10 राज्यों की 20 बड़ी सीटें, पिछली बार भाजपा ने इनमें से 11, कांग्रेस ने 7 जीती थीं

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नई दिल्ली.चुनाव आयोग ने रविवार को लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया। इस बार चुनाव मेंवाराणसी, रायबरेली, अमेठी, अमृतसर, गांधीनगर समेत 10 राज्यों की 20 बड़ी सीटों पर नजर रहेगी। 2014 में इन 20 सीटों में भाजपा ने 11 औरकांग्रेस ने 7 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2 सीटें अन्य दलों के खाते में गईं थीं।

वाराणसी

क्यों चर्चा में: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा सीट।

पिछले नतीजे: भाजपा यहां 1991 में पहली बार जीती। तब से यहसीट भाजपा के कब्जे में रही है। सिर्फ 2004 में यहां कांग्रेस के राजेश कुमार मिश्रा जीत सके थे। 2014 में भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल के बीच यहां मुकाबला था। मोदी के एक बार फिर उनके यहां से लड़ने की संभावना है।

अमेठी

क्यों चर्चा में : गांधी परिवार की परंपरागत सीट, एक बार फिर राहुल और स्मृति आमने-सामने हो सकते हैं।

पिछले नतीजे: 2004 राजनीति में आने के बाद राहुल गांधी इसी सीट से चुनाव लड़ते और जीतते रहे हैं। राहुल से पहले उनकी मां सोनिया, पिता राजीव और चाचा संजय यहां से सांसद रह चुके हैं। 1967 में अमेठी लोकसभा सीटअस्तित्व में आई। तब से आज तक कांग्रेस यहां से सिर्फ दो बार 1977 और 1998 में हारी। 1977 में जनता लहर में लोकदल के रवींद्र प्रताप सिंह ने संजय गांधी को हराया था। जबकि, 1998 में कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा को भाजपा के संजय सिंह ने मात दी थी।

रायबरेली

क्यों चर्चा में : गांधी परिवार की परंपरागत सीट, सोनिया गांधी कांग्रेस की प्रत्याशी।

पिछले नतीजे: 2004 से सोनिया यहां से जीत रही हैं। सोनिया से पहले इंदिरा भी रायबरेली से तीन बार सांसद रहीं। अमेठी की तरह रायबरेली भी कांग्रेस का गढ़ है। 1952 से 2014 तक हुए 16 चुनावों में कांग्रेस यहां सिर्फ तीन बार हारी। पहली बार 1977 में यहां से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लोकदल के राज नारायण ने हराया था। वहीं, 1996 और 1998 में जब गांधी परिवार कांग्रेस में सक्रिय नहीं था तब भी पार्टी यहां से हार गई थी।

लखनऊ

क्यों चर्चा में : भाजपा की परंपरागत सीट। गृहमंत्री राजनाथ सिंह यहां से सांसद हैं। दोबारा यहीं से लड़ सकते हैं।

पिछले नतीजे: 1991 से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 5 बार यहां से सांसद रहे। वाजपेयी के राजनीति से दूर होने के बाद 2009 में लालजी टंडन भाजपा के टिकट पर यहां से जीते। पिछली बार राजनाथ सिंह यहां से जीतकर संसद पहुंचे।

गोरखपुर

क्यों चर्चा में : उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृह क्षेत्र। सीएम बनने से पहले योगी यहां से 6 बार जीते।

पिछले नतीजे: इस सीट पर गोरखनाथ मठ का उम्मीदवार कभी नहीं हारा। योगी से पहले उनके गुरु महंत अवैध नाथ 1989 और 1991 में यहां से सांसद रहे। 1996 से लगातार ये सीट योगी ने जीती। योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा यहां सपा उम्मीदवार प्रवीण निषादसे हार गई। एक बार फिर भाजपा प्रत्याशी मठ के बाहर का हो सकता है। ऐसे में भाजपा के लिए इस सीट को जीतना बड़ी चुनौती होगी।

गुना

क्यों चर्चा में : सिंधिया परिवार की परंपरागत सीट। पार्टी कोई हो, चुनाव इसी परिवार का सदस्य जीतता है।

पिछले नतीजे: इस सीट पर जब भी सिंधिया परिवार का कोई सदस्य चुनाव में खड़ा हुआ, उसे जीत ही मिली। अब तक के 16 लोकसभा चुनावों में सिर्फ तीन बार 1952, 1962 और 1984 में इस परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ा। राजमाता यशोधरा राजे सिंधिया यहां से 6 बार, माधवराव सिंधिया 4 बार यहां से अलग-अलग दलों के टिकट पर सांसद रहे। 2004 से ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस सांसद हैं। एक बार फिर उनके यहां से लड़ने की बात चल रही है।

छिंदवाड़ा

क्यों चर्चा में : मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ का गृह क्षेत्र, कमलनाथ के बेटे नकुल नाथ यहां से चुनाव लड़ सकते हैं।

