लखनऊ, 21 दिसम्बर। सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध अधिवक्ता व प्रखर वक्ता श्रीमती मोनिका अरोड़ा ने शनिवार को एक संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा कि नागरिकता संशोधन एक्ट लोगों को नागरिकता देने के लिए है न की छोड़ने के लिए। यह संशोधन नागरिकता प्रदान करने की खिड़की खोलता है। इस कानून को लेकर कांग्रेस, कम्यूनिष्ट समेत विपक्षी पार्टियां लोगों में भ्रम फैला रही हैं। उन्होंने कहा कि नागरिकता कानून का मकसद अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का है न कि नागरिकता समाप्त करने का। उन्होंने इस कानून की आड़ में देश भर में हो रहे हिंसा व बवाल पर कहा कि इसके लिए कांग्रेस, कम्यूनिष्ट व आम पार्टी के लोग जिम्मेदार हैं। इस कानून का बवाल इसलिए है कि इसे मोदी सरकार में संशोधन किया गया। नागरिकता संशोधन कानून पर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और मनमोहन के समय से चर्चा चल रही है। वे भारतीय विचार मंच द्वारा गोमती नगर विस्तार स्थित सीएमएस में “संवैधानिक पृष्ठभूमि में नागरिकों का कर्तव्य” विषय पर आयोजित सेमिनार में बोल रही थीं। इस सेमिनार में वक्ताओं ने नागरिकता संशोधन एक्ट-2019 के अफवाहों और उसमें बुद्धिजीवियों कर्तव्य के बारे में मुख्य रूप से बताया।
नागरिकता संशोधन एक्ट लोगों को नागरिकता देने के लिए है न की छोड़ने के लिए – मोनिका अरोड़ा
नागरिकता संशोधन एक्ट के विरोध में उपद्रव करना राजनीतिक आतंक- न्यायमूर्ति देवेन्द्र अरोड़ा
-भारतीय विचार मंच के तत्वावधान में आयोजित हुआ “संवैधानिक पृष्ठभूमि में नागरिक कर्तव्य” विषय पर सेमिनार
प्रश्न है कि अशांति कौन फैला रहा- मोनिका
उच्चतम न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता माेनिका अराेड़ा ने कहा कि कितने ही शहरों में इंटरनेट बंद हो गया। 19 दिसम्बर भारत ने पाकिस्तान की महिला हसीना बेग को नागरिकता दे दी। प्रश्न यह कि जब नागरिकता मिल जा रही है तो अशांति कौन फैला रहा है। यहां बात यह है कि यहां सच जानने को कोई तैयार ही नहीं है। हम एक जागरूक नागरिक हैं। यह कानून है क्या, इसे समाज को बताना चाहते हैं। भारत में जन्म, वंश, निश्चित समय, पंजीकरण के द्वारा नागरिकता मिल सकती है।
जब किसी के अधिकार में व्यवधान नहीं डालता तो विरोध कैसा उन्होंने कहा कि यह संशोधन किसी तरह से किसी की नागरिकता मिलने में कहीं व्यवधान नहीं डालता, फिर ऐसे में किस तरह से लोग इसका विरोध कर रहे हैं। यदि कोई व्यक्ति वैध कागजात के साथ आता है, पासपोर्ट के साथ आता है। यदि पासपोर्ट इक्सपायर के बाद भी रहता है तो वह अवैध माना जाता है और उसे जेल जाना पड़ता है।
यह प्रताड़ित लोगों के लिए अधिकार देता है
यह संशोधन जो पाकिस्तान, बांग्लादेश से रातों-रात भाग कर वहां के अल्पसंख्यक आये, उन्हें सुरक्षा देता है। ऐसा इसलिए किया गया कि जो पाकिस्तान में 23 प्रतिशत अल्पसंख्यक थे, वे एक प्रतिशत रह गये, जो बांग्लादेश में 22 प्रतिशत थे, वे आज 08 प्रतिशत रह गये। इसका उदाहरण है, योगेन्द्र नाथ मंडल ने मुस्लिम लीग के साथ पाकिस्तान चले गये। वहां पहले लॉ मिनिस्टर बने लेकिन तीन साल के भीतर ही त्याग पत्र लिकायत को दे दिया और कहा कि यहां हम न्याय के लिए आये थे लेकिन यहां तो मंदिर में मांस लटकाए जाते हैं और वे भारत भाग कर आ गये और यहीं पर उनका देहावसान हो गया।
