धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से श्रीगुरु दत्तात्रेय जन्म दिवस कथा एवं कामना सिद्धि हेतु विविध साधना विशेष…..

मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को दत्तात्रेय जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस वर्ष आज 29 दिसम्बर मंगलवार के दिन श्री दत्त महाप्रभु का जन्मोत्सव सम्पूर्ण भारत वर्ष में साधको द्वारा भक्ति भाव से मनाया जाएगा। शास्त्रानुसार इस तिथि को प्रदोषकाल में भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था।
भगवान दत्तात्रेय गुरु वंश के प्रथम गुरु , साधना करने वाले और योगी थे। त्रिदेवो की शक्ति इनमे समाहित थी। शैव मत वाले इन्हे शिवजी का अवतार तो वैष्णव मत वाले इन्हे विष्णु का अवतार बताते है।
अलग अलग धर्म ग्रंथो में इनकी अलग अलग पहचान बताई गयी है इन्हे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सम्मिलित अवतार के रूप में बताया गया हैं। कही इन्हे ब्रह्माजी के मानस पुत्र ऋषि अत्रि और अनुसूइया का पुत्र बताया गया हैं इनके भाई चन्द्र देवता और ऋषि दुर्वासा है कही यह भी भी उल्लेख मिलता है की यह विष्णु के अंश अवतार थे इन्होने जीवन में गुरु की महत्ता को बताया है गुरु बिना न ज्ञान मिल सकता है ना ही भगवान हजारो सालो तक घोर तपस्या करके इन्होने परम ज्ञान की प्राप्ति की और वही ज्ञान अपने शिष्यों में बाँटकर इसी परम्परा को आगे बढाया।
गुरु दत्तात्रेय ने हर छोटी बड़ी चीज से ज्ञान प्राप्त किया। इन्होने अपने जीवन में मुख्यत 24 गुरु बनाये जो कीट पतंग जानवर इंसान आदि थे।
इनके 24 गुरु कौन-कौन हैं और व उनसे हम क्या सीख सकते हैं…
पृथ्वी सहनशीलता और परोपकार की भावना पृथ्वी से सीख सकते हैं। पृथ्वी पर लोग कई प्रकार के आघात करते हैं, कई प्रकार के उत्पात होते हैं, कई प्रकार खनन कार्य होते हैं, लेकिन पृथ्वी हर आघात को परोपकार का भावना से सहन करती है।
पिंगला वेश्या पिंगला नाम की वेश्या से दत्तात्रेय ने सबक लिया कि केवल पैसों के लिए जीना नहीं चाहिए। पिंगला सिर्फ पैसा पाने के लिए किसी भी पुरुष की ओर इसी नजर से देखती थी कि वह धनी है और उससे धन प्राप्त होगा। धन की कामना में वह सो नहीं पाती थी। जब एक दिन पिंगला वेश्या के मन में वैराग्य जागा तब उसे समझ आया कि पैसों में नहीं बल्कि परमात्मा के ध्यान में ही असली सुख है, तब उसे सुख की नींद आई।
कबूतर कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे बच्चों को देखकर खुद भी जाल में जा फंसता है। इनसे यह सबक लिया जा सकता है कि किसी से बहुत ज्यादा मोह दुख की वजह होता है।
सूर्य सूर्य से दत्तात्रेय ने सीखा कि जिस तरह एक ही होने पर भी सूर्य अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग दिखाई देता है। आत्मा भी एक ही है, लेकिन कई रूपों में दिखाई देती है।
वायु जिस प्रकार अच्छी या बुरी जगह पर जाने के बाद भी वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है। उसी तरह अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी हमें अपनी अच्छाइयों को छोड़ना नहीं चाहिए।
हिरण हिरण उछल-कूद, मौज-मस्ती में इतना खो जाता है कि उसे अपने आसपास शेर या अन्य किसी हिसंक जानवर के होने का आभास ही नहीं होता है और वह मारा जाता है। इससे यह सीखा जा सकता है कि हमें कभी भी मौज-मस्ती में इतना लापरवाह नहीं होना चाहिए।
समुद्र जीवन के उतार-चढ़ाव में भी खुश और गतिशील रहना चाहिए।
पतंगा जिस तरह पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर जल जाता है। उसी प्रकार रूप-रंग के आकर्षण और झूठे मोह में उलझना नहीं चाहिए।
हाथी हाथी हथिनी के संपर्क में आते ही उसके प्रति आसक्त हो जाता है। हाथी से सीखा जा सकता है कि संन्यासी और तपस्वी पुरुष को स्त्री से बहुत दूर रहना चाहिए।
आकाश दत्तात्रेय ने आकाश से सीखा कि हर देश, काल, परिस्थिति में लगाव से दूर रहना चाहिए।
जल दत्तात्रेय ने जल से सीखा कि हमें सदैव पवित्र रहना चाहिए।
