धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से कर्मानुसार ही मृत्यु प्राप्त होती है……
आयु एक दुर्लभ वस्तु है ।इसे पाकर आत्मा को नीचे नहीं गिराना चाहिए ।पुण्य कर्मों के अनुष्ठानों से ऊपर उठने का प्रयत्न करना चाहिए । पुण्य कर्म से ही मनुष्य उत्तम वर्ण मे जन्म पाता है ।पापी के लिए यह अत्यंत दुर्लभ है ।वह उसे न पाकर अपने पाप के द्वारा अपना ही नाश कर लेता है ।
अनजान मे यदि पाप बन जाय तो उसे तपस्या के द्वारा नष्ट करदें क्योंकि अपनाकिया हुआ पाप पापरूप ही फल देता है । अत एव दुख देने वाले पाप कर्म कभी न करे। इसी विषय में कहा गया है—-
य:करोति नर:पापं न तस्यातामा ध्रुवं प्रिय:!
. आत्मना हि कृतं पापमात्मनैव हि भुज्यते।।
अर्थात् जो मनुष्य पाप करता है निश्चय ही उसे अपनी आत्मा प्रिय नही है,क्योंकि स्वयं किया हुआ पाप स्वयं ही भोगना पडता है ।पापका फल हमेशा दुख ही ही होता है और दुख कोई भोगना नही चाहता,।यदि आत्मा प्रिय हो तो उसे दुख भोगने का साधन क्यों उपस्थित करे।।
जन्म और मृत्यु साथ साथ उत्पन्न होते हैं।यह निरन्तर जन्म के साथ ही रहती है। जन्म मे मृत्यु और मृत्यु मे जन्म निहित है।
हर प्राणी मृत्यु को भूल जाते हैं ।उन्हें सांसारिक कार्यों के करते रहने के कारण मृत्यु के आने का पता ही नहीं चलता ।
मृत्यु किसी की बाट नही जोहती ।जबमनुष्य हमेशा मौत के मुख मे ही है तो सदा धर्म का आचरण करते रहना ही उसके लिए लाभदायक है।
जिन्हे धर्म अर्थ काम मोक्ष का ज्ञान नहीं वह अज्ञानी हमेशा जन्म मृत्यु के भंवर मे पडा रहता है।
जैसे आदि शंकराचार्य ने कहा है-
पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननी जठरे शयनम्।।भज गोविंदं भज गोविंदं भज गोविंदं मूढ मते।।
ज्ञान मार्ग से चलने वाले को इस लोक मे सुख मिलता है और परलोक मे भी।जिन्होंने वेद शास्त्रों का अध्ययन किये है सुना है या ज्ञानी पुरुषों की संगति सेवा किया है वे ज्ञान सम्पन्न यह सब जान जाते हैं कि अमुक जीवात्मा पुण्यात्मा है या पापात्मा ।जिस प्रकार अंधेरे में मनुष्य खद्योत को देख लेते हैं।
इसी प्रकार सिद्ध पुरुष अपनी ज्ञानमयी दृष्टि से जन्मते मरते तथा गर्भ मे प्रवेश करते जीवात्मा को और चलते फिरते प्राणी की आत्मा को जान जाते हैंकि यह पापात्मा है पुण्यात्मा ।
मृत्यु से भयभीत नहीं होना चाहिए चाहे आज मृत्यु हो चाहे सौ वर्षों बाद । मृत्यु होना निश्चित है।महाभारत मे कहा गया है —