यह बात कांग्रेस ने 1947 में ही कही थी
उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों का सम्मान जनक जीवन और मौलिक अधिकार देना हमारा मानवीय कर्तव्य है। ये बात गांधी जी, नेहरू और इंदिरा गांधी ने भी कही थी। कांग्रेस के 5 नवंबर 1947 के रेज्यूलेशन में भी कहा गया कि पाकिस्तान, बांग्लोदश के अल्पसंख्यकों को संरक्षण दीजिए।उनका कहना था कि नागरिकता कानून को लेकर यह कहा जा रहा है कि इसमें संविधान के अनुच्छेद 14,15,21 और 25 का उल्लंघन हो रहा है, लेकिन सही मायने में जो लोग भारत के नागरिक हैं चाहे वह किसी धर्म या मजहब के हों यह कानून उनके हित में है।
नागरिकता संशोधन एक्ट के विरोध में उपद्रव करना राजनीतिक आतंक- न्यायमूर्ति देवेन्द्र अरोड़ा
संगोष्ठी की अध्यक्ष कर रहे रेरा के चेयरमेन व न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार अरोड़ा (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हर व्यक्ति को यह सोचना होगा कि हमारा संविधान सिर्फ अधिकार ही नहीं देता। उसमें कर्तव्य निर्वहन का भी उल्लेख किया गया है। यह बात अलग है कि उसके उल्लंघन पर कोई सजा का प्राविधान नहीं है। यदि नागरिकता संशोधन एक्ट 2019 में किसी को कोई गलती दिख रही है तो उसे उच्चतम न्यायालय जाना चाहिए लेकिन प्रदर्शन तोड़-फोड़ की इजाजत हमारा कानून नहीं देता। यह एक राजनीतिक आतंक है। सिर्फ समुदाय विशेष को भड़काया जा रहा है। इन उपद्रवियों के साथ कड़ाई से निपटने की जरूरत है।
हम अपने अधिकारों की बात करतें हैं, लेकिन कर्तव्य का नहीं
उन्होंने कहा कि अब इससे काम चलने वाला नहीं है कि हम अपने अधिकारों की बात करेंगे और कर्तव्य का पालन नहीं करेंगे। हम सिर्फ यह बात करें कि संविधान हमको यह अधिकार देता है। इसके साथ यह भूल जाते हैं कि हमारा कर्तव्य क्या है तो यह गलत है। ऐसे लोगों के साथ सख्ती से निपटा जाना चाहिए। उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि हमारे माता-पिता भी बंटवारा के समय पाकिस्तान से यहां आये। उस समय जो भी यहां आये उन्हें यहां का शरणार्थी कार्ड दिया गया। आज भी हमारे माता-पिता का शरणार्थी कार्ड दिया गया।
नेता बाद में, पहले हम मानव हैं- डाक्टर लालता प्रसाद
उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता डाॅक्टर लालता प्रसाद मिश्र ने कहा कि हमें यह समझना होगा कि हम नेता बाद में है। पहले हम एक मानव हैं। यह स्वाभाविक है कि जो बांग्लादेश, पाकिस्तान व अफगानिस्तान में बहुसंख्यक मुसलमान ही हैं और वहां से कोई बहुसंख्यक यहां प्रताड़ना के कारण नहीं आया। ऐसे में उन्हें संरक्षण कैसे दिया जा सकता है। यह संशोधन किसी का अधिकार नहीं लेता, बल्कि किसी को अधिकार देता है। वहीं वरिष्ठ पत्रकार नरेश भदौरिया ने प्रस्तावना दिया।
इस मौके पर महापौर संयुक्ता भाटिया, विधायक सुरेश श्रीवास्तव, कुलदीप पति त्रिपाठी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक अनिल कुमार, प्रान्त प्रचारक कौशल, कुलपति विनय पाठक, प्रान्त संघचालक प्रभुनारायण श्रीवास्तव, धनश्याम शाही, संजय राय, अमर नाथ मिश्रा, शैलेन्द्र कुमार, ललित श्रीवास्तव समेत हजारों लोग उपस्थित रहे।