विंढमगंज सोनभद्र इस्लाम धर्म के अनुसार मोहर्रम महीना 1 तारीख से ही शुरु होता है मोहर्रम का त्यौहार इमाम हसन और हुसैन के यादगार में मनाया जाता है जैसा कि बताया जाता है कि इमाम हुसैन और हसन के नाना मोहम्मद साहब के द्वारा यह पहले ही बता दिया गया था कि मोहर्रम महीने के दसवीं तारीख को कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन शहीद होंगे इमाम हुसैन और यजीद के बीच जब जंग छिड़ी तो जिस मुल्क में कर्बला पड़ता है उस मुल्क का बादशाह यजीद धोखे से इमाम हुसैन को अपने व अपने मुल्क के लोगों को पीरी मुर्शीदी कराने के लिए इमाम हुसैन को बुलाया जबकि उनसे पहले इमाम हुसैन के चचेरे भाई मुस्लिम व मुस्लिम के दोनों बच्चे पहले ही चले गए थे वहां पर जाने के बाद धोखाधड़ी करके बुलाया गया था और उन लोगों से कहा गया कि हमसे तुम मुरीद हो जाओ परंतु परंतु इन्होंने नाजायजगलत व शराबी कबाबी लोगों के हाथ से मुरीद होना स्वीकार नहीं किया जिस पर उनको जंग लड़ना पड़ा मोहर्रम मोहर्रम के महीने के पहले ही इसके बाद इमाम हुसैन को धोखा देकर के बुलाया गया और धोखा से पहुंचे इमाम हुसैन उस मुल्क में तो इन्होंने भी वहां के मुल्क के बादशाह से लगातार 9 दिन युद्ध हुआ तथा दसवें दिन इमाम हुसैन शहीद हुए इसी के उपलक्ष में मोहर्रम का त्यौहार यादगार के रूप में मनाया जाता है दुलदुल घोड़ा आज मोहर्रम के त्यौहार के मद्देनजर आकर्षण का केंद्र है नईम अहमद ने बताया कि दुलदुल घोड़ा जो जन्नती घोड़ा था यह भोला इमाम हुसैन का सवारी था और इस घोड़े में इतनी सारी खासियत और खूब यकीन किया अपने एक ही लक्ष्य में लगभग 100 किलोमीटर तक उड़कर हवा में जा सकता था याद उल्लू घोड़ा कर्बला के मैदान में अपने दुश्मन से लड़ने में बहुत ही इमाम हुसैन का मददगार साबित हुआ था इमाम हुसैन जब भी लड़ाई के मैदान में जाया करते थे तो घोड़े पर सवार होकर के जाया करते थेअंजुमन इस्लामिया कमेटी के सदर सुहेल अहमद खान सहित मुजीब खान मुमताज अली अकबर मकसूद अहमद डब्लू खान रफी अहमद शाहरुख खान जिलानी शकील आतिशबाज नसीम अंसारी मुराद तूफान खलीफा मुर्तुजा आर फिल्म रशीद अहमद फाइनल सिद्दीकी मोहम्मद परवेज अहमद शफीक अहमद निसार सहित सैकड़ों लोग ने भाग लिया इस दौरान विंढमगंज के दरोगा कृष्ण अवतार सिंह समेत दर्जनों पीएसी बल व पुलिस के जवान मुस्तैदी के साथ मोहर्रम के जुलूस को संपन्न कराने में लगे हुए थे