- नर्मदा जयंती पर विशेष
- सोन महानद के नाम पर ही है जनपद का नाम सोनभद्र
– विजय शंकर चतुर्वेदी
सोनभद्र।सोनभद्र की संपूर्ण सांस्कृतिक विरासत का आधार सोन नद है, जिसे सोनभद्र भी कहा जाता है । सोनांचल की संस्कृति और भारतीय संस्कृति पर पुस्तकों के लेखक व विदेशों में व्याख्यान दे चुके विजय शंकर चतुर्वेदी ने बताया कि यही सोन इतिहास के तमाम उतार-चढ़ाव को समेटे केवल इतिहास पुरुष के हाथों खिलौना पर बन के रह गया है , जिस काल पुरुष ने मध्य भारत की हरीतिमा से निकालकर इस नदी को पूर्वांचल की ओर भेजा वह बड़ा ही मनमौजी और प्रतिगामी स्वभाव का रहा होगा , अन्यथा सोन को इतने परिवर्तनों से होकर ना गुजरना पड़ता । अमरकंटक की ऊचाइयां और सानिध्य नर्मदा का , कितना सुखकर अतीत था सोनभद्र का । पुराण गाथाओं का अभिशप्त साक्षी सोन, नर्मदा ने कितनी मनुहार की इस जल पुरुष की , चरणों में लोट कर , लिपटकर मनाना चाहा अपने प्राणप्रिय को , पर सोन अविचलित , ध्यानमग्न योगी की तरह उतना उतना ही निस्पृह , उतना ही तटस्थ । आखिर रूठी प्राणप्रिया नर्मदा चली गयी सुदूर पश्चिम की ओर कच्छ के मरुक्षेत्र में, अकेला सोनभद्र पूरब की ओर चल पड़ा ,सोन को अगस्त्य का वरदान प्राप्त था कि वह विंध्य पर्वत की हरीतिमा और उल्लास का साक्षी रहेगा ।
नेह की यह डोर इन उपत्यकाओं से बांधे रही सोन को, विंध्य और कैमूर की पहाड़ियों की प्रीति ने इसका साथ निभाया । सोनभद्र इन्ही पहाड़ियों की प्यास के बीच तब तक चलता रहा जब तक वह पाटलिपुत्र (पटना ) तक नहीं पहुंचा । अगस्त्य का शाप था कि जब तक वह गंगा के चरण नहीं छुएगा नर्मदा की प्रीत की डोर उसे पहाड़ियों में ही भटकायेगी और वह प्यासा ही रहेगा ।
श्री चतुर्वेदी के अनुसार
कितनी प्राणमयी है यह पुराणगाथा। सोन और नर्मदा की यह अमर प्रेमकथा आज भी भारतीय मनीषा की थाती है। नर्मदा सोन से विवाह करना चाहती थीं , उन्होंने अपनी दासी जोहिला को सोन को जांचने परखने के लिए सोन के पास भेजा, उपयुक्त वस्त्र और स्वर्ण आभूषण के अभाव में नर्मदा ने अपने वस्त्र जोहिला को दे दिया । जब जोहिला सजधज कर सोन के पास पहुंची तो रूपसज्जा और स्वर्ण आभूषणों से लदी दासी जोहिला को ही सोन नर्मदा समझ बैठे, और कुछ दिनों सानिध्य में रहने के बाद प्रेम प्रसंग करने लगे । कई दिन बीत जाने पर जब जोहिला नहीं लौटी तो नर्मदा को चिंता हुई, उन्होंने स्वयं जाने का निर्णय लिया । नर्मदा जब सोन के पास पहुंची तो दोनों को प्रेम प्रसंग करते देखा , वे क्रोधित हो गयीं और दोनों को शाप दे दिया और स्वयं पूरब की ओर चल पड़ीं थीं। ब्रम्हापुत्र सोन अचंभित हो गए थे, अनुनय विनय के बाद नर्मदा ने उनकी मुक्ति के उपाय भी बताए, लेकिन जोहिला को शापमुक्त नहीं किया ।