युधिष्ठिर ने कौरव सेना से पूछा था, क्या कोई योद्धा पांडवों की ओर से लड़ना चाहता है

धर्म और अधर्म जानता था-युयुत्सु

जीवन मंत्र डेस्क। महाभारत में कई ऐसे पात्र हैं, जिनका किरदार महत्वपूर्ण था, लेकिन उन्हें कम लोग ही जानते हैं। ऐसा ही एक पात्र था युयुत्सु। जानिए युयुत्सु से जुड़ी कुछ खास बातें…

धृतराष्ट्र का पुत्र था युयुत्सु अधिकतर लोग धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्रों का बारे में ही जानते हैं, लेकिन धृतराष्ट्र के सौ नहीं एक सौ एक पुत्र थे। धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम युयुत्सु था।युयुत्सु की माता गांधारी नहीं थी, बल्कि धृतराष्ट्र को यह पुत्र एक दासी से प्राप्त हुआ था। जब गांधारी गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र की सेवा के लिए दासी नियुक्त की गई थी। उस दासी से ही युयुत्सु का जन्म हुआ था।धृतराष्ट्र पुत्र होने के कारण युयुत्सु भी एक कौरव था, लेकिन वह अन्य कौरवों की तरह अधर्मी और पापी नहीं था। वह धर्म और अधर्म जानता था। युद्ध शुरू होने से पहले युधिष्ठिर ने रणभूमि के बीच खड़े होकर कौरव सेना के सैनिकों से पूछा था, क्या शत्रु सेना का कोई भी वीर पांडवों के पक्ष से युद्ध करना चाहता है। तब धृतराष्ट्र पुत्र युयुत्सु कौरवों का पक्ष छोड़कर पांडवों के पक्ष में आ गया था। युद्ध में पांडव पक्ष का साथ देने की वजह से युद्ध समाप्त होने पर केवल यही एक कौरव जीवित बचा था।

द्रौपदी के चीरहण के समय युयुत्सु ने किया था विरोध

जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था, तब युयुत्सु ने कौरवों का विरोध किया था और पांडवों का साथ दिया था। युद्ध के समय पांडव पक्ष में आने के बाद युधिष्ठिर ने एक विशेष रणनीति की वजह से युयुत्सु को सीधे युद्ध के मैदान में नहीं भेजा, बल्कि उसकी योग्यता देखते हुए योद्धाओं के लिए हथियारों की आपूर्ति की व्यवस्था देखने के लिए नियुक्त किया था।हलकि महाभारत के पीछे सच्चाई क्या है इस तथ्य को धर्म विशेषज्ञ ही तर्क दे सकते है।दैनिक भास्कर के सौजन्य से ।

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