धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से आखिर हनुमान जी के भक्ति से शनि पीडा क्यों हटती है ……
एक बार गन्धमादन पर्वत पर श्री हनुमानजी राम भक्ति में लीन थे कि छाया पुत्र शनि उधर से गुजरे।पवनसुत की ध्यानमग्नता एवं शान्ति प्रिय वातावरण को देखकर शनिदेव को उनसे ईर्ष्या होने लगी।
ईष्या , उदासीनता, मिथ्या, अंहकार शनि प्रधान व्यक्ति की खास विशेषता होती है ।
शनि का अकारण अंहकार जागा और उसने सोचा नियमानुसार मैं इस वानर की राशि पर तो आ ही गया हूँ। अब दो चार पटकी देकर, इसकी दुर्दशा का आनन्द भी हाथोहाथ ले लूं। अंहकार में भरे शनि ने पवनपुत्र को ललकारा।बजरंगबली का ध्यान टूटा।उन्होंने अपने सामने उपस्थित शनि को पहचान कर उसे नमस्कार करते हुए विनत स्वर में कहा – ” मैं प्रभु श्रीराम के ध्यान में लीन हूं।कृपया कर मुझे अपनी अर्चना करने दीजिए।”
शनि ने कहा – ” वानरराज मैंने देव- दानव एवं मानव लोक में सर्वत्र तुम्हारी प्रशंसा सुनी है । अतः कायरता छोड, निडर होकर मुझसे युद्ध करो।मेरी भुजाएं तुम्हारे बल का परिमापन करने के फड़फड़ा रही हैं । मैं तुम्हें याद के लिए ललकार रहा हूँ ।
शनि की धृष्टता देखकर, हनुमानजी ने अपनी पूंछ बढ़ाई और उसमें शनि को बुरी तरह लपेट लिया।रुद्रावंशातार श्री हनुमानजी ने शनि को ऐसा कसा कि वह बेबस, असहाय होकर छटपटाने लगा। इतने में रामसेतु की परिक्रमा होने का समय हो गया।हनुमानजी तेजी से दौड़ते हुए परिक्रमा करने लगे।पूंछ से बंधे शनि पत्थरों, शिलाखण्डों , बड़े बड़े वृक्षों से टकराकर लहुलुहान और व्यथित हो उठे। असहाय पीड़ा से वेष्टित, दुःखी शनि ने पवनपुत्र से बन्धन मुक्त करने की प्रार्थना की।
पवनपुत्र श्री हनुमान जी ने शनि से वचन लिए कि श्रीराम की भक्ति में लीन मेरे भक्तों को तुम कभी तंग नहीं करोगे।
असह्य वेदना से शनि का अंग- अंग पीडित था । छटपटाते शनि ने मालिश के लिए हनुमान जी से तेल मांगा।उस दिन मंगलवार था ।
मंगलवार के दिन जो हनुमानजी को तेल चढाता हैं वह सीधा शनि को मिलता है और शनि प्रसन्न होकर साधक को आशीर्वाद देते हैं ।
शनि की दृष्टि से सोने की लंका भस्म हुई
कहते हैं अजेय योद्धा और शिव भक्त रावण ने ब्रह्मपाश की सहायता से शनि को बांधकर अपने अस्तबल में उल्टा लटका रखा था।शनि ने अपने आराध्य शिव जी की स्तुति की तब शिव जी ने कहा कि हनुमान आएगा, रावण का विनाश करेगा और तुम्हें इस कैद से मुक्त करेगा ।
लंका भस्म करते समय श्री हनुमान जी यह देखकर चकित थे कि लंका जल रहा है लेकिन काला नहीं हो रहा है । अकस्मात उनकी दृष्टि उल्टे लटके शनि पर पडी जो अपने दुर्दिनों पर विलाप कर रहे थे । श्री हनुमानजी ने तुरंत शनि को रावण की कैद से मुक्त किया।
सीधा खडे होते ही शनि ने अपनी रोषपूर्ण दृष्टि लंका पर फेंकी ।सोने की लंका राख हो गई और रावण के दुर्दिनों की शुरुवात, कुटुम्ब-परिवार सहित, उसकी मृत्यु पर समाप्त हुई ।
शनि ने हनुमान जी को वचन दिया कि मैं आपके भक्तों को कभी कष्ट नहीं दूंगा। अतः शनि के दशा महादशा, साढे साति और पनौती के समय जो लोग हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बाहु एवं सुन्दर कांड का पाठ करते हैं । उन्हें शनि ज्यादा व्यथित नहीं करता।।