छत्ते से शहद निकालने वाला मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती है और एक दिन छत्ते से शहद निकालने वाला सारा शहद ले जाता है। इस बात से ये सीखा जा सकता है कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र करके नहीं रखना चाहिए।
मछली हमें स्वाद का लोभी नहीं होना चाहिए। मछली किसी कांटे में फंसे मांस के टुकड़े को खाने के लिए चली जाती है और अंत में प्राण गंवा देती है। हमें स्वाद को इतना अधिक महत्व नहीं देना चाहिए, ऐसा ही भोजन करें जो सेहत के लिए अच्छा हो।
कुरर पक्षी कुरर पक्षी से सीखना चाहिए कि चीजों को पास में रखने की सोच छोड़ देना चाहिए। कुरर पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है, लेकिन उसे खाता नहीं है। जब दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को देखते हैं तो वे कुरर से उसे छिन लेते हैं। मांस का टुकड़ा छोड़ने के बाद ही कुरर को शांति मिलती है।
बालक छोटे बच्चे से सीखा कि हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए।
आग आग से दत्तात्रेय ने सीखा कि कैसे भी हालात हों, हमें उन हालातों में ढल जाना चाहिए। आग अलग-अलग लकड़ियों के बीच रहने के बाद भी एक जैसी ही नजर आती है। हमें भी हर हालात में एक जैसे ही रहना चाहिए।
चंद्रमा आत्मा लाभ-हानि से परे है। वैसे ही जैसे घटने-बढ़ने से भी चंद्रमा की चमक और शीतलता बदलती नहीं है, हमेशा एक-जैसे रहती है। आत्मा भी किसी भी प्रकार के लाभ-हानि से बदलती नहीं है।
कुमारी कन्या कुमारी कन्या से सीखना चाहिए कि अकेले रहकर भी काम करते रहना चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक कुमारी कन्या देखी जो धान कूट रही थी। धान कूटते समय उस कन्या की चूड़ियां आवाज कर रही थी। बाहर मेहमान बैठे थे, जिन्हें चूड़ियों की आवाज से परेशानी हो रही थी। तब उस कन्या ने चूड़ियों की आवाज बंद करने के लिए चूड़ियां ही तोड़ दीं। दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी ही रहने दी। इसके बाद उस कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया। हमें भी दूसरों को परेशान किए बिना और शांत रहकर काम करते रहना चाहिए।
शरकृत या तीर बनाने वाला अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक तीर बनाने वाला देखा जो तीर बनाने में इतना मग्न था कि उसके पास से राजा की सवारी निकल गई, लेकिन उसका ध्यान भंग नहीं हुआ।
सांप दत्तात्रेय ने सांप से सीखा कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए। साथ ही, कभी भी एक स्थान पर रुककर नहीं रहना चाहिए। जगह-जगह से ज्ञान एकत्र करना चाहिए और ज्ञान बांटते रहना चाहिए।
मकड़ी मकड़ी से दत्तात्रेय ने सीखा कि भगवान माया जाल रचते हैं और उसे मिटा देते हैं। जिस प्रकार मकड़ी स्वयं जाल बनाती है, उसमें विचरण करती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है, ठीक इसी प्रकार भगवान भी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं।
भृंगी कीड़ा इस कीड़े से दत्तात्रेय ने सीखा कि अच्छी हो या बुरी, जहां जैसी सोच में मन लगाएंगे, मन वैसा ही हो जाता है।
भौंरा या मधुमक्खी भौरें से दत्तात्रेय ने सीखा कि जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। जिस प्रकार भौरें और मधुमक्खी अलग-अलग फूलों से पराग ले लेती है।
अजगर अजगर से सीखा कि हमें जीवन में संतोषी बनना चाहिए। जो मिल जाए, उसे ही खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना चाहिए।
श्री गुरुदत्तात्रेय की कथा
हिंदू धर्म में भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का एकरूप माना गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार श्री दत्तात्रेय भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। वह आजन्म ब्रह्मचारी और अवधूत रहे इसलिए वह सर्वव्यापी कहलाए। यही कारण है कि तीनों ईश्वरीय शक्तियों से समाहित भगवान दत्तात्रेय की आराधना बहुत ही सफल, सुखदायी और शीघ्र फल देने वाली मानी गई है। मन, कर्म और वाणी से की गई उनकी उपासना भक्त को हर कठिनाई से मुक्ति दिलाती है।
