जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जन्म कुंडली के द्वितीय (धन) भाव मे गुरु का संभावित फल…….

धर्म डेक्स। जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जन्म कुंडली के द्वितीय (धन) भाव मे गुरु का संभावित फल…….

इस भाव में गुरु के प्रभाव से जातक अत्यधिक धनी होता है। उसे विवाह से भी बहुत दहेज मिलता है। ऐसा जातक ज्योतिष के क्षेत्र में भी जा सकता है।

जन्मपत्रिका में यदि बुध की स्थिति अच्छी हो तथा शनि का अष्टम भाव से कोई
वा सम्बन्ध हो तो जातक की भविष्यवाणी ठीक बैठती हैं। वह सत्यप्रिय, उदार, व्यवहारकुशल, कवि अथवा कविता से प्रेम करने वाला, राज्य से सम्मान प्राप्त करने वाला तथा अन्य लोगों के दोष समाप्त करने में सहायक होता है। वह दो विवाह योग वाला होता है। ऐसे जातक के पास सम्पत्ति व सन्तति दोनों ही होती हैं तथा दोनों का सुख भी प्राप्त करता है। जातक व्यवसाय में सफल होता है। ऐसा व्यक्ति किसी का भी दुःख नहीं देख सकता है। उसके शत्रु सदैव उससे पीडित रहते हैं। इस भाव में गुरु यदि अग्नि तत्व (मेष, सिंह व धनु) राशि में हो तो कम आयु में ही माता-पिता का सुख छिन जाता है, कारण कुछ भी हो सकता है। पिता भी पुत्र के द्वारा अर्जित धन-सम्पत्ति का उपभोग नहीं कर पाता है। पैतृक सम्पत्ति अवश्य होती है परन्तु कोई भी उसका सुख नहीं ले पाता है। अन्त में सम्पत्ति का नाश ही होता है अथवा कोई अन्य उसका उपभोग करता है। इस योग के मेरे शोध में यह परिणाम निकला है कि सर्वप्रथम तो सम्पत्ति होती नहीं है तथा पिता-पुत्र में मतभेद कम होते हैं परन्तु दशमेश यदि पीड़ित हो तो पिता की मृत्यु जल्दी हो जाती है अथवा केवल पिता से ही नहीं अपितु वृद्धों से मानसिक मतभेद अवश्य होते हैं। ज्योतिष ग्रन्थों के आधार पर इस घर के गुरु के प्रभाव से जातक की विद्या कम होती है अथवा परिवार के लोगों के प्रभाव से शिक्षा में अवरोध आते हैं। मैंने इस घर के गुरु पर शोध किया है कि ऐसा गुरु शिक्षा में कोई बाधक नहीं देता है, क्योंकि गुरु शिक्षा का कारक होता है। द्वितीय भाव से शिक्षा
की मात्रा देखी जाती है। यदि गुरु अथवा द्वितीयेश पर पापी ग्रह (विशेषकर शनि) का प्रभाव हो तो अवश्य शिक्षा में अवरोध आते हैं। मेष राशि का गुरु वाणी कठोर करता है। इस योग के प्रभाव से जातक की मृत्यु अपने जीवनसाथी से पहले होती है लेकिन वह स्वयं भी दीर्घायु होता है। जातक के स्वप्न अधिकतर पूर्ण होते हैं। वह कुछ भी ठान लेता है तो उसे पूरा करता है। इसके साथ ही यदि गुरु शुभ स्थिति में हो तो जातक अपनी वाणी के प्रभाव से बड़े से बड़े व कठोर अधिकारी अथवा व्यक्ति से अपने कार्य सिद्ध करवा लेता है।

क्रमशः….
अगले लेख में हम गुरु के तीसरे भाव मे होने पर मिलने वाले प्रभावों के विषय मे चर्चा करेंगे।

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