जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से चर्म रोग का कारक बुधग्रह

धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से चर्म रोग का कारक बुधग्रह



भारतीय ज्योतिष में शरीर की चमड़ी का कारक बुध को माना गया है। कुंडली में बुध जितनी उत्तम अवस्था में होगा, जातक की चमड़ी उतनी ही चमकदार एवं स्वस्थ होगी। कुंडली में बुध पाप ग्रह राहु, केतु या शनि से दृष्टि में या युति के साथ होगा तो चर्म रोग होने के पूरे आसार बनेंगे। रोग की तीव्रता ग्रह की प्रबलता पर निर्भर करती है।

एक ग्रह दूसरे ग्रह को कितनी डिग्री से पूर्ण दीप्तांशों में देखता है या नहीं। रोग सामान्य भी हो सकता है और गंभीर भी। ग्रह किस नक्षत्र में कितना प्रभावकारी है यह भी रोग की भीषणता बताता है क्योंकि एक रोग सामान्य सा उभरकर आता है और ठीक हो जाता है। दूसरा रोग लंबा समय लेता है, साथ ही जातक के जीवन में चल रही महादशा पर भी निर्भर करता है।

बुध की समस्या मे त्वचा पर झुर्रियां पड़ जाती हैं, कभी कभी त्वचा रूखी और खराब सी हो जाती है, त्वचा पर दाने आ जाते हैं और छोटे छोटे धब्बे से आ जाते हैं, आम तौर से उम्र के 08 से 20 वर्ष तक और 60 वर्ष के पश्चात बुध संबंधित समस्या ज्यादा देखने मे आती है।

मंगल रक्त का कारक है, यदि मंगल किसी भी तरह से पाप ग्रहों से ग्रस्त हो, शत्रु राशिस्थ हो, नीच हो, वक्री हो तो वह रक्त संबंधी रोग पैदा करेगा। मुख्य बात यह है कि यदि मंगल बुध का योग होगा तो किसी भी प्रकार की समस्या अवश्य खड़ी होगी। इसी प्रकार मंगल शनि का योग खुजली पैदा करता है, खून खराब करता है। लग्नेश से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध होने पर वह अवश्य ही चर्म-रोग का कारण बनता है। यदि यह योग कुंडली में हो किन्तु दशा अच्छी चल रही हो तो हो सकता है कि वह रोग ना हो जब तक उस ग्रह की दशा अन्तर्दशा पुनः ना आये।
यदि शनि पूर्ण बली हो और मंगल के साथ तृतीय स्थान पर हो तो जातक को खुजली का रोग होता है। यदि मंगल और केतु छठे या बारहवें स्थान में हो तो चर्म रोग होता है। यदि मंगल और शनि छठे या बारहवें भाव में हों तो व्रण (फोड़ा) होता है। यदि मंगल षष्ठेश के साथ हो तो चर्म रोग होता है।

यदि बुध और राहु षष्ठेश और लग्नेश के साथ हो तो चर्म-रोग होता है (एक्जीमा जैसा)। यदि षष्ठेश पाप ग्रह होकर लग्न, अष्टम या दशम स्थान में बैठा हो तो चर्म-रोग होता है। यदि षष्ठेश शत्रुगृही, नीच, वक्री अथवा अस्त हो तो चर्म -रोग होता है। षष्टम भाव में कोई भी ग्रह नीच, शत्रुक्षेत्री, वेक्री अथवा अस्त हो तो भी चर्म रोग होता है। यदि षष्ठेश पाप ग्रह के साथ हो तथा उस पर लग्नस्थ, अष्टमस्थ दशमस्थ पाप ग्रह की दृष्टि हो तो चर्म रोग होता है। यदि शनि अष्टमस्थ और मंगल सप्त्मस्थ हो तो जातक को पंद्रह से तीस वर्ष की आयु में चेहरे पर फुंसी होती है।
यदि लग्नेश मंगल के साथ लग्नगत हो तो पत्थर अथवा किसी शस्त्र से सिर में व्रण होते हैं। यदि लग्नेश मंगल के साथ लग्नगत हो और उसके साथ पाप ग्रह हो अथवा पाप ग्रह की दृष्टि पड़ती हो तो पत्थर अथवा किसी शस्त्र के द्वारा सिर में व्रण (घाव) होता है।

इनके अतिरिक्त अशुभबुध के कारण निम्न समस्याएं भी उत्पन्न होती है।

तुतलाहट।
सूंघने की शक्ति क्षीण हो जाती है।
समय पूर्व ही दांतों का खराब होना।
मित्र से संबंधों का बिगड़ना।
अशुभ हो तो बहन, बुआ और मौसी पर विपत्ति आना।
नौकरी या व्यापार में नुकसान होना।
संभोग की शक्ति क्षीण होना।
व्यर्थ की बदनामी होती है।
हमेशा घूमते रहना, ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में।
कोने का अकेला मकान जिसके आसपास किसी का मकान न हो।

बुध के कारण त्वचा की समस्या के उपाय

रोज सुबह सूर्य को जल चढ़ाएं. ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जियों और सलाद का सेवन करें।

प्रभावित जगह पर नारियल का तेल लगाएं।

अगर त्वचा की समस्या ज्यादा हो तो एक पन्ना पहनें।

बुध से कान, नाक और गले की समस्या

बुध बहुत कमजोर हो तो सुनने और बोलने में दिक्कत होती है। कभी-कभी गला खराब हो जाता है और लगातार खराब ही रहता है।

सर्दी-जुकाम की समस्या हो सकती है, किसी खास तरह की गंध से एलर्जी होती है।

बुध से कान, नाक और गले की समस्या के उपाय

रोज सुबह गायत्री मंत्र का जाप करें या मन में दोहराएं।
चांदी के चौकोर टुकड़े पर “ऐं” लिखवाकर गले में पहनें।
ज्यादा से ज्यादा हरे कपड़े पहनें।
रोज सुबह स्नान के बाद पीला चन्दन माथे, कंठ और सीने पर लगाएं।

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