कहा जाता है कि भगवान भोले का साक्षात् रूप दत्तात्रेय में मिलता है। जब वैदिक कर्मों का, धर्म का तथा वर्ण व्यवस्था का लोप हुआ, तब भगवान दत्तात्रेय ने सबका पुनरुद्धार किया था। हैहयराज अर्जुन ने अपनी सेवाओं से उन्हें प्रसन्न करके चार वर प्राप्त किए थे।
पहला बलवान, सत्यवादी, मनस्वी, आदोषदर्शी तथा सह भुजाओं वाला बनने का, दूसरा जरायुज तथा अंडज जीवों के साथ-साथ समस्त चराचर जगत का शासन करने के सामर्थ्य का, तीसरा देवता, ऋषियों, ब्राह्मणों आदि का यजन करने तथा शत्रुओं का संहार कर पाने का और चौथा इहलोक, स्वर्गलोक और परलोक विख्यात अनुपम पुरुष के हाथों मारे जाने का।
एक बार माता लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती को अपने पतिव्रत्य पर अत्यंत गर्व हो गया। भगवान ने इनका अहंकार नष्ट करने के लिए लीला रची। उसके अनुसार एक दिन नारदजी घूमते-घूमते देवलोक पहुंचे और तीनों देवियों को बारी-बारी जाकर कहा कि ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूइया के सामने आपका सतीत्व कुछ भी नहीं।
तीनों देवियों ने यह बात अपने स्वामियों को बताई और उनसे कहा कि वे अनुसूइया के पतिव्रत्य की परीक्षा लें। तब भगवान शंकर, विष्णु व ब्रह्मा साधु वेश बनाकर अत्रि मुनि के आश्रम आए। महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे। तीनों ने देवी अनुसूइया से भिक्षा मांगी और यह भी कहा कि आपको निर्वस्त्र होकर हमें भिक्षा देनी होगी।
अनुसूइया पहले तो यह सुनकर चौंक गईं, लेकिन फिर साधुओं का अपमान न हो इस डर से उन्होंने अपने पति का स्मरण किया और कहा कि यदि मेरा पतिव्रत्य धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु छ:-छ: मास के शिशु हो जाएं।
ऐसा बोलते ही त्रिदेव शिशु होकर रोने लगे। तब अनुसूइया ने माता बनकर उन्हें गोद में लेकर स्तनपान कराया और पालने में झूलाने लगीं। जब तीनों देव अपने स्थान पर नहीं लौटे तो देवियां व्याकुल हो गईं। तब नारद ने वहां आकर सारी बात बताई। तीनों देवियां अनुसूइया के पास आईं और क्षमा मांगी। तब देवी अनुसूइया ने त्रिदेव को अपने पूर्व रूप में कर दिया।
प्रसन्न होकर त्रिदेव ने उन्हें वरदान दिया कि हम तीनों अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लेंगे। तब ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। कार्तवीर्य अर्जुन (कृतवीर्य का ज्येष्ठ पुत्र) के द्वारा श्रीदत्तात्रेय ने लाखों वर्षों तक लोक कल्याण करवाया था। कृतवीर्य हैहयराज की मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र अर्जुन का राज्याभिषेक होने पर गर्ग मुनि ने उनसे कहा था कि तुम्हें श्रीदत्तात्रेय का आश्रय लेना चाहिए, क्योंकि उनके रूप में विष्णु ने अवतार लिया है।
ऐसी मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय गंगा स्नान के लिए आते हैं इसलिए गंगा मैया के तट पर दत्त पादुका की पूजा की जाती है। भगवान दत्तात्रेय की पूजा महाराष्ट्र में धूमधाम से की जाती है। उनको गुरु के रूप में पूजा जाता है।
गुजरात के नर्मदा में भगवान दत्तात्रेय का मंदिर है जहां लगातार 7 हफ्ते तक गुड़, मूंगफली का प्रसाद अर्पित करने से बेरोजगार लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।
दत्तात्रेय मंत्र-साधना
भगवान दत्तात्रेय की उपासन के लिए कुछ विशेष मंत्र और स्तोत्र दिए गए हैं। उनके गायत्री और तांत्रोक्त मुख्य हैं, जिनके नियमित जाप पूरे विधि-विधान से करने के तरीके बताए गए हैं। उन मंत्रों को ध्यान लगाकर प्रतिदिन स्फटिक की माला से जाप करना चाहिए, जिससे मानसिक विकास होता है, बौद्धिकता आती है, शत्रु भय दूर होता है, संघर्ष करने का बल मिलता है, समस्याएं दूर कर मनोवांछित लक्ष्य तक पहुंचने की शक्ति व क्षमता हासिल होती है। यह कहें यह अगर संकटनाशक है तो कामनापूर्तिकारक भी।
मंत्र हैंः-
ऊँ दिगंबराय विद्य्हे योगीश्रारय् धीमही तन्नो दतः प्रचोदयात!!