पिछले नतीजे: आम चुनावों में कांग्रेस यहां कभी नहीं हारी, सिर्फ 1997 में हुए उप-चुनाव में भाजपा के सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को हराया था। कमलनाथ यहां से 10 बार सांसद चुने गए। 1996 में उनकी पत्नी अलका नाथ सांसद बनी। अब परिवार से तीसरा सदस्य यहां से चुनाव लड़ सकता है।

इंदौर

क्यों चर्चा में : लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन की परंपरागत सीट।

पिछले नतीजे: 1989 से सुमित्रा महाजन यहां से जीत रही हैं। एक बार फिर वे यहां टिकट की दावेदारहैं। 2018 में राज्य में हुए विधासनभा चुनाव में कांग्रेस इस सीट में आने वाली 8 में से तीन सीटों पर जीती थी।

सवाई-माधोपुर

क्यों चर्चा में : राजस्थान के उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट का क्षेत्र। जयपुर राजघराने की दिया कुमारी भी यहां काफी सक्रिय हैं।

पिछले नतीजे: इस सीट पर कोई भी दल लगातार तीन बार नहीं जीत सका है। 2014 में ये सीट भाजपा के खाते गई थी। इससे पहले 2004 और 2009 में यहां से कांग्रेस जीती। 2018 में राज्य में हुए विधासनभा चुनाव में सवाई-माधोपुर लोकसभा सीट में आने वाली 8 में से 6 सीटें कांग्रेस ने जीतीं।

जयपुर ग्रामीण

क्यों चर्चा में : केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर यहां से सांसद हैं।

पिछले नतीजे: 2008 के परिसीमन में जयपुर और अलवर जिले के कुछ हिस्सों को मिलाकर जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट का गठन हुआ। परिसीमन के बाद यहां हुए लोकसभा के दो चुनावों में एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा का कब्जा रहा। 2009 में इस सीट पर कांग्रेस के लालचंद कटारिया ने भाजपा के राव राजेंद्र सिंह को 52 हजार 237 वोटों से हराया था। 2014 में भाजपा ने यहां कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ को टिकट दिया। उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता सीपी जोशी को 3 लाख 32 हजार 896 वोटों से पराजित किया।

जोधपुर

क्यों चर्चा में : राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृह क्षेत्र।

पिछले नतीजे: जोधपुर में अशोक गहलोत को छोड़कर कोई भी लगातार तीन बार नहीं जीत सका। गहलोत 1991, 1996 और 1998 में यहां से जीते हैं। 2018 में राज्य में हुए विधासनभा चुनाव में जोधपुर लोकसभा सीट में आने वाली 8 में से 6 सीटें कांग्रेस ने जीतीं।

पटना साहिब

क्यों चर्चा में : शत्रुघ्न सिन्हा यहां से सांसद हैं। भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं।

पिछले नतीजे : 2008 में परिसीमन के बाद से यहां दो बार लोकसभा चुनाव हुए और दोनों ही बार शत्रुघ्न सिन्हा ने जीत दर्ज की। उन्होंने 2014 में कांग्रेस नेता और अभिनेता कुणाल सिंह को 2 लाख 65 हजार 805 वोटों के अंतर से हराया था। इससे पहले 2009 में कांग्रेस ने अभिनेता शेखर सुमन को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वे भी शत्रुघ्न से हार गए थे।

दरभंगा

क्यों चर्चा में : भाजपा छोड़ कांग्रेस में आए कीर्ति आजाद तीन बार यहां से जीत चुके।

पिछले नतीजे : दरभंगा लोकसभा सीट मो. अली अशरफ फातमी का गढ़ रहा है। वे इस सीट से चार बार जीत चुके हैं। कीर्ति आजाद ने 1999 के चुनाव में फातमी को हराकर उनसे यह सीट छीन ली थी। 2004 में फातमी ने फिर इस सीट पर जीत दर्ज की। इसके बाद 2009 और 2014 में कीर्ति आजाद ही इस सीट पर अपना परचम लहराते रहे हैं।

मधेपुरा सीट

क्यों चर्चा में : पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, पप्पू यादव जैसे नेता इस सीट से सांसद रहे।

पिछले नतीजे: आरजेडी से राजेश रंजन (पप्पू यादव) इस सीट से सांसद हैं। उन्होंने 2015 में आरजेडी छोड़कर अपनी जन अधिकार पार्टी लोकतांत्रिक का गठन किया। यादव 2004 में भी इस सीट से सांसद रह चुके हैं। मधेपुरा शरद यादव का गढ़ माना जाता है। वे यहां से चार बार (1991, 1996, 1999 और 2009) सासंद रहे। लेकिन 2014 में उन्हें पप्पू यादव ने मात दी। इसके बाद उन्होंने 2016 में लोकतांत्रिक जनता दल बनाया। इस सीट से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी 1998 में लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं।

अमृतसर सीट

क्यों चर्चा में : 2014 में अमरिंदर सिंह ने अरुण जेटली को हराया।इस बार चर्चा है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कांग्रेस इस सीट से टिकट दे सकती है।

