विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर विशेष:
सोनभद्र । अगर हम समाधान का हिस्सा नहीं हैं , तो हम ही समस्या हैं । इस लिए पत्रकार अपनी कलम के दम पर अपने आपको शक्तिशाली बनाये और ज़ुल्म का शिकार
होने से तुरंत अपने आप को रोकें । यह बातें मंगलवार को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी ने कहीं। उनका मानना है कि आज प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरी तत्वों के हमले से बचाव और प्रेस की सेवा करते हुए दिवंगत हुए पत्रकारों को श्रद्धांजलि देने का दिन है ।
चढ गए पुण्य वेदी पर ,
लिए बिना गर्दन की मोल ,
कलम आज उनकी जय बोल
नमन है ! सोनभद्र के स्मृति शेष उन कलमकारों को जिनकी कलम की नोंक से हाकिम- हुक्काम की बंद पलकें उघड़ी थी ..।
शब्द-शिल्पी निरंजन लाल जालान, महाबीर प्रसाद जालान, सत्यनारायण जालान, डॉ रघुबीर चंद जिंदल, हंस नाथ पांडेय ‘हंस’ श्याम नारायण लाल श्रीवास्तव, कृपा शंकर द्विवेदी,दुर्गा प्रसाद अग्रहरि , अमरनाथ चौबे , डॉ पशुपति
नाथ द्विवेदी , हरि शंकर सिंह , कामरेड एमए खां
विश्वनाथ केडिया , हीरा लाल गुप्त , सारनाथ सिंह, आरके शाही, ब्रह्मचारी दुबे, ब्रज भूषण मिश्र ‘ग्रामवासी’
यह सब अपने जमाने के ऐसे कलमकार थे जिन पर यह बात सटीक बैठती है-
सेठ का कुत्ता अगर बीमार है, पत्रकारों की कलम तैयार है।
परंतु आज की पत्रकारिता और पत्रकारों की कलम देश काल और समाज हित में कम स्वहित में ज्यादा ही तेज चलती है , जो निष्पक्ष एवं निर्भीक पत्रकारिता के लिए कलंक साबित होती नजर आ रही है।