ऊँ द्रां दत्तात्रेयाय नमः!!
इनके अलावा ध्यान लगाने के इस का जाप किया जाना चाहिए। जटाधाराम पाण्डुरंग शूलहस्तं कृपानिधिम, सर्व रोग हरं देव, दत्तात्रेयमहं भज!! दत्तात्रेय उपासना-साधना विधिः दत्तत्रेय की साधना सरल जरूर है, लेकिन इसके लिए एकाग्रता और सस्वर मंत्र जाप आवश्यक है। उन्हें विनियोग विधि से आवाहन किया जाता है। इसके लिए उनकी प्रतीमा, मूर्ति या फिर यंत्र को एक लाल कपड़े स्थापित कर असान के निकट एक बर्तन में पानी का बर्तन रखा जाता है। बाएं हाथ में फूल और चावल के कुछ दाने लेकर विनियोग की प्रक्रिया इस मंत्र के साथ शुरू की जाती है। वह मंत्र हैः-
ऊँ अस्य श्री दत्तात्रेय स्तोत्र मंत्रस्य भगवान नारद ऋषिः अनुष्टुप छंदः, श्री दत्त परमात्मा देवताः, श्री दत्त प्रीत्यर्थे जपे विनोयोगः!
इसके जाप के साथ दत्तात्रेय की स्थापित की गई प्रतिमा या मूर्ति पर फूल और चावल सिर झुकाकर अर्पित कर दिया जाता है। उसके बाद दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए जाप के लिए स्तुति की जाती है और पूजा समाप्ति के बाद प्रभावकारी निम्नलिखित स्तोत्र का पाठ किया जाता हैः-
दत्तात्रेय स्तोत्रः
।। श्री दत्तात्रेय स्तोत्र ।।
ध्यान मंत्र
जटाधरं पाण्डुराङ्गं शूलहस्तं कृपानिधिम्।
सर्वरोगहरं देवं दत्तात्रेयमहं भजे॥
विनियोग मंत्रस्य श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रमन्त्रस्य भगवान् नारदऋषिः।
अनुष्टुप् छन्दः। श्रीदत्तपरमात्मा देवता।
श्रीदत्तप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः॥
जगदुत्पत्तिकर्त्रे च स्थितिसंहार हेतवे।
भवपाशविमुक्ताय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते।।
जराजन्मविनाशाय देहशुद्धिकराय च।
दिगम्बरदयामूर्ते दत्तात्रेय नमोऽस्तुते।।
कर्पूरकान्तिदेहाय ब्रह्ममूर्तिधराय च।
वेदशास्त्रपरिज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
र्हस्वदीर्घकृशस्थूल-नामगोत्र-विवर्जित।
पञ्चभूतैकदीप्ताय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
यज्ञभोक्ते च यज्ञाय यज्ञरूपधराय च।
यज्ञप्रियाय सिद्धाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
आदौ ब्रह्मा मध्य विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः।
मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
भोगालयाय भोगाय योगयोग्याय धारिणे।
जितेन्द्रियजितज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
दिगम्बराय दिव्याय दिव्यरूपध्राय च।
सदोदितपरब्रह्म दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
जम्बुद्वीपमहाक्षेत्रमातापुरनिवासिने।
जयमानसतां देव दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
भिक्षाटनं गृहे ग्रामे पात्रं हेममयं करे।
नानास्वादमयी भिक्षा दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले।
प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
अवधूतसदानन्दपरब्रह्मस्वरूपिणे।
विदेहदेहरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
सत्यंरूपसदाचारसत्यधर्मपरायण।
सत्याश्रयपरोक्षाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
शूलहस्तगदापाणे वनमालासुकन्धर।
यज्ञसूत्रधरब्रह्मन् दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
क्षराक्षरस्वरूपाय परात्परतराय च।
दत्तमुक्तिपरस्तोत्र दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
दत्त विद्याढ्यलक्ष्मीश दत्त स्वात्मस्वरूपिणे।
गुणनिर्गुणरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
शत्रुनाशकरं स्तोत्रं ज्ञानविज्ञानदायकम्।
सर्वपापं शमं याति दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥
इदं स्तोत्रं महद्दिव्यं दत्तप्रत्यक्षकारकम्।
दत्तात्रेयप्रसादाच्च नारदेन प्रकीर्तितम्॥
॥ इति श्रीनारदपुराणे नारदविरचितं दत्तात्रेयस्तोत्रं सुसम्पूर्णम्॥
श्री गुरु दत्तात्रेय महाराज की जयII
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