एस एन सी उर्जान्चल
लखनऊ । मंत्रिमंडल विस्तार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भ्रष्टाचार को लेकर अपनी जीरो टालरेंस का नजारा पेश किया पर शायद ऊर्जा विभाग उनके दायरे से बाहर है?विद्युत उत्पादन निगम में ओबरा का सरकारी बिजली घर फुंकवाने से लेकर तमाम वित्तीय व प्रशासनिक अनियमितताओं का आरोपी कार्मिक निदेशक संजय तिवारी अपने खैरख्वाहों की बदौलत किसी भी कारवाई की जद से बाहर है। गंभीर आरोपों का सामना कर रहे संजय तिवारी की जांच का स्वांग भी रचा गया, दोषी करार दिया गया पर सजा मुकर्रर हुई तो बस 10% की पेंशन कटौती।
भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सख्ती का उदाहरण मंत्रिमंडल विस्तार के बाद विभागों के बंटवारे में देखने को तो मिला लेकिन ऊर्जा विभाग में उनकी सख्ती बेअसर रही। स्वास्थ्य, वित्त और स्टाम्प पंजीयन विभागों में भ्रष्टाचार का मामला उजागर होने पर सीएम द्वारा इसकी जांच कराई गयी और विभागों के बंटवारों में इसपर अंकुश न लगा पाने के चलते मंत्रियों से उनके विभाग वापस ले लिए गए. लेकिन मुख्यमंत्री की यह सख्ती ऊर्जा विभाग में जनता के पैसों को स्वाहा करने वाले ओबरा अग्निकांड के दोषी, चार्जसीटेड निदेशक कार्मिक संजय तिवारी पर नहीं लागू होती जिसको कि जल्द ही गलत तरीके से एक फंड डायवर्जन के मामले में जांच पूरी होने के बाद एक दूसरी चार्जसीट दिए जाने की तैयारी चल रही है. सूत्रों के मुताबिक़ फिलहाल यह भ्रष्टाचारी एक नेताजी की शरण में जाकर उनसे अपने बचने की डील पक्की कर चुका है और नेताजी इसकी पैरवी भी शुरू कर चुके हैं।
मुख्यमंत्री योगी द्वारा तबादला नीति को पारदर्शी बनाने के तमाम कोशिशों को ऊर्जा विभाग के उत्पादन निगम के दागी निदेशक कार्मिक संजय तिवारी ने अपने कुतर्कों से धता ही नहीं बताया बल्कि वर्षों से एक जगह जमे इंजीनियरों का तबादला नहीं किया. मुख्यमंत्री द्वारा भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के दृढ संकल्प को ऊर्जा विभाग के उत्पादन निगम के निदेशक कार्मिक संविदा पर चल रहे व ओबरा अग्निकांड में सजायाफ्ता (10% पेंशन में कटौती प्रस्तावित) संजय तिवारी ने अभियंताओं के संगठन के एक पदाधिकारी से मिलकर आखिर 2003 बैच के इंजीनियरों के तबादला न करने का जबरदस्ती रास्ता निकाला और 15 वर्ष से ज्यादा समय से जमे इन अभियंताओं का तबादला नहीं किया. संजय तिवारी ने 2003 बैच के इन इंजीनियरों के ट्रेनिंग पीरियड को सर्विस पीरियड से अलग दर्शाया जबकि ज्ञातब्य है कि प्रशिक्षण अवधि को सेवा अवधि माना जाता है और इसको सेवा अवधि मानते हुए इन्क्रीमेंट भी दिया जाता है।
जानकारों का मानना है कि जब किसी इंजीनियर का चयन होता है, तो चयन के साथ ही वह समस्त सेवा शर्तें उसके साथ प्रभावी हो जाती हैं जोकि ट्रेनिंग के बाद मिलनी चाहिए. यानी कि नियुक्ति के बाद से ही इंजीनियर उन सभी सुविधाओं का पात्र होता है जो ट्रेनिंग के बाद दिया जाता है. मतलब उसको इंक्रीमेंट मिलता है, महंगाई भत्ता मिलता है और यदि इस बीच ट्रेनिंग के दौरान किसी इंजीनियर की साथ कोई दुर्घटना हो जाती है तो उसके आश्रित को मृतक आश्रित कोटे से नौकरी देने का भी प्रावधान होता है, जिसका उदाहरण भी विभाग में मौजूद है. ऐसे में सवाल उठता है जब नौकरी के सारी सेवा शर्तें ट्रेनिंग के दौरान से ही शुरू हो जाती हैं तो उनके सेवाकाल को इससे अलग कैसे किया जा सकता है. इस तरह यह समझने के लिए काफी है कि किस तरह नियमों की गलत व्याख्या पैसे के बल पर निदेशक कार्मिक संजय तिवारी द्वारा की गई और 2003 बैच के इंजीनियरों का तबादला रुकवाया गया।
सूत्रों की मानें तो संजय तिवारी तक इसके एवज में एक बड़ी रकम अभियंताओं के संगठन के एक बड़े पदाधिकारी द्वारा पहुंचाई गयी. इस धन को 2003 बैच के अभियंताओं द्वारा संयुक्त रूप से इकट्ठा किया गया था।. जिसके चलते ऊर्जा विभाग के उत्पादन निगम में तबादलों को लेकर जो नियमावली बनाई गयी थी उसका अनुपालन गुमराह करके, गलत तिकड़म कर नहीं किया जा सका. पैसे की गर्मी से निदेशक कार्मिक उत्पादन निगम संजय तिवारी पिघल गये और उनके द्वारा इससे बचने का तोड़ निकाल लिया गया. संजय तिवारी ने 2003 बैच के इन इंजीनियरों के ट्रेनिंग पीरियड को सर्विस पीरियड से अलग करते हुए तबादला नीति के दायरे से गलत तरीके से बाहर कर दिया और उनका तबादला नहीं किया. बताते चलें कि “अफसरनामा” पहले भी संजय तिवारी के भ्रष्टाचार को उजागर करता रहा है. सूत्रों के अनुसार भ्रष्टाचारी संजय तिवारी के दंश से निचले तबके के अधिकारी व् कर्मचारी तक नहीं बच सके हैं. इसके अलावा एक फंड डायवर्जन के मामले में सीए फार्म जमुना शुक्ला द्वारा की गयी जांच में भी पूरा खेल संजय तिवारी का ही नजर आया और जिसके लिए जल्द ही इनको चार्जसीट दी जा सकती है जोकि ओबरा अग्निकांड को मिलाकर दूसरी चार्जसीट होगी।
बिजली विभाग से जुड़े कुछ अधिकारियों का मानना है की उत्पादन निगम के निदेशक कार्मिक संजय तिवारी द्वारा 2003 बैच के इन इंजीनियरों के तबादले को लेकर जो रास्ता निकाला गया वह पूरी तरह से नियम विरुद्ध और अव्यवहारिक था. पूर्व में हुए तबादलों में तबादला नियमों का ऐसा कोई उदाहरण मौजूद नहीं है जिसको निदेशक कार्मिक संजय तिवारी द्वारा इस बार अपनाया गया।