जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से सप्तपदी के सात वचन……

धर्म डेक्स । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से सप्तपदी के सात वचन……

विवाह संस्कार के सात वचन…..

शादी का मौसम शुरू होने की तैयारी है तो आज समाज के सामने इस ब्लॉग के ज़रिये हमारी भारतीय परंपरा के अनुसार किये जाने वाले विवाह संस्कार में सप्तपदी के जो सात वचन लिए जाते है,
वो सातों वचन का गूढ़ अर्थ समझनेका सूक्ष्म प्रयास करेंगे ।

शास्त्रों के अनुसार कुल सोलह संस्कार बताए गए हैं । उनमें से विवाह सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है।
हिन्दू धर्म में विवाह के समय वर-वधू द्वारा सात वचन लिए जाते हैं। इसके बाद ही विवाह संस्कार पूर्ण होता है।
विवाह के बाद कन्या वर से वचन लेती है कि –

● पहला वचन ●

तीर्थव्रतोद्यापनयज्ञ दानं
मया सह त्वं यदि कान्तकुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं
जगाद वाक्यं प्रथमं कुमारी ।।1।।
इस श्लोक के अनुसार कन्या कहती है कि, “स्वामि !
तीर्थ, व्रत, उद्यापन, यज्ञ, दान आदि सभी शुभ कर्म तुम मेरे साथ ही करोगे तभी मैं तुम्हारे वाम अंग में आ सकती हूं।
अर्थात् तुम्हारी पत्नी बन सकती हूं।
वाम अंग पत्नी का स्थान होता है।

● दूसरा वचन ●

हव्यप्रदानैरमरान् पितृश्चं
कव्यं प्रदानैर्यदि पूजयेथा:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं
जगाद कन्या वचनं द्वितीयम् ।।2।।
इस श्लोक के अनुसार कन्या वर से कहती
है कि, “यदि तुम हव्य (यज्ञ के दौरान स्वाहाकार के साथ होम किया हुवा द्रव्य) देकर देवताओं को और कव्य (तर्पण के दौरान स्वधाकार के साथ त्याग किया गया तर्पण) देकर पितृओ की पूजा करोगे तब ही मैं तुम्हारे वाम अंग में आ सकती हूं यानी पत्नी बन सकती हूं।

● तीसरा वचन ●

कुटुम्बरक्षाभरंणं यदि त्वं
कुर्या: पशूनां परिपालनं च।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं
जगाद कन्या वचनं तृतीयम् ।।3।।
इस श्लोक के अनुसार कन्या वर से कहती है कि, “यदि तुम मेरी तथा परिवार की रक्षा करो तथा घर
के पालतू पशुओं का पालन करो तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आ सकती हूं यानी पत्नी बन सकती हूं।

● चौथा वचन ●

आयं व्ययं धान्यधनादिकानां
पृष्टवा निवेशं प्रगृहं निदध्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं
जगाद कन्या वचनं चतुर्थकम् ।।4।।
चौथे वचन में कन्या वर से कहती है कि, “यदि तुम
धन-धान्य आदि का आय-व्यय मेरी सहमति से करो तो मैं तुम्हारे वाग अंग में आ सकती हूं अर्थात्
पत्नी बन सकती हूं।

● पांचवां वचन ●

देवालयारामतडागकूपं
वापी विदध्या: यदि पूजयेथा:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं
जगाद कन्या वचनं पंचमम् ।।5।।
पांचवे वचन में कन्या वर से कहती है कि, “यदि तुम
यथा शक्ति देवालय, बाग, कूआं, तालाब, बावड़ी (वाव) बनवाकर पूजा करोगे तो मैं तुम्हारे वाग अंग में आ सकती हूं अर्थात् पत्नी बन सकती हूं।

● छठा वचन ●

देशान्तरे वा स्वपुरान्तरे वा
यदा विदध्या: क्रयविक्रये त्वम्।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं
जगाद कन्या वचनं षष्ठम् ।।6।।
इस श्लोक के अनुसार कन्या वर से कहती
है कि, “यदि तुम अपने नगर में या विदेश में या कहीं
भी जाकर व्यापार या नौकरी करोगे और घर-परिवार का पालन- पोषण करोगे तो मैं तुम्हारे वाग अंग में आ सकती हूं यानी पत्नी बन सकती हूं।

● सातवां और अंतिम वचन ●

न सेवनीया परिकी यजाया
त्वया भवेभाविनि कामनीश्च।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं
जगाद कन्या वचनं सप्तम् ।।7।।
इस श्लोक के अनुसार सातवां और अंतिम वचन यह है कि कन्या वर से कहती है “यदि तुम जीवन में कभी पराई स्त्री को स्पर्श नहीं करोगे तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आ सकती हूं यानी पत्नी बन सकती हूं ।

शास्त्रों के अनुसार पत्नी का स्थान पति के वाम अंग की ओर यानी बाएं हाथ की ओर रहता है। विवाह से पूर्व कन्या को पति के सीधे हाथ यानी दाएं हाथ की ओर बिठाया जाता है और विवाह के बाद जब कन्या वर की पत्नी बन जाती है जब वह बाएं हाथ की ओर बिठाया जाता है।

इस तरह सात वचन अग्नि, ब्राह्मण और अपने बड़े बुज़ुर्गो की साक्षी में लेकर हिन्दू परंपरा में विवाह संस्कार संपन्न होता है ।

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