लखनऊ।यूपी लोकसभा सामान्य निर्वाचन 2019 के चुनाव में बसपा भले ही गठबंधन में 38 सीटों पर चुनाव लड़ रही हो पर बहुत कठिन डगर है सीटों को जितना।लोक सभा की 12 सीटें ऐसी हैं, जहां आजादी के बाद से उसे कभी सफलता नहीं मिली है। बसपा के लिए इन सीटों पर जीत बड़ी चुनौती के रूप में देखी जा रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती को इन सीटों पर जीत के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। यह बात अलग है कि बसपा ने इस बार उम्मीदवारों के चयन बहुत सोच समझ कर किया है, ताकि जातीय समीकरण के आधार पर सीट पर जीत का परचम लहराया जा सके।यूपी की आरक्षित 17 सीटों में बसपा के खाते में 10 सीटें गई हैं। इनमें से पांच सीटें मोहनलालगंज, बुलंदशहर, आगरा, शाहजहांपुर और बासगांव की बात करें तो बसपा को इन सीटों पर आजादी के बाद से कभी सफलता नहीं हासिल की है। राजधानी से ठीक सटे मोहनलालगंज क्षेत्र के आरके चौधरी बसपा के कद्दावर नेता रहे हैं और कांशीराम के करीबी माने जाते रहे। वह मोहनलालगंज विधानसभा सीट से 1996, 2002 और 2007 में लगातार तीन बार विधायक बने, लेकिन वर्ष 2014 में बसपा लोकसभा उम्मीदवार बनकर मैदान में उतारने के बाद भी जीत का सेहरा उनके सिर पर नहीं बंध सका। उन्हें दूसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा। अब वह कांग्रेसी हैं। बसपा ने इस बार मोहनलालगंज से नए उम्मीदवार सीएल वर्मा पर दांव लगाया है। सीएल बर्मा पासी बिरादरी के हैं और मोहनलालगंज संसदीय सीट पर इस बिरदारी का अच्छा खासा वोट बैंक बताया जाता है।
पश्चिम की कई सीटें पर नहीं खुल सका खाता
पश्चिमी यूपी की आगरा, बुलंदशहर जैसी सीटों पर बसपा का खाता तक नहीं खुल पाया है। आगरा सीट पश्चिमी यूपी की प्रमुख सीटों में से एक रही है। बसपा भले ही यहां मैदान में आती रही पर उसे सफलता कभी नहीं मिल सकी। कांग्रेस और भाजपा के लिए यह सीट हमेशा से अच्छी मानी गई। कांग्रेस सात बार तो भाजपा पांच बार यहां बाजी मार चुकी है। यहां तक की गठबंधन की सहयोगी सपा का भी दो बार इस सीट पर कब्जा रहा है। यह बात अलग है कि बसपा 2009 और 2014 के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करते हुए दूसरे स्थान पर पहुंचने में सफल रही थी। वर्ष 2009 के चुनाव में तो बसपा बहुत कम मार्जिन से हारी। भाजपा को 31.48 और बसपा को 29.98 फीसदी वोट मिले थे। बुलंदशहर सीट पर भी बसपा का कुछ ऐसा ही हाल रहा। यह बात अलग है कि गठबंधन के सहयोगी दल सपा और रालोद इस सीट पर जीत दर्ज कर चुकी है।
समीकरण से बाजी मारने की जुगत
आंवला, धौरहरा, कैसरगंज जैसी सीटों पर सफलता न पाने वाली बसपा ने इस बार नए समीकरण के हिसाब मैदान में गोटें सजाई हैं। आंवला से सपा से आई रुचि वीरा मैदान में हैं। वह वैश्य हैं। आंवला सीट पर कभी जीत दर्ज न करने वाली बसपा ने उन्हें मैदान में भेज कर नया दांव लगाया है। कैसरगंज से पूर्व मंत्री चंद्रदेव यादव करैली को मैदान में उतारा गया है। यह सीट भी बसपा कभी नहीं जीत पाई है। परिसीमन के बाद बनी धौरहरा सीट से बसपा के पूर्व सांसद इलियास आजमी के बेटे अरशद अहमद सिद्दीकी पर दांव लगाया गया है। धौरहरा परिसीमन के बाद वर्चस्व में आई। धौरहरा लोकसभा सीट इस समय भाजपा के खाते में है। ये सीट शाहजहांपुर से अलग होकर बनी। पहली बार 2009 में यहां चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस के जितिन प्रसाद जीते।
जिन सीटों पर कभी जीत नहीं उस पर 2014 की स्थिति
सीट उम्मीदवार स्थान वोट प्रतिशत
मोहनलालगंज (सु) आरके चौधरी दूसरे 3,09,858 27.75
बुलंदशहर (सु) प्रदीप जाटव दूसरे 1,82,476 18.06
आगरा (सु) श्रीनारायण सिंह सुमन दूसरे 2,83,453 26.48
शाहजहांपुर (सु) उम्मेद सिंह कश्यप दूसरे 2,89,603 25.62
बासगांव (सु) सदल प्रसाद दूसरे 2,28,443 26.02
आंवला सुनीता शाक्य तीसरे 1,90,200 19.10
प्रतापगढ़ आशिफ निजामुद्दीन सिद्दीकी दूसरे 2,07,567 23.20
फर्रुखाबाद जयवीर सिंह तीसरे 114,521 11.80
कैसरगंज कृष्ण कुमार ओझा तीसरे 1,46,726 15.55
श्रावस्ती लालजी वर्मा तीसरे 1,94,890 19.88
गाजीपुर कैलाशनाथ सिंह यादव तीसरे 2,41,645 24.49
धौरहरा दाउद अहमद दूसरे 2,34,682 22.13।