विनेश ठाकुर सम्पादक
विधान केसरी लखनऊ
लखनऊ।कहने को तो बसपा मुखिया कुमारी मायावती भले ही खुद को दलित पिछड़ों का हितैषी बताती हो या सपा दलित शुभचिंतक कहती हो लेकिन सोनभद्र कांड पर नजर डाले तो बसपा मुखिया घटनास्थल पर जाकर सांत्वना या आर्थिक सहायता तो क्या देती दलित प्रेम का दिखावा भी नहीं कर सकी। सरकार ने जो किया वह उसकी जिम्मेदारी थी, लेकिन कांग्रेसी नेता प्रियंका गांधी इस घटना में बसपा मुखिया को पछाड़ कर नम्बर वन जा पहुंची । हालांकि अपने भाई आनंद की 400 करोड़ की संपत्ति आयकर द्वारा जप्त करने के मामले में उन्होंने अपने लखनऊ स्थित आवास पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके न सिर्फ भाजपा पर भड़ास निकाली बल्कि भाजपा को दलित पिछड़ा विरोधी बता कर कहा कि मैं भाजपाइयों से डरने वाली नहीं हूं। किसी दलित पिछड़े पर कोई परेशानी आई तो मैं उसके साथ खड़ी हूं ।मैं पूछना चाहता हूं बसपा मुखिया कुमारी मायावती से कि क्या 10 दलितों की जान और दर्जनों का घायल होना उनके भाई पर पड़ी रेड के बराबर भी नहीं है। यदि वह वाकई दलितों की हितैषी होती तो सबसे पहले सोनभद्र पहुंचकर पीड़ित परिजनों के आंसू पोछने का काम करती। लेकिन उन्होंने ऐसा न करके खुद को छोटा करने का काम किया है इनसे अच्छा तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं जिन्होंने प्रियंका गांधी के बाद ही सही सोनभद्र पहुंचकर साढ़े अठारह लाख रुपए प्रति व्यक्ति की सरकारी सहायता करने के साथ नौकरी, आवास, जमीन सहित गैस कनेक्शन, बिजली कनेक्शन वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन आदि की तमाम घोषणाएं कर डाली। यदि बसपा मुखिया न भी जाती तो पहले ही दिन प्रतिनिधि मंडल भेजकर पीड़ितों के आंसू पोंछ सकती थी। लेकिन ये तो गरीबों दलितों पिछड़ों के केवल वोट लेना चाहती है मैं पूछना चाहता हूं पूर्व मुख्यमंत्री महोदया से क्या इसी लिए आपने कांशीराम जी द्वारा गठित बसपा की कमान संभाली थी। आपने चुनाव में श्री मुलायम सिंह यादव को पिछड़ों का नेता बताकर पिछड़ों की समय रहते आंख खोल दी।और सोनभद्र न जाकर एससी एसटी के लोगों का चश्मा उतार दिया। भले ही सब लोग आपको न समझ सके परंतु आपके द्वारा सोनभद्र की अनदेखी करने से कुछ समझदार लोग तो आपका दलित प्रेम समझ ही जायेंगे। कोई मानें न माने लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आपसे तो ममता बनर्जी ज्यादा दयालु है जिन्होंने अगले ही दिन अपने सांसद भेजे, भले ही सरकार ने उन्हें एयरपोर्ट पर रोक दिया हो, लेकिन उन्होंने सच्चा जनसेवक होने का परिचय तो दिया। क्या आपके जाने से मरने वाले जिंदा हो जातें, मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि आप अब भी पच्चीस पच्चीस लाख की घोषणा कर दें तो उत्तर प्रदेश सरकार पीड़ितों को चालीस पचास लाख तों कर ही देगी। लेकिन आपने देना कहा सीखा है बहनजी, मान्यवर कांशीराम साहब की आत्मा भी रोकर कह रही होगी कि मैंने अपने जीते जी किसके हाथ में बसपा की कमान दे डाली।और बहनजी क्या आपको पता नहीं कि बसपा का गठन करने वाले कांशीराम जी ने जीते जी अपने परिवार के किसी व्यक्ति को बसपा में शामिल नहीं होने दिया और आपने पहले भतीजे को संगठन में शीर्ष पर बैठाया, फिर भाई को बिना संघर्ष राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना डाला। यदि इन्हें बसपा में लाना ही था तो पहले ज्वाइन कराकर सैक्टर इंचार्ज से शुरू कराती फिर जिले से होते हुए प्रदेश में काम कराकर राष्ट्रीय संगठन में शामिल करती, कोई उंगली नहीं उठा पाता। परंतु आपने तो शायद इसी लिए बसपा को प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी बनाकर रख दिया है। आपने अखिलेश यादव के द्वारा ही सही पिछड़ों का काफी वोट लिया और जीरो से दस सीटें पाकर उनसे अलग हो गई, बहनजी यह भी पिछड़ों के साथ धोखा है आप देखना अगले चुनाव में आप चौथे नंबर पर रहेंगी। भले ही आप पिछड़ों को दो सौ टिकट दे देना लेकिन अब आप पर पिछड़ा तो भरोसा करेगा ही नहीं, मुसलमान भी भरोसा नहीं करेगा।खैर मैंने सम्पादकीय की दिशा मोड़ दी वहीं आता हूं तो सुनो आपने सोनभद्र कांड में केवल ट्विटर बाजी करके और पांच दिन बाद अपना प्रतिनिधि मंडल भेजकर न सिर्फ पीड़ितों का दिल तोड़ा है बल्कि सोचने को मजबूर कर दिया, कि भविष्य में दलित पिछड़ों को किसके साथ चला जाए। उसके साथ जो वोट बेचकर पलट कर भी न देखें या उसके साथ रहा जाये जो साथ बैठकर खाना खाये और खुद को खुले मंच से पिछड़ा बताये और दलितों के पैर धोकर खुद को धन्य समझे।