धर्म डेस्क।जानिये आचार्य वीर विक्रम नारायण पाण्डेय से देवगुरु बृहस्पति की पौराणिक एवं ज्योतिषीय व्याख्या?
गणितज्योतिष के अनुसार बृहस्पति (गुरू) सबसे बड़ा ग्रह है। ज्योतिषीय दृष्टि से भी गुरू ताकतवर या सबसे उदार ग्रह है। सप्ताह का चौथा दिन बृहस्पतिवार गुरू से जुड़ा हुआ है। इस दिन बहुत सारे जातक पीले रंग के कपड़े पहने हुए देखे जा सकते हैं।
बृहस्पतिवार एवं गुरू ग्रह के जुड़ाव संबंधी कुछ महत्वपूर्ण बातें……
इस दिन का रंग – पीला एवं केसर और नारंगी के सारे हलके गूढ़े रंग।
अंक – 3
दिशा – उत्तर
रत्न – पुखराज या पीला नीलम
धातु – सोना
देवता – गुरू दत्तात्रेय / भगवान ब्रह्मा
बृहस्पति के संदर्भ में
“गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर,
गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:||”
गुरु(बृहस्पति)…… सत्वगुण प्रधान, दीर्घ और स्थूल शरीर, कफ प्रकृति, पीट वर्ण किंतु नेत्र और शरीर के बाल कुछ भूरा पन लिए हुए, गोल आकृति, आकाश तत्त्व प्रधान, बड़ा पेट, ईशान (पूर्वोत्तर) दिशा का स्वामी शंख के समान गंभीर वाणी, स्थिर प्रकृति, ब्राह्मण एवं पुरुष जाती, तथा धर्म (आध्यात्म विद्या) का अधिष्ठाता होने से इन्हें देवताओ का गुरु माना जाता है। देवता ब्रह्मा तथा अधिदेवता इंद्र है। ये मीठे रस एवं हेमंत ऋतू के अधिष्ठाता है। गुरु धनु एवं मीन राशियों के स्वामी है। ये कर्क राशि के ५ अंश पर उच्च के तथा मकर राशि के ५ अंश पर नीच के माने जाते है। गुरु बृहस्पति राशि चक्र की एक राशि में १३ महीनो में पूरा चक्र लगा लेते है।
गुरु से प्रभावित कुंडली के जातक के १६, २२, एवं ४० वे वर्ष में विशेष प्रभावकारी होते है। गुरु को २, ५, ९, १० एवं ११ वे भाव का कारक माना जाता है।
गुरु के पर्यायवाची….. देवगुरु, बृहस्पति, वाचस्पति, मंत्री, अंगिरा, अंगिरस, जीव आदि।
कारकत्वादि…… विवेक-बुद्धि, आध्यात्मिक व् शास्त्रज्ञान, विद्या, पारलौकिकता, धन, न्याय, पति का सुख(स्त्री की कुंडली में), पुत्र संतति, बड़ा भाई, देव-ब्राह्मण, भक्ति, मंत्री, पौत्र, पितामह, परमार्थ, एवं धर्म के कारक है। इसके अतिरिक्त परोपकार, मन्त्र विद्या, वेदांत ज्ञान, उदारता, जितेन्द्रियता, स्वास्थ्य, श्रवण शक्ति, सिद्धान्तवादिता, उच्चाभिलाषी, पांडित्य, श्रेष्ठ गुण, विनम्रता, वाहन सुख, सुवर्ण, कांस्य, घी, चने, गेंहू, पीत वर्ण के फल, धनिया, जौ, हल्दी, प्याज-लहसुन, ऊन, मोम, पुखराज, आदि का विचार भी किया जाता है।
मनुष्य शरीर में चर्बी, कमर से जंघा तक, ह्रदय, कोष संबंधी, कान, कब्ज एवं जिगर संबंदी रोगों का विचार भी गुरु से किया जाता है।
बृहस्पति निम्नलिखित पहलुओं, लक्षणों या गुणों का भी प्रतीक है।
आध्यात्मिकता, दिव्यता, सीखना, उच्च स्तरीय बुद्धि, धर्म, दर्शन, अनुष्ठान, शास्त्र, संस्कृति, परंपराओं, मंदिरों या पूजा के स्थानों, बड़प्पन, भक्ति, धर्म, सिद्धांतों और नैतिकता, विकास, शिक्षा, भाग्य, धन, खजाने, अवसर, समझ, उत्साह, आशावाद, ऐश्वर्य, धन, शक्ति, दान, दया, सम्मान, स्थिति, गरिमा, कानून और प्रशासन, लंबी यात्राएं और यात्रा, विकास इत्यादि।
