वायु प्रदुषण से बढ़ रहे हैं सी.ओ.पी.डी मरीजों की संख्या
डॉ. एस.के पाठक
सुरभी चतुर्वेदी की रिपोर्ट
वाराणसी।ब्रेथ ईजी चेस्ट सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल, अस्सी, वाराणसी द्वारा विश्व सी.ओ.पी.डी दिवस (16 नवम्बर 2022) के उपलक्ष में 15 नवम्बर 2022 को ब्रेथ ईजी कांफ्रेंस हाल में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में वरिष्ठ टी.बी, एलर्जी, श्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ एस. के पाठक ने बताया कि “दुनियाभर में सीओपीडी से करीब 21 करोड़ लोग प्रभावित हैं और यह मृत्यु का चौथा कारण बनी हुई है I दुनियाभर में सीओपीडी से जितनी मृत्यु होती है, उसमें से एक चौथाई हिस्सा भारत का है. साल 2016 में सीओपीडी के 2 करोड़ 22 लाख रोगी थे I यह बीमारी समय के साथ गंभीर होती जाती है और कई बार यह जानलेवा तक हो सकती है I सीओपीडी ग्रस्त लोगों में सांस की नलियों में ब्लॉकेज होने या कम लचीले होने से फेफड़ों की कार्यक्षमता प्रभावित होने लगती है और यह उनमें बहुत आम समस्या है. इससे सीओपीडी के लक्षण खासतौर से सांस लेने में तकलीफ जैसी गंभीर समस्याएं ज्यादा हो जाती है. इसे मेडिकल भाषा में लंग हाइपरइंफ्लेशन कहते हैं और इससे दिल के काम करने की क्षमता भी जुड़ी होती है I”
डॉ पाठक ने आगे बताया कि – “क्रोनिक ओब्सट्रेक्टिव पुल्मनेरी डिजीज (सीओपीडी) के कई रोगियों को दिल से जुड़ी बीमारियां हो रही हैं जिससे मृत्युदर में बढ़ोतरी हो रही है I एक नए अध्ययन के माध्यम से इस बीमारी के बेहतर इलाज की उम्मीद बढ़ी है, जिसका ईलाज विश्वस्तरीय ब्रेथ ईज़ी अस्पताल में उपलब्ध हैं I आमतौर पर सीओपीडी को फेफड़ों से जुड़ी लंबे समय तक चलने वाली बीमारी माना जाता है, जिससे सांस लेने में तकलीफ और शरीर में हवा का प्रवाह प्रभावित होता है, इससे कोर्डियोवास्कुलर डिजीज (सीवीडी) जैसी बीमारियों होने का रिस्क बढ़ जाता है, ऐसे में रोगी के विकलांग होने के साथ मृत्यु का खतरा भी बढ़ जाता है I
डॉ. पाठक बताते हैं कि – “आज वायु प्रदूषण दुनिया की एक बड़ी समस्या में से एक है। कई बीमारियों का कारण वायु प्रदूषण है। दमा, सीओपीडी, एलर्जी और फेफड़े की अन्य बीमारियों का मुख्य कारण वायु प्रदूषण ही हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन (वल्र्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन) के अनुसार विश्व के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 शहर भारत के हैं। इनमें अपना बनारस – कानपुर और गाज़ियाबाद के बाद तीसरे सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों की लिस्ट में है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ 20 लाख मौतें पर्यावरण प्रदूषण के कारण हुई हैं। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में हर 10 व्यक्तियों में से 9 व्यक्ति प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं। लगभग 42 लाख लोग वायु प्रदूषण की वजह से मौत के शिकार हुए और 38 लाख लोगों की मौत कुकिंग और प्रदूषित ईंधन के कारण हुई। भारत में वायु प्रदूषण के कारण हर साल लगभग 12 लाख मौतें होती हैं। यदि व्यापक रोकथाम न हुई तो यह आंकड़ा सन् 2050 तक 36 लाख मौतों को पार कर जाएगा।“
डॉ. एस.के पाठक द्वारा किये गए एक शोध में ये पता चला कि, वाराणसी की खुली हवा में 2-3 घंटो चलने पर फेफड़ो की कार्य क्षमता में 20-25 प्रतिशत तक का गिरावटहो जाता हैं, जिसको वापस सही होने में काफी दिन लग जाते हैं I डॉ. पाठक ने यह भी बताया कि इसका मुख्य वजह पिछले कुछ दिनों/ महीनों की भयावक वायु प्रदुषण, जहरीले स्मॉग व स्मोकिंग हैं, जिसमे दिवाली में जलाए गए पटाखें भी सम्मिलित हैं I
