जब हम आत्माएं इस सृष्टि पर पहली बार आई थीं तो यहां पूरा साल ही सावन होता था।

धर्म डेस्क। हम साल के उस मोड़ पर खड़े हैं जहां से मानव को एक नया उत्साह मिलता है। जीवन में नई-नई उमंगे हिलोर मारने लगती हैं और मन मयूर नाचने लगता है। अभी सावन माह चल रहा है और इस महीने को पवित्र माना जाता है। अगर हम शास्त्रों की बात करें तो उसमें कई कहानियां लिखी हुई हैं। जब हम आत्माएं इस सृष्टि पर पहली बार आई थीं तो यहां पूरा साल ही सावन होता था।
जैसे-जैसे समय बीतता गया मानव के मन में लोभ जन्म लेने लगा, जिसका शिकार बनी प्रकृति। जो आज हम वर्तमान रूप में देख रहे हैं यह उसी का परिणाम है। पूरे साल में यही एक महीना ऐसा है, जिसमें हम पूरा समय परमात्मा शिव के साथ होते हैं। उनका नाम लेते हैं और उनका गुणगान करते हैंं। शिव के सभी मंदिर उनके कर्तव्यों के बोधक हैं और हमें भी ऐसे ही कर्तव्य करने की प्रेरणा देते हैं, लेकिन मानव मन की बढ़ती हुई आकाक्षांओं ने उसे परमात्मा से दूर कर दिया, जिसके कारण हमारे जीवन में दुख, पीड़ा, संकट के रूप में अनेक समस्याएं आने लगी हैं।
परमात्मा का यह महीना जीवन में हमें अनेक प्रकार की शुद्धि अपनाने की प्रेरणा देता है। चाहे वह खान-पान हो, जीवन-शैली हो या फिर व्यवसाय का हो। जो काम हम पूरे साल नहीं करते हैं वह हम इस महीने में करते हैं। सुबह उठकर शिव मंदिरों में जाते हैं और वहां शिवलिंग पर जल अर्पण करते हैं। यह हमारी भारतीय संस्कृति की देन है कि जो कभी भी मंदिर नहीं जाते हैं वे भी इस महीने मंदिर जाते हैं। इस महीने में लोग उपवास भी रखते हैं, लेकिन जानकारी न होने के कारण वे अन्न का उपवास कर देते हैं, जबकि इसके महत्व को जानते हुए उसे जीवन में अपनाने की आवश्यकता है।
उप+वास का शाब्दिक अर्थ अगर देखें तो उप मतलब ऊपर और वास मतलब रहना यानी ऊपर रहना। इसलिए अपने मन और बुद्धि से उपवास रहें और परमात्मा शिव के स्वरूप, गुण और उनकी शक्तियों को स्वयं में समाहित करें। जब हम एक महीने सात्विकता को अपनाएंगे तो जीवन में कई परिवर्तन देखने को मिलेंगे। जब व्यक्ति का मन सात्विक होगा तो निश्चय ही उसके कर्म और बोल सात्विक होंगे, जब यह दोनों सात्विक होंगे तो हम व्यवसाय या नौकरी भी शुद्ध मन से करेंगे, जिससे हमारे घर में धन भी सात्विक आएगा। जब धन सात्विक आएगा तो निश्चित ही अन्न भी सात्विक होगा, इस सात्विक अन्न से हमारी बुद्धि भी सात्विक बनेगी और घर के संबंधों में मधुरता आएगी। हमारे संस्कारों में दिव्यता आएगी।
जब परमात्मा द्वारा दिए गए सत्य ज्ञान की एकएक बूंद हमारे बुद्धि रूपी कलश में समाहित होती है तो जीवन से अंधकार छटने लगता है। मानव सत्य ज्ञान के बल से पावन बनकर अपने स्वरूप को प्राप्त कर लेता है। ठीक वैसे ही जैसे शिवलिंग के ऊपर एक कलश रखा जाता है, जिससे बूंद-बूंद जल शिवलिंग पर टपकता रहता है। भौतिक जीवन शैली को अपनाते हुए मानव परमात्मा के द्वारा दिए गए सत्य ज्ञान से दूर होता जा रहा है, जबकि इसी सत्य ज्ञान में जीवन का सार और परिवार के मधुर संबंध समाहित हैं।
– बीके शिवानी (ब्रह्मकुमारी)

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