दाँत के मरीजों को काफी राहत
मसूढ़े न होने पर भी आसानी से लग जाएंगे दांत
अनपरा सोनभद्र। एस एन डेंटल क्लीनिक अनपरा के डॉ चंदन सिंह के कुशल नेतृत्व में डॉ राहुल माथुर और डॉ अरविंद सिंह की टीम ने एस एन डेंटल क्लीनिक अनपरा में एक्सीडेंट में अपना दाँत गवा बैठे बीना निवासी अरुण प्रकाश को नई तकनीक से इम्प्लांट और दांत एक साथ लगाना भी संभव हुआ।
डॉक्टर चन्दन ने बताया कि मसूढ़े न होने पर भी अब बाई कार्टिकल इम्प्लांट से दांत लगाए जा सकेंगे। खासतौर से पैदाइशी मसूढ़े न बने हो या फिर बहुत बूढ़े लोग जिनके मसूढ़े बिलकुल खत्म हो चुके हों, उनके लिए ये तकनीक प्रभावी है।अभी तक ऐसे बच्चे समाज के सामने नहीं आ पाते थे। क्योंकि उन्हें सामान्य ‘डेंचर’ भी नहीं लगाया जा सकता है। क्योंकि डेंचर लगाने के लिए मसूढ़ों का होना जरूरी होता है।
डॉ. चन्दन ,डॉ राहुल माथुर और डॉ अरविंद सिंह ने बताया कि अब ऐसी तकनीक आ गई हैं। जिससे एक ही दिन में इम्पलांट और दांत लगाना संभव हो गया है। पहले मरीज को इम्प्लांट लगाया जाता था।टाइटेनियम से बने इस इम्प्लांट से बिना दांत वाले लोग भी सामान्य लोगों की तरह खाना खा सकेंगे। इसके साथ ही दांतों की वजह से उनका चेहरा भी सही दिखेगा। ओरल एंड मैक्सिलो फेशियल सर्जरी से एस एन डेंटल क्लिनिक अनपरा में जल्दी ही इस तकनीक से दांत लगाए जाएंगे।
ओरल एंड मैक्सिलोफेशियल सर्जरी विभाग के डॉ. यूएस पाल ने बताया कि जिन लोगों के दांत टूट गए हों उनके लिए इम्प्लांट लगाने की तकनीक है। अब ऐसे मरीज जिनके मसूढ़े विकसित न हुए हों, उनमें भी इम्प्लांट लगाकर दांत लगाए जा सकते हैं।
इसके लिए बाई कार्टिकल इम्प्लांट लगाया जाता है। ये विशेष तरह के इम्प्लांट होते हैं जो मसूढ़ों की जगह जबड़े की हड्डी में लगाए जाते हैं। पहले हड्डी में छेद किया जाता है। इसके बाद इन इम्प्लांट को वहां लगा दिया जाता है। सबसे अच्छा इम्प्लांट टाइटेनियम का माना जाता है। उन्होंने बताया कि बाई कार्टिकल इम्प्लांट ऐसे लोगों के लिए वरदान है जिनको अभी तक किसी भी तकनीक से दांत नहीं लग सकता था।बताते चले कि
दंत प्रत्यारोपण दांतों की एक बनावटी जड़ है जिसका इस्तेमाल दंत चिकित्सा में दांतों को फिर से स्थापित करने के लिए किया जाता है जो देखने में दांत या दांतों के समूह की तरह लगते हैं।
आजकल किए जाने वाले लगभग सभी दंत प्रत्यारोपण जड़-रूप अंतर्स्थिकलात्मक प्रत्यारोपण (रूट-फॉर्म एंडोसियस इम्प्लांट्स) होते हैं। दूसरे शब्दों में इक्कीसवीं सदी में किए जाने वाले लगभग सभी दंत प्रत्यारोपण देखने में दांतों की एक वास्तविक जड़ की तरह लगते हैं (और इस प्रकार एक “जड़ का रूप” धारण कर लेते हैं) और इन्हें हड्डी के भीतर स्थापित किया जाता है (एंड- “में” का यूनानी उपसर्ग है और ओसियस का मतलब “हड्डी” है).
रूट-फॉर्म एंडोसियस इम्प्लांट्स के आगमन से पहले ज्यादातर प्रत्यारोपण या तो ब्लेड एंडोसियस इम्प्लांट्स होते थे जिनमें हड्डी के भीतर लगाए जाने वाले धातु के टुकड़े की आकृति देखने में चपटे ब्लेड की तरह लगती थी या सबपेरीयोस्टील इम्प्लांट्स होते थे जिनमें जबड़े की दिखाई देने वाली हड्डी पर स्थापित करने के लिए एक रूपरेखा का निर्माण किया जाता था और उसे उस हड्डी के साथ स्क्रू की सहायता से जोड़ दिया जाता था।
दंत प्रत्यारोपणों का इस्तेमाल दांत के ऊपरी भाग, प्रत्यारोपण समर्थित पुल या बनावटी बत्तीसी सहित कई बनावटी दांतों की पंक्ति (डेंटल प्रॉस्थेसिस) को सहारा देने के लिए किया जाता है।