धर्म डेस्क।हिन्दू धर्म में हर त्योहार को बहुत महत्व दिया जाता है, जिस दिन को सभी बड़े धूम-धाम और उत्सव से मनाते हैं। इसी तरह हर साल गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है जो इस बार 2 सितंबर से शुरु हो रहा है। जो जल्दी ही शुरु होने वाला है। आज हम आपको गणेश चतुर्थी के मौके पर भगवान गणेश जी के जीवन से जुड़ी एक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं-
गणेश जी के टूटे दांत की कहानी-
जब महर्षि वेदव्यास महाभारत लिखने के लिए बैठे, तो उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो उनके मुख से निकले हुए महाभारत की कहानी को लिखे। इस कार्य के लिए उन्होंने श्री गणेश जी को चुना। गणेश जी भी इस बात के लिए मान गए पर उनकी एक शर्त थी कि पूरा महाभारत लेखन को एक पल के लिए भी बिना रुके पूरा करना होगा। गणेश जी बोले– अगर आप एक बार भी रुकेंगे तो मैं लिखना बंद कर दूंगा।
महर्षि वेदव्यास नें गणेश जी की इस शर्त को मान लिया। लेकिन वेदव्यास ने गणेश जी के सामने भी एक शर्त रखा और कहा– गणेश आप जो भी लिखोगे समझ कर ही लिखोगे। गणेश जी भी उनकी शर्त मान गए। दोनों महाभारत के महाकाव्य को लिखने के लिए बैठ गए। वेदव्यास जी महाकाव्य को अपने मुंह से बोलने लगे और गणेश जी समझ-समझ कर जल्दी-जल्दी लिखने लगे। कुछ देर लिखने के बाद अचानक से गणेश जी का कलम टूट गया। कलम महर्षि के बोलने की तेजी को संभाल ना सका।
गणेश जी समझ गए की उन्हें थोडा से गर्व हो गया था और उन्होंने महर्षि के शक्ति और ज्ञान को ना समझा। उसके बाद उन्होंने धीरे से अपने एक दांत को तोड़ दिया और स्याही में डूबा कर दोबारा महाभारत की कथा लिखने लगे। जब भी वेदव्यास को थकान महसूस होता वे एक मुश्किल सा छंद बोलते, जिसको समझने और लिखने के लिए गणेश जी को ज्यादा समय लग जाता था और महर्षि को आराम करने का समय भी मिल जाता था।
महर्षि वेदव्यास जी और गणेश जी को महाभारत लिखने में 3 वर्ष लग गए। वैसे तो कहा जाता है महाभारत के कुछ छंद गूम हो गए हैं परन्तु आज भी इस कविता में 100000 छंद हैं।