इसके अलावा गुरू नेताआें, मंत्रियों, न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं व उन जातकों को, जो न्यायिक प्रक्रियाओं से जुड़े हुए हैं, प्रचारकों, शिक्षकों, आध्यात्मिक गुरूओं, पुजारियों, संतों, ईश्वरीय पुरुषों, गुरूओं, परोपकारियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सुधारकों, सलाहकारों, आयोजकों, वित्तदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है। साथ ही साथ, उन सभी पेशों का भी प्रतिनिधित्व करता है, जो प्रकृति से सम्मानजनक, विशाल और उच्च वर्ग के हैं।
कुंडली में गुरु यदि अशुभ राशि में अथवा अशुभ दृष्टि में हो तो उपरोक्त शरीर के अंगों में रोग की संभावनाएं रहती है।
इसके अतिरिक्त गुरु अशुभ होने की स्थिति में पैतृक सुख-सम्पति में कमी, नास्तिकता, संतान को या से कष्ट, उच्चविद्या में बाधा एवं असफलता एवं लड़को के विवाह में अड़चने आना जैसे अशुभ फल होते है।
गुरु और शुक्र दोनों शुभ ग्रह है परंतु गुरु से पारलौकिक एवं आध्यात्मिक एवं शुक्र से सांसारिक एवं व्यवहारिक सुख अनुभूतियों का विचार किया जाता है।
गणितज्योतिष के अनुसार 142,800 किलोमीटर के विशाल व्यास के साथ सुनहरे या पीले रंग का ग्रह गुरू सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह सूर्य से लगभग 778 मिलियन किलोमीटर दूर स्थित है। इतना ही नहीं, गुरू के अपने 63 प्राकृतिक उपग्रह हैं।
गुरू को उच्च कोटि का समझदार ग्रह भी कहा जाता है। यह हर परिस्थिति को विशाल दृष्टिकोण से देखने की क्षमता रखता है। ज्योतिष के अनुसार, गुरू प्रत्येक राशि के पारगमन के लिए लगभग 13 महीनों का समय लेता है। इसके अलावा गुरू नौवीं एवं बारहवीं राशि क्रमशः धनु एवं मीन में स्वगृही होता है। साथ ही, गुरू को कर्क में उच्च का जबकि मकर में नीच का माना जाता है। पौराणिक शास्त्रों एवं वैदिक ज्योतिष के मुताबिक सूर्य, मंगल एवं चंद्रमा के मित्र ग्रह माने जाते हैं जबकि बुध एवं शुक्र दुश्मन ग्रह हैं हालांकि, शनि के साथ गुरू के संबंध तटस्थ हैं।
दूसरी ओर, यह भी बहुत रोचक बात है कि राहु एवं केतु भी गुरू के विरोधी माने जाते हैं, हालांकि, दोनों ग्रह नहीं हैं। गुरू की सकारात्मक शक्ति एेसी है कि उसके साथ कोर्इ भी शत्रुता की भावना रख सकता है। जैसे कि गुरू हर चीज को विस्तारपूर्वक एवं विशाल दायरे में प्रदर्शित करता है एवं जातक तर्क के साथ किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में सफल होते हैं। ज्योतिष के अनुसार यह गुरू का स्वभाव है।
पौराणिक कथा के संदर्भ से……
वैदिक ज्योतिष प्रत्येक ग्रह को मानव रूप में प्रदर्शित करता है एवं गुरू शुद्ध सात्विक स्वभाव तथा ब्राह्मण वर्ण का है। साथ ही, बृहस्पति को “प्रार्थना या भक्ति का स्वामी” माना गया है, और देवगुरू (देवताओं के गुरू) भी कहलाते हैं, एक हिन्दू देवता व वैदिक आराध्य हैं।
भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार बृहस्पति को अंगिरस ऋषि एवं सुरुप का पुत्र माना जाता है। ऋषि अंगिरस दिव्य तेज से लबरेज थे एवं भगवान ब्रह्मा के पुत्र हैं। गुरू को भगवान ब्रह्मा का प्रत्यक्ष वंशज माना जाता है। बृहस्पति ने प्रभास तीर्थ के तट भगवान शिव की अखण्ड तपस्या कर देवगुरू की पदवी पार्इ। तभी भगवाण शिव ने प्रसन्न होकर इन्हें नवग्रह में एक स्थान भी दिया। ऋषि भारद्वाज के अनुसार भारद्वाज गोत्र के सभी ब्राह्मण इनके वंशज हैं।
महत्व…….
