विपक्ष के पास प्रधानमंत्री पद के लिये विकल्प की कमी नहीं

सिद्घार्थ कलहंस राष्ट्रीय सचिव आईएफडब्ल्यूजे

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा और संघ ने समाज में जातिवाद का जहर घोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हमारी मजबूरी है कि राजनीति में रहने के लिए जाति का नाम लेना पड़ रहा है। हमारी पूरी कोशिश है कि चुनाव मुद्दों पर लड़ा जाए। लोकसभा चुनावों में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की रणनीति, मुद्दों और मौजूदा राजनीतिक हालात पर अखिलेश से बात की सिद्घार्थ कलहंस ने। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश

सपा-बसपा-रालोद गठबंधन में विसंगतियों, मतभेद और एक दूसरे को वोट ट्रांसफर को लेकर क्या कहना है?

हमने और मायावती ने देश और उत्तर प्रदेश के लिए बड़ा त्याग किया है। ऐसा कहां होता है कि किसी प्रदेश के दो प्रमुख राजनीतिक दल राज्य में 40-40 सीटें छोड़ दें लेकिन हमने ऐसा किया क्योंकि यह देश और समाज के हित में है। हम आज प्रदेश भर में मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं और नेता से लेकर कार्यकर्ता तक गठबंधन के पक्ष में एकजुट हैं।

कांग्रेस से बात नहीं बनी। अब सुनने में आ रहा है कि कांग्रेस ने कई जगहों पर ऐसे प्रत्याशी दिए हैं, जिससे गठबंधन की मदद हो रही है…

कांग्रेस सहानुभूति लेने के प्रयास में ऐसी अफवाह फैला रही है। इस तरह का कुछ नहीं है। हमने कांग्रेस के लिए केवल अमेठी-रायबरेली की सीट छोड़ी है। कांग्रेस 2019 नहीं 2022 के विधानसभा चुनावों को नजर में रखते हुए यह चुनाव लड़ रही है। उनकी नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है। कांग्रेस चाहती है कि अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ही भाजपा के साथ मुख्य मुकाबले में रहे। हम देश बचाने के लिए लड़ रहे हैं जबकि कांग्रेस यूपी में अपनी जमीन बचाने की लड़ाई रही है।

वाराणसी, लखनऊ और इलाहाबाद जैसी सीटों पर सपा ने कमजोर प्रत्याशी उतार कर भाजपा को एक तरह से वॉकओवर दे दिया है…

यह आरोप गलत है। इलाहाबाद में हमारा प्रत्याशी काफी मजबूत है। हमने वहां एक नया प्रयोग किया है। लखनऊ के बारे में मैं कह सकता हूं कि आजादी के बाद से यह कांग्रेस की सीट रही है। एक बार बहुगुणा जी को छोड़ दें तो बीते समय में ज्यादातर बार कांग्रेस और बाद में भाजपा जीती है। इस बार हमने मजबूत प्रत्याशी दिया है और चाहते हैं काम के नाम पर चुनाव हो। लखनऊ में हर जगह हमारा काम दिखता है। यहां गठबंधन के प्रत्याशी अच्छी टक्कर देंगे।

लेकिन वाराणसी को लेकर तो कमजोर प्रत्याशी के आरोप सही लगते हैं…

वाराणसी में तो खुद प्रधानमंत्री चुनावी मैदान में हैं। हालांकि हमारी प्रत्याशी शालिनी यादव प्रतिष्ठित घराने से आने वाली सम्मानित नेता हैं। आज वहां लोग क्योटो को याद कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने जितने वादे किए उनमें से कितना पूरा किया है? बनारस के लोग सब देख रहे हैं और उसी के आधार पर फैसला लेंगे। वाराणसी में हम मजबूती से लड़ेंगे।

चुनाव में विकास कोई मुद्दा नहीं जबकि बड़े पैमाने पर यहां औद्योगिक निवेश लाने की बात हुई लेकिन चुनाव में इसकी चर्चा नहीं हो रही है। इसकी वजह?

सब कागजी और हवाई बातें हैं। निवेशक सम्मेलन, लाखों करोड़ रुपये का निवेश लाने का दावा हुआ, कहां गया वह सब। एक ही उद्योगपति कोलकाता, मुंबई से लेकर यहां तक 50,000 करोड़ रुपये के निवेश के वादे कर गया। अर्थव्यवस्था की खराब हालत और बैंकों के कर्ज न देने की दशा में वह कहां से निवेश करेगा। अगर इतना ही विकास किया है तो यूपी की सरकार औद्योगिक विकास के नाम पर वोट क्यों नहीं मांग रही है? हालात पहले से और बदतर ही हुए हैं।

गठबंधन की अच्छी सीटें आने पर आपका प्रधानमंत्री कौन होगा?

अभी हमने यह नहीं सोचा है। इतना जरूर है कि मौजूदा प्रधानमंत्री बदलने जा रहे हैं और हम नया प्रधानमंत्री बनाएंगे। हमारे पास विकल्पों की कमी नहीं है। बहुत से अच्छे नेता हैं विपक्ष के पास। दिक्कत तो भाजपा के सामने हैं। उनके पास कोई विकल्प नहीं है। ले देकर एक ही नाम है उनके पास।

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