
शिक्षा डेस्क।संघर्षों से लडऩे का जोश और जज्बा हो तो बड़ी से बड़ी बाधा को पार किया जा सकता है। इसका जीता जागता उदाहरण है, मोल्यासी गांव का पैरालंपिक खिलाड़ी महेश। जिसने अपना एक हाथ कटने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और जिदंगी को बोझ नहीं समझ कर दिव्यांगता को मात देकर खेल जगत में वो मुकाम हासिल किया जिसका, कोई सानी नहीं है। बानगी यह है कि दिव्यांगता के ताने सुनकर आसुंओं को पीने वाले इस युवक ने हाथ गंवाने के बाद अपने पैरों को ढाल बनाया और दौड़ का अभ्यास कर खेल मैदान पर उतरा।
इसी का परिणाम यह रहा कि गांव-ढाणी से निकला महेश तीन बार अंतराष्ट्रीय चैंपियनशिप में शामिल होकर विदेशी धरती पर सफलता के झंडे गाडे। इसके अलावा आठ बार राष्ट्रीय व 45 तथा 60 दफा राज्य और जिला स्तर पर खेलकर 101 पदक हासिल करने का शतक लगा दिया। बतौर नेहरा मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। इंसान यदि हिम्मत और हौसले के साथ आगे बढ़े तो मंजिल उसके कदम चूमने लगती है। तानों ने उसके जीवन को झकझौर कर रख दिया था। लेकिन, उसने मेहनत और उम्मीद नहीं छोड़ी तथा संघर्ष कर आगे बढ़ता गया।
पत्रिका के सौजन्य से
मशीन ने छीना था हाथ
पढ़ाई के लिए महेश नेहरा 2001 में पुणे गया था। खर्चे के लिए महेश ने यहां एक प्लास्टिक की बाल्टी तैयार करने वाली कंपनी में मजदूरी शुरू की। लेकिन, यहां मशीन में हाथ आ जाने पर उसने हाथ गंवा दिया। दिव्यांग हो जाने पर दुनिया के ताने सुने तो मन में कुछ कर गुजरने की ठान ली और खेल के लिए दौड़ की तैयारी की। इसके बाद मुडक़र नहीं देखा और राज्य से राष्ट्रीय तथा श्रीलंका व चाइना एशियन गेम तक पहुंचा। अब 20 जून को आस्ट्रेलिया में होने वाले खेलों में शामिल होगा।
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