर उपस्थित हजारों लीला प्रेमियों में भी उल्लास छा जाता है और पूरा मैदान श्री राम के जयकारे से गूंज उठता है। इसके बाद की लीलाओं में गुरु वशिष्ठ नामकरण करते हुये चारों भाइयों को क्रमशः राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुध्न का नाम प्रदान करते हैं। आगे चारों भाई गुरु वशिष्ठ के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करते हुए अपने बाल सुलभ लीलाओं से दर्शकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करते हैं। प्रथम दिन की लीला मंचन का भारी संख्या में उपस्थित संस्थान के अधिकारियों, कर्मचारियों व रेणुकूट नगरवासियों ने भरपूर आनंद उठाया।
एकसाथ नौ मंचों पर नृत्य कर लीला का शुभारंभ करते कलाकार
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