ज्योतिष के अनुसार गुरू अधिकतम शुभ शक्तिशाली और पराक्रमी ग्रह है। इसलिए गुरू की कृपा के बिना मानवीय जीवन में सकारात्मक एवं अच्छी चीजें घटित नहीं हो सकती। गुरू नकारात्मकता एवं बुरी चीजों को जीवन से बाहर फेंकता है।
शिक्षक…….
गुरू, लौकिक मंत्री या सलाहकार या शिक्षक के रूप में भी जाना जाता है, जो लोगों को हमेशा सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करता है एवं मार्गदर्शन देता है। गुरू का सकारात्मक प्रभाव अध्यात्म और ज्ञान की मदद के माध्यम से मानव को र्इश्वर एवं दिव्य शक्ति से जोड़े रखता है।
किसी को भी जीवन में कुछ बनने के लिए एक अच्छे शिक्षक की जरूरत होती है, एवं एक अच्छे शिक्षक के बिना व्यक्ति अपने जीवन में मुश्किल परिस्थितियों में बुरी तरह हार जाता है। व्यक्ति को जीवन के अलग अलग पहलूओं के प्रति जागरूक करने एवं उनके प्रति जिम्मेदार बनाने में बृहस्पति अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
गुरू के संदर्भ में एक अच्छी बात यह है कि गुरू शनि ग्रह की तरह कठोरता एवं मुश्किल तरीकों से जीवन जीने का ढंग नहीं सिखाता। गुरू ग्रह उदारता एवं दयालुता भरे तरीकों से जीवन के हर पहलू को समझने में मदद करता है। गुरू सुनिश्चित करता है कि मानव अपने जीवन के अन्य पहलूओं में संतुष्टि के स्तर पर पहुंचने के बाद जीवन के असली सत्य के करीब भी पहुंचे। भगवान गुरू की कृपा से व्यक्ति जीवन में अच्छी संपत्ति, पद प्रतिष्ठा एवं प्रसन्नता को प्राप्त करता है। गुरू जातकों को अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित करता है एवं दूसरों की मदद के लिए आगे आने हेतु प्रोत्साहन देता है।
परिष्कृत ज्ञान और बुद्धि के माध्यम से गुरू का प्रभाव व्यक्ति की विचारशीलता को सक्रिय करता है एवं कल्पना के क्षितिज को भी विस्तार देता है। व्यक्ति अपनी क्षमताआें के प्रति जागरूक होता है, एवं अपने जीवन से प्रेरित होते हुए जीवन में सर्वोत्तम प्रदर्शन करने का प्रयास करता है ताकि समाज में उसकी प्रतिष्ठा बढ़े एवं उसका अस्तित्व स्थापित हो सके। बृहस्पति आपको अच्छे एवं बुरे के बीच में अंतर करने की समझ प्रदान करता है। गुरू जीवन के सभी प्रतिकूल पहलुओं को दूर करता है। गुरू का प्रभाव जातकों को जीवन में होने वाली अप्रिय घटनाआें से बचाता है, इसलिए गुरू को रक्षक और पालक भी माना जाता है।
ज्योतिष के अनुसार, यदि गुरू जन्म कुंडली में सही स्थान पर स्थित है तो यह आपको बहुत शुभ नतीजे प्रदान करता है। गुरू की कृपा से व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि, मान सम्मान, धन संपदा, प्रसिद्धि, शांति प्रसन्नता, स्वास्थ्य इत्यादि आता है। गुरू कृपा के प्रभाव वाले व्यक्ति को लक्की कह सकते हैं।
इसके विपरीत, यदि बृहस्पति नकारात्मक रूप से जातक की जन्म कुंडली में स्थित है, तो अति-आशावाद, मूर्खता, आलोचनीयता, पेट फूलना और शरीर में वसा की समस्याएं, गुर्दे और आंतों की समस्याएं, मानहानि, मधुमेह, अहं की समस्याएं को शिकायत रह सकती है। हालांकि, ज्योतिष ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने के लिए उपाय प्राप्त कर चुका है। जिनसे ग्रहों को शक्तिशाली बनाया जा सकता है।
क्या आप शुभ एवं लाभकारी गुरू को मजबूत बनाकर जीवन को सुंदर बनाने की इच्छा रखते हैं ? यदि हां तो आप निम्न दिए कुछ सुझावों का अनुसरण करें, जो गणेशजी आपको उपलब्ध करवा रहे हैं। इससे जीवन में खुशी, प्रसन्नता एवं समृद्धि आएगी।
१)भगवान दत्तात्रेय की पूजा करें या आप अपने स्तर पर किसी भी आध्यात्मिक गुरू का चुनाव कर सकते है।
२ ) हर गुरूवार को स्नान करने के पश्चात पीला / भगवा वस्त्र पहनकर ३० बार निम्न दिए मंत्र का जाप करें।
देवानां च हृषिमाम च गुरु कांचन सन्निभम।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तम नमामि बृहस्पतिम।।
या आप निम्न दिए मंत्र का 108 बार जाप कर सकते हैं।
ॐ ब्रं बृहस्पतये नमः
३) किसी गरीब ब्राह्मण को पीले कपड़े, हल्दी, केसर, केले, पीले रंग की दाल आदि का दान करें।
४) गाय को केले खिलाएं।
५) गुरूवार को पीले रंग के कपड़े पहनें।
६) यदि आप किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए जाते हैं तो अपने साथ हमेशा पीले रंग का धागा या पीले रंग की वस्तु रखें।
७) यदि आप गुरू कमजोर अवस्था में है तो आप संदेही चरित्र या बुरी लत के शिकार लोगों के साथ दोस्ती न करें।
अरिष्ट गुरु की शांति के विशेष वैदिक उपाय……
सर्व प्रथम आपको यह जानना आवश्यक है कि गुरु २, ५ , ९, १० एवं ११ वें भावो का कारक होता है अतः इन भावों में गिर यदि अकेला बैठा है और इसका किसी भी मित्र गृह से योग एवं दृष्टि सम्बन्ध ना होता अकेला गुरु उपर्युक्त भावो में अपना शुभ फल प्रकतः नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में गुरु अपने शुभाशुभ दोनों प्रकार के फल देता है।
गुरु ४, ६ ,८ एवं १२ वे भावो में प्रायः अशुभ फल ही देता है। इसके अतिरिक्त गुरु नीच, शत्रु राशि या अस्तगत होकर इन्ही स्थानों में बैठा हो तब भी अशुभ फल ही देता है।
अशुभ फल की स्थिति में जातक को कान, कफ, पीलिया आदि जिगर सम्बंधित रोगों की संभावना, आमदनी कम, अधिक फिजूल खर्ची, वैवाहिक सुख में विलम्ब या कमी, उच्च विद्या में विघ्न बाधाएं, शरीर कष्ट एवं भाई-बंधुओ से विरोध मतभेद होता है।
नीचे दिए गए शास्त्रसम्मत वैदिक उपाय करने से गुरु के अरिष्ट प्रभावों में लाभ मिलता है एवं कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है।
उपाय…….
१ २१ गुरुवार तक बिना क्रम तोड़े हर गुरुवार का व्रत रख कर भगवान् विष्णु के मंदिर में पूजा के उपरांत पंडित जी से लाल या पीले चन्दन का तिलक लगवाए तथा यथा शक्ति बूंदी के लड्डू का प्रसाद चढ़ा कर बालको में बाँटना चाहिए। इससे लड़की या लड़के के विवाह आदि सुख संबंधों में पड़ने वाली बाधाएं दूर होती है।
२ भगवान् विष्णु के मंदिर में किसी शुक्ल पक्ष से शुरू करके २७ गुरुवार तक प्रत्येक गुरुवार चमेली या कमल का फूल तथा कम से कम पांच केले चढाने से मनोकामना पूर्ण होती है।
३ गुरुवार के दिन गुरु की ही होरा में बिना सिले पीले रेशमी रुमाल में हल्दी की गाँठ या केले की जड़ को बांधकर रखे, इसे गुरु के बीज मंत्र (“ॐ ऐं क्लीं बृहस्पतये नमः”) की ३ माला जप कर गंगाजल के छींटे लगा कर पुरुष दाहिनी भुजा तथा स्त्री बाई भुजा पर धारण करे इससे भी बृहस्पति के अशुभ फलों में कमी आती है।
४ गुरु पुष्य योग में या गुरु पूर्णिमा के दिन , बसंत पंचमी के दिन, अक्षय तृतीया या अपने तिथि अनुसार जन्मदिन के अवसर पर श्री शिवमहापुराण, भागवत पुराण, विष्णुपुराण, रामायण, गीता, सुंदरकांड, श्री दुर्गा शप्तशती आदि ग्रंथो का किसी विद्वान् ब्राह्मण को दान करना अतिशुभ होता है।
५ किसी भी शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से आरम्भ कर रात में भीगी हुई चने की दाल को पीसकर उसमें गुड़ मिलाकर रोटियां लगातार २१ गुरुवार गौ को खिलाने से विवाह में आरही अड़चने दूर होती है। किसी कारण वश गाय ना माइक तो २१ गुरुवार ब्राह्मण दंपति को खीर सहित भोजन करना शुभ होता है।
६ जन्म कुंडली में गुरु यदि उच्चविद्या, संतान, धन आदि पारिवारिक सुखों में बाधाकारक हो तो जातक को माँस, मछली शराब आदि तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए। अपना चाल-चलान भी शुद्ध रखना चाहिए।
७ कन्याओं के विवाहादि पारिवारिक बाधाओं की निवृत्ति के लिए श्री सत्यनारायण अथवा गुरुवार के २१ व्रत रख कर मंदिर में आटा, चने की दाल, गेंहू, गुड़, पीला रुमाल, पीले फल आदि दान करने के बाद केले के वृक्ष का पूजन एवं मनोकामना बोलकर मौली लपेटते हुए ७ परिक्रमा करनी चाहिए।
८ यदि पंचम भाव अथवा पुत्र संतान के लिए गुरु बाधा कारक हो तो हरिवंशपुराण एवं श्री सन्तानगोपाल या गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ जप करना चाहिए।
९ गुरु कृत अरिष्ट एवं रोग शांति के लिए प्रत्येक सोमवार और वीरवार को श्री शिवसहस्त्र नाम का पाठ करने के बाद कच्ची लस्सी, चावल, शक्कर आदि से शिवलिंग का अभिषेक करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
१० इसके अतिरिक्त गुर जनित अरिष्ट की शांति के लिए ब्राह्मण द्वारा विधि विधान से गुरु के वैदिक मन्त्र का जप एवं दशांश हवन,
करवाने से अतिशीघ्र शुभ फल प्रकट होते है।
११ पुखराज ८, ९, या १२ रत्ती को सोने की अंगूठी में पहनने से बल, बुद्धि, स्वास्थ्य, एवं आयु वृद्धि, वैवाहिक सुख, पुत्र-संतानादि कारक एवं धर्म-कर्म में प्रेरक होता है। इससे प्रेत बाधा एवं स्त्री के वैवाहिक सुख की बाधा में भी कमी आती है।
१२ शुक्ल पक्ष के गुरूवार को, गुरु पुष्य योग, गुरुपूर्णिमा अथवा पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद आदि नक्षत्रो के शुभ संयोग में विधि अनुसार गुरु मन्त्र उच्चारण करते हुए सभी गुरु औषधियों को गंगा जल मिश्रित शुद्ध जल में मिला कर स्नान करने से पीलिया, पांडुरोग, खांसी, दंतरोग, मुख की दुर्गन्ध, मंदाग्नि, पित्त-ज्वर, लीवर में खराबी, एवं बवासीर आदि गुरु जनित अनेक कष्टो की शांति होती है।