★ सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा
★ कोर्ट ने कहा, अगर दानदाता की पहचान ही गुप्त तो काले धन पर लगाम की हर कवायद व्यर्थ
★ सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड को पारदर्शिता लाने वाला और काले धन के खिलाफ कदम बताया
★ एनजीओ एडीआर और सीपीएम ने इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में डाली है याचिका
नई दिल्ली :
अगर पारदर्शी पॉलिटिकल फंडिंग के लिए बनाए गए इलेक्टोरल बॉन्ड्स को खरीदने वालों की पहचान ही गुप्त रहे, तब सरकार की चुनावों में काले धन को रोकने की सारी कवायद व्यर्थ हो जाएगी। गुरुवार को यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्टने इलेक्टोरल बॉन्ड्स के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की। कोर्ट ने एक एनजीओ की तरफ से इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिका में मांग की गई है कि या तो इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाई जाए या फिर चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए दानदाताओं के नामों को सार्वजनिक किया जाए।
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का केंद्र ने यह कहते हुए पुरजोर हिमायत की है कि इसका उद्देश्य चुनावों में काले धन के इस्तेमाल को खत्म करना है। केंद्र ने कोर्ट से कहा कि इस चरण में वह इस प्रक्रिया में दखल न दे और चुनाव बाद इसकी जांच करे कि यह कारगर रही या नहीं। सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना की बेंच से सरकार ने कहा, ‘जहां तक इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की बात है तो यह सरकार के नीतिगत फैसले से जुड़ा मामला है और किसी भी सरकार को नीतिगत फैसले से नहीं रोका जा सकता।’
बेंच ने सरकार की तरफ से पक्ष रख रहे अटर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल से पूछा कि इलेक्टोरल बॉन्ड को जारी करते वक्त क्या बैंकों को इसके खरीदारों की पहचान पता होती है या नहीं। इसके जवाब में वेणुगोपाल ने कहा कि हां, उन्हें खरीदारों की पहचान पता होती है। अटर्नी जनरल ने कहा कि केवाईसी की प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही बैंक बॉन्ड जारी करते हैं। इसमें वही केवाईसी प्रक्रिया लागू होती है जो बैंक में अकाउंट खुलवाने के लिए होती है।
इसके बाद कोर्ट ने अटर्नी जनरल से पूछा, ‘जब बैंक इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करते हैं तो क्या बैंकों के पास यह जानकारी होती है कि किस बॉन्ड को ‘X’ को जारी किया गया और किस बॉन्ड को ‘Y’ को जारी किया गया।’ इसका जवाब नहीं में पाने पर बेंच ने कहा कि अगर बॉन्ड खरीदने वालों की पहचान ही नहीं पता है तो काले धन पर लगाम लगाने की सरकार की सारी कोशिशें व्यर्थ हैं।