ग़ज़ल संग्रह ‘तन्हाइयों की महफ़िल’ का हुआ विमोचन।
सभी रचनाकार लोक से जुड़े रहते हैं और लोक की ही बात रचनाओं में आती है: भोलानाथ कुशवाहा
मिर्जापुर । आशा दिनकर 'आस' द्वारा रचित ग़ज़ल संग्रह तन्हाइयों की महफ़िल का शनिवार को आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में विमोचन हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सोनभद्र के वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी रहे, अध्यक्षता मिर्ज़ापुर के वरिष्ठ साहित्यकार व पत्रकार भोलानाथ कुशवाहा ने किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में गुवाहाटी से कवयित्री डॉ दीपिका सुतोदिया, आगरा से गीतकार अंगद धारिया, गाज़ियाबाद से वरिष्ठ कवि व लेखक डॉ मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव उपस्थित रहे। ग़ज़ल संग्रह की लेखिका दिल्ली की आशा दिनकर 'आस' कार्यक्रम में शामिल रहीं, संचालन आनंद अमित ने किया। "तन्हाइयों की महफ़िल" ग़ज़ल संग्रह के विमोचन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि आशा दिनकर जानी मानी कवयित्री हैं। जिन्होंने जीवन के विभिन्न प्रसंगों को अपनी ग़ज़लों का विषय बनाया है। उन्होंने अपने लेखन से साहित्य को समृद्ध किया है। वही अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार भोलानाथ कुशवाहा ने कहा की सभी रचनाकार लोक से जुड़े रहते हैं और लोक की ही बात रचनाओं में आती है, चाहे वह कोई विधा हो। आगे कहां आशा दिनकर की गज़लों में भी लोक उभरकर सामने आता है।
तन्हाइयों की महफ़िल की रचयिता आशा दिनकर ‘आस’ ने कहा कि मेरी रचनाओं में आम जनमानस की पीड़ा और संघर्ष है। विशिष्ट अतिथि डॉ दीपिका सुतोदिया ने कहा कि आशा दिनकर की रचनाएँ अक्सर पढ़ते रहे हैं। यह एक संवेदनशील रचनाकार हैं। गीतकार अंगद धारिया ने कहा कि आशा दिनकर निरंतर अपनी रचनाओं के माध्यम से आज के जटिल समय पर वार करती हैं। डॉ मिथिलेश श्रीवास्तव ने आशा दिनकर को उनके ग़ज़ल संग्रह के लिए बधाई देते हुए कहा कि आशा दिनकर की ग़ज़लों ने गरीबों की आवाज़ उठाई है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए आनंद अमित ने बताया कि यह संग्रह हिंदी श्री पब्लिकेशन से प्रकाशित इनका तीसरा संग्रह है। इसके बाद सभी रचनाकारों ने अपनी रचनाएँ सुनाईं। मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी ने सुनाया – हाय ये प्रचंड धूप, अधरों में प्यास लिए दौड़ रहे कूप-कूप। भोलानाथ कुशवाहा ने कविता पढ़ा- जड़ का पानी सूख न जाये आसमान हो रहा है नीला। अब डाली का पत्ता पीला, बदलेगा मौसम जहरीला। डॉ दीपिका सुतोदिया ने गंगा पर सुनाया- है गंगा उपहार माँ, तुझसे ही संसार माँ। आशा दिनकर ने सुनाया- दिल कितने पास थे, एक दूजे के अहसास थे। गुफ्तगू की शरगोशियों के वो बहाने और थे। अंगद धारिया ने पढ़ा- तेरी सीरत ने मुझे पागल सा बना डाला है। तेरे एहसास ने चंदन सा बना डाला है। डॉ मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव ने पढ़ा- आंकड़ों पर चल रहा खंजर। रुक नहीं रहा मौत का मंजर। आनंद अमित ने सुनाया- इस सुनहली चांदनी का क्या करूँगा मैं, चाँद मुझको धूप देकर तुम चले जाना।
सुलेखा मिश्रा, राजेश राज, लव तिवारी, कुश तिवारी, केशरी प्रजापति, आनंद केसरी, राधा गोयल आदि ने आशा दिनकर को तन्हाइयों की महफ़िल पुस्तक के लिए बधाइयाँ दीं। अंत में सावित्री कुमारी ने सभी का धन्यवाद प्रकट किया।