दिवाली के पहले व बाद के लिए हुए पी.एम् 2.5 व पी.एम् 10 का स्तर निम्नलिखित हैं,
Normal Range 20/10/2022 30/11/2021 10/11/2021 15/11/2022
AQI 311 196 170 160
PM 2.5 0 – 30 139 90 81 73
PM 10 0 – 50 202 143 94 105
डॉ. पाठक ने आगे बताया कि –“ब्रेथ ईजी द्वारा हालिया शोध के अनुसार थोड़े समय के लिए कार्बन मोनोऑक्साईड, नाईटोजन डायऑक्साइड और सल्फर डाईऑक्साइड जैसे प्रदूषण कारकों के संपर्क में रहने से दिल के दौरे का खतरा भी बढ़ जाता है।
डॉ पाठक ने आगे बताया कि – “सही समय पर यदि श्वास के इन्फेक्शन को रोका नही जाता तो फेफड़ो की निष्क्रिय (कोलेप्स) होने का ख़तरा बढ़ जाता हैं जो मरीजो के लिए प्राण घातक बन जाता हैं I शुरूआती चेस्ट इन्फेक्शन के लक्षण में कफ़-बलगम आना, बुख़ार, सीने में दर्द, साँस लेने में तकलीफ आदि हैं, यदि उचित समय पर उचित मात्र में एंटीबायोटिक (एंटी माइक्रोबायल) का प्रयोग नही हो पाता हैं तो मरीज के जान का खतरा बढ़ जाता हैं I डॉ पाठक ने मरीजो को हिदायत दी कि स्वयं से मरीज दवाओ का प्रयोग न करे, चिकित्सको के द्वारा जाँच एवं इलाज के बाद ही दवा का प्रयोग करे I सामान्य परिस्थितियों में साँस फूलना स्वस्थ्य मरीजो के लिए ठीक नही हैं, यदि साँस सम्बंधित कोई भी समस्या हैं तो इसका चेक-अप कराकर इलाज कराना जरुरी हो जाता हैं, क्योकिं साँस की समस्या फेफड़ो, ह्रदय व खून की कई अन्य बीमारी के कारण हो सकता हैं I”
डॉ. पाठक आगे बताते हैं कि – “वायु प्रदूषण से बचने के लिए मास्क पहनना चाहिए। इंडस्ट्रियल एरिया में जाना हो तो एंटी पाल्यूशन मास्क और आंखों पर चश्मा लगाकर जाएं। गर्भवती महिलाओं और बच्चों को वायु प्रदूषण से बचाने के लिए घर में एयर फ़िल्टर मशीन लगवानी चाहिए। इससे सांस की बीमारियां कम होती हैं। घर से बाहर तभी बाहर घूमने टहलने निकलें जब पर्यावरण में प्रदूषण का स्तर कम हो। प्रयोग में आने वाली पेट्रोल डीज़ल से चलने वाली गड़ियों का नियमित प्रदूषण कार्ट बनवाएँ। बाहर से घर वापस आने के बाद मुँह, हाथ और पैर साफ़ पानी से धोने चाहिए। घर के आस पास कूड़े कचरे को न जलाएं। प्रदूषण की समस्या से बचने के लिए ज़रूरी है कि ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ पौधे लगाएँ, क्योंकि पेड़ कार्बन डाइ ऑक्साइड सोखते हैं, और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इसके अलावा अपने चिकित्सक द्वारा डी गयी दवा का नियमित इस्तमाल करे I
डॉ. पाठक ने बताया कि –“ब्रेथ ईजी जन जागरूकता के लिए समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाता रहता हैं, जिसमे नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर, क्लिनिक, जन जागरूकता रैली, मोबाइल कैंप प्रमुख हैं I” इसी कड़ी में सी.ओ.पी.डी दिवस के उपलक्ष में 17 नवम्बर प्रात: 7 बजे से एक जन जागरूकता रैली का आयोजन भी किया गया हैं, रैली की शुरुआत डॉ एस. के पाठक (वरिष्ठ श्वांस एवं फेफड़ा रोग विशेषज्ञ) व श्री मति सुनीता पाठक (निदेशिका, ब्रेथ ईजी) संयुक्त रूप से हरी झंडी दिखाकर करेंगे, जो कि ब्रेथ ईजी अस्सी, वाराणसी से शुरू होवेगी तथा लंका- दुर्गाकुंड-सोनारपुरा मार्ग से होते हुए अस्सी घाट पे समाप्त होगी I इस रैली में शहर के युवा एवं सम्मनित नागरिक भी बढ़ चढ़ कर भाग लेंगे I इसके तदुपरांत प्रात: १० बजे से ब्रेथ ईजी मोबाइल कैंप का भी आयोजन किया गया हैं, जिसमे ब्रेथ ईजी वैन वाराणसी के प्रमुख चौराहों पर जाकर वाराणसी के जनता की फेफड़ो की जाँच – कंप्यूटर मशीन द्वारा करेगी I