पिछले नतीजे: भाजपा ने 2014 में लोकसभा चुनाव में नवजोत सिंह सिद्धू का टिकट काटकर अरुण जेटली को प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जेटली को 1,02,770 वोट से हराया। हालांकि, अमरिंदर ने 2017 विधानसभा चुनाव के बाद यह सीट छोड़ दी, वे पंजाब के मुख्यमंत्री हैं। उपचुनाव में भी कांग्रेस के गुरजीत सिंह औजला ने जीत दर्ज की। इससे पहले नवजोत सिंह सिद्धू लगातार तीन बार (2004, 2007 उप-चुनाव और 2009) में इस सीट से सांसद रहे। हालांकि, उन्होंने नाराज होकर राज्यसभा सांसद के पद से इस्तीफा दे दिया और 2017 में कांग्रेस से जुड़ गए।

गांधीनगर

क्यों चर्चा में : लालकृष्ण आडवाणी यहां से 6 बार से सांसद हैं।

पिछले नतीजे: गांधीनगर लोकसभा सीट करीब 6 दशक से राजनीति में सक्रिय भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का गढ़ माना जाता है। वे यहां से 6 बार (1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014) से सांसद हैं। माना जा रहा था कि इस बार भाजपा 75 की उम्र पार कर चुके नेताओं को टिकट नहीं देगी, लेकिन अब पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं को भी टिकट देने का फैसला किया है। ऐसे में आडवाणी एक बार फिर इस सीट से चुनाव लड़ सकते हैं।

नागपुर

क्यों चर्चा में : यह केंद्रीय मंत्री और पूर्व भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी का निर्वाचन क्षेत्र है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय भी नागपुर में ही है। 2014 से पहले यह कांग्रेस का गढ़ रहा है। सिर्फ दो बार यहां भाजपा जीत सकी है।

पिछले नतीजे : नागपुर ऐसी लोकसभा सीट है, जो कांग्रेस ने 1977 में इंदिरा विरोधी लहर में भी नहीं गंवाई। 1962 (निर्दलीय) और 1971 (फॉरवर्ड ब्लॉक) छोड़ दें तो 1991 तक हुए बाकी लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस ही जीती। 1996 में यहां से भाजपा के बनवारी लाल पुरोहित जरूर जीते लेकिन 1998, 1999, 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर विलासराव मुत्तेमवार जीतते रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने नितिन गडकरी को टिकट दिया और पार्टी को कांग्रेस के गढ़ में जीत मिली।

रोहतक

क्यों चर्चा में : 9 बार सांसद बन चुके हैं हुड्डा परिवार के सदस्य।

पिछले नतीजे : रोहतक कांग्रेस और हरियाणा के हुड्डा परिवार का गढ़ माना जाता है। यह सीट 9 बार हुड्डा परिवार के पास रही है। आजादी के बाद रणवीर सिंह हुड्डा यहां से लगातार दो बार सांसद रहे। इसके बाद उनके बेटे भूपेंद्र सिंह (1991, 1996, 1999 और 2004) चार बार सासंद रहे हैं। इनके बाद रणवीर के पोते और भूपेंद्र के बेटे दीपेंद्र सिंह ने सीट पर कब्जा जमा लिया। दीपेंद्र (2005 उप-चुनाव, 2009 और 2014) से तीन बार सांसद हैं।

पुरी

क्यों चर्चा में : नरेंद्र मोदी के इस लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा।

पिछले नतीजे:पुरी सीट पर 1998 के बाद से बीजद का कब्जा रहा है। इस सीट पर भाजपा कभी जीत हासिल नहीं कर पाई। लेकिन इस बार पुरी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा है। माना जा रहा है कि मोदी अगर यहां से चुनाव लड़ते हैं तो इसका असर राज्य की अन्य सीटों पर भी पड़ा था। ओडिशा उन राज्यों में है जहां 2014 की मोदी लहर का असर नहीं हुआ था। बीजद ने 21 में से 20 और भाजपा ने सिर्फ एक सीट जीती थी। बीजद नेता बृजकिशोर त्रिपाठी यहां से (1991, 1998, 1999, 2004) चार बार सांसद रहे। मौजूदा सांसद पिनाकी मिश्र 1996 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। मिश्र 2009 और 2014 में बीजद से चुनाव जीते।

पत्तनमतिट्टा – सबरीमाला

क्यों चर्चा में : सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पूरे राज्य में विरोध हुए, भाजपा उन्हीं का फायदा उठाने के प्रयास में।

पिछले नतीजे: केरल का पत्तनमतिट्टा संसदीय क्षेत्र सबरीमाला मंदिर के लिए मशहूर है। सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को मंदिर में हर उम्र की महिला को प्रवेश की अनुमति दी। इसके बाद से ही राज्यभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। भाजपा सुप्रीम कोर्ट के फैसले का खुलकर विरोध कर रही है। 2009 में यहां पहली बार लोकसभा चुनाव हुए। इसमें कांग्रेस के एंटोनी पुन्नाथानियिल ने जीत हासिल की। एंटोनी 2014 में एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर जीते।

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