नईदिल्ली।सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में व्यवस्था दी है कि ठेकेदार के साथ हुए अनुबंध पर काम कर रहे श्रमिकों को संस्थान का नियमित / प्रत्यक्ष कर्मचारी नहीं कहा जा सकता। चाहे ये कर्मचारी नियमित कर्मचारियों की तरह से काम कर रहे हों और उनके काम पर कंपनी का पूर्ण नियंत्रण हो। यह व्यवस्था देकर जस्टिस आरएफ नारीमन और विनीत शरण की पीठ ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया और भारत हैवी इलेक्ट्रीकल्स लिमिटेड (भेल), हरिद्वार में 64 अनुबंध कर्मचारियों को बहाल करने के फैसले को गैर न्यायोचित ठहराया।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 24 अप्रैल 2014 को दिए फैसले में कहा था कि ये श्रमिक कर्मचारी की विस्तारित परिभाषा में आएंगे और इन कर्मचरियों को सेवा में बहाल किया जाए। जस्टिस नारीमन की पीठ ने यह फैसला भेल की विशेष अनुमति याचिका पर दिया। निकाय का कहना था कि कर्मचारी उसके नियमित कर्मचारी नहीं हैं बल्कि अनुबंध पर लाए गए कर्मी हैं जो यूपी इंडस्ट्रीयल डिस्प्यूट एक्ट, 1947 की धारा 2 के तहत कर्मचारी की परिभाषा के दायरे में नहीं आते। पीठ ने यह तर्क स्वीकार कर लिया और कहा कि अनुबंध पर काम कर रहे कर्मचारियों पर भले ही कंपनी का नियंत्रण हो और उन्हें काम के लिए अंदर आने के वास्ते गेट पास जारी किए गए हों, लेकिन वे बाहरी ही हैं।
गेटपास से नियमित नहीं हो जाते:
पीठ ने कहा कि गेटपास होने से वे कंपनी के कर्मचारी नहीं हो जाते। यह गेट पास सुरक्षा और प्रशासनिक दृष्टिकोण से दिए जाते थे और यह भी ठेकेदार के आग्रह पर जारी किए थे। अन्यथा कोई भी कर्मचारी कंपनी में घुस जाएगा। गेट पास से कर्मचारियों का नियोक्ता के साथ कर्मचारी का रिश्ता नहीं बनता।
कंपनी सीधे नहीं देती वेतन:
पीठ ने कहा कि उनका वेतन भी भेल सीधे उन्हें नहीं देती बल्कि ठेकेदार को देती है जो 10 फीसदी कमीशन काटकर बाद में उन्हें वेतन वितरित करता है। उन्हें भेल की ओर से कोई नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया और ना ही उनके पास कोई पीएफ नंबर है। उनके पास कोई वेतन स्लिप भी नहीं है।
हाईकोर्ट का फैