मुहर्रम में जंगी नुमाइशें और इस्लामी परचम लहराना जायज़-मौ.यूनुस

—- जिक्रे शोहदाये कर्बला में उमड़ा अकीदतमंदों का हुजूम
—- ताजियादारी, औरतों का जुलूस में शामिल होना और मातम शरीयत के खिलाफ
दुद्धी। मुहर्रम के जुलूस में इस्लामी परचम के साथ लाठी-डंडा व तलवार सहित अन्य औजारों से जंगी नुमाईशें (युद्ध प्रदर्शन) करना जायज़ है। ताजिया बनाना, मातम करना और जुलूस से औरतों का

शामिल होना ये सब काम ख़िलाफ़े शरीयत है। ऐसी नादानियों, गफलतों से दीन व मसलक का नुकसान होता है। लोगों को हंसने का मौका मिलता है। लोग यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि पैग़ंबरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के नवासे की कुर्बानी का क्या यही मकसद है। उक्त दीनी तकरीर जामिया रिज्विया मदरसा दीघुल के मौलाना यूनुस ने बुद्धवार की रात कस्बे के पड़ोसी गाँव मलदेवा में आयोजित जिक्रे शोहदाये कर्बला में अपनी तकरीर के दौरान कही। उन्होंने कहा कि इस्लामी साल का पहला महीना मुहर्रम उल हराम हर साल हमें अपने तारीख के पन्नों को पलट कर देखने और बीते हालात से सबक हासिल करने का पैगाम देता है।सन 61 हिजरी में होने वाले कर्बला की जंग और हुसैनियों की शहादत ने इसे अमर बना दिया है। हजरत इमाम हुसैन और उन उनके साथियों की बेमिसाल कुर्बानियों को याद किया जाता है। हक और सदाकत के उसी अमल बरदार शहीद-ए-आजम की याद में आज हर जगह महफिलें मुनक़्क़ीद होती हैं। उन्हें खिराजे अकीदत

पेश कर अहले बैत से अपनी मोहब्बत का इजहार किया जाता है। हुकूमत की कुर्सी हासिल करने के लिए जुल्म करने वाले यजीदियों का नामोनिशान मिट गया और हक व सदाकत के लिए कुर्बान होने वाले हुसैनी अमर हो गए। इस्लाम से पहले दौरे जहालत में भी यह महीना काबिले एहतेराम समझा जाता था। इसी महीने की दसवीं तारीख को कर्बला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन रजी अल्लाह हो अन्हो ने अपनी जान कुर्बान कर के इस्लामी अजमत के परचम को लहराया। हक के लिए आवाज बुलंद करना और इस्लामी शरीयत की हिफाजत के लिए अपना तन मन धन कुर्बान कर देना खानदान ए रसूल की खूबी है। कर्बला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन और आपके साथियों की शहादत इस बार इस हकीकत का सबूत है। महफ़िल का आगाज़ हाजी फैजुल्लाह,रिज्वानुद्दीन व गुलाम गौस आदि के नातख़्वानी से हुई। अंजुमन आशिकाने हुसैन कमेटी मलदेवा के सरपरस्त मुख्तार अंसारी अपने कार्यकर्ता सेराज अली, मु.सम्मी,

नौशाद अली, आमिर खान टिंकू, शौकत अली, मेराज, मु. हासिम के साथ जलसे के इंतजाम में लगे रहे। इस अवसर पर जामा मस्जिद के पेशिमाम हाफिज सईद अनवर, हाफिज तौहीद, मौ.कासिम, मौ.मंसूर, इस्लाहुल मुस्लेमीन कमेटी के सदर मु.शमीम अंसारी, सचिव फतेहमुहम्मद खान, केंद्रीय अखाड़ा कमेटी के सदर राफे खान, डॉ एजाजुल हुदा, मु.शाहिद सहित भारी संख्या में अकीदतमंद हजरात मौजूद थे।

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