सोनभद्र।महाराष्ट्र में विचारधारा से भटके शिवसेना के बागी विधायक एकनाथ शिंदे एक उदाहरण हैं । बाला साहब ठाकरे की शिवसेना प्रखर हिन्दुत्त्व के लिए जानी जाती थी । अब सरकार की कौन कहे पार्टी को बचाने की चिंता उद्धव ठाकरे को करनी चाहिए । यह बातें शुक्रवार को शिक्षक एवं पत्रकार भोलानाथ मिश्र ने इस संवाददाता से बातचीत करते हुए कही। भोलानाथ मिश्र का मानना है कि शिवसेना अध्यक्ष और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव को विरासत में यह पद मिला है। ढाई साल पहले राज्य में महाविकास अघाड़ी सरकार बनाकर शिवसेना ने अपनी मूल विचारधारा से समझौता कर लिया । यही वजह है कि शिवसेना के विधायक आज
विचारधारा को सहेजने के लिए एक नाथ शिंदे के नेतृत्व में चुनौती पेश कर रहे हैं ।
श्री मिश्र आगे कहते हैं कि कांग्रेस व एनसीपी से गठजोड़ कर उद्धव अपनी पहचान के विपरीत सरकार चलाने का खामियाजा भुगत रहे हैं । वे इसलिए मुख्यमंत्री बने क्योंकि वे बाला साहब ठाकरे के पुत्र थे। अब इस योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है । भोलानाथ जी की माने तो महाराष्ट्र के राजनीतिक
उठापटक से अब कांग्रेस को सबक लेने की जरूरत है । विचारधारा की तिलांजलि और पार्टी के कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भारी पड़ सकती है। इसके पीछे उनका तर्क है कि कांग्रेस में अब न तो नेहरू ,इंदिरा , राजीव नरसिम्हा राव और डॉ मनमोहनसिंह जैसे नेता है न ही पार्टी के अनुभवी व कद्दावर नेताओं को कोई महत्वपूर्ण दायित्व ही मिल रहा है । राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर कांग्रेस का असमंजस और विरासत की परंपरा आड़े आ रही है । श्री मिश्र का मानना है कि यही संकठ समाजवादी पार्टी का है । मुलायम सिंह जी की राजनीतिक विरासत को उनके पुत्र अखिलेश संभाल रहे हैं । उनकी सबसे बड़ी योग्यता यह है कि वे मुलायम सिंह के पुत्र हैं । बहुजन समाज पार्टी की बहन मायावती अपने भतीजे के मोह में है तो तृणमूल सुप्रीमों ममता बनर्जी इससे अलग नही हैं । लालू प्रसाद यादव की पार्टी हो या अन्य क्षेत्रीय दल सभी विरासत के आधार पर संचालित हो रहे है। फारुख अब्दुल्ला की
नेशनल कांफ्रेंस , महबूबा मुफ्ती की पीडीपी , यूपी का अपनादल एस, ओमप्रकाश राजभर की पार्टी आदि परिवार के राजनीतिक दल माने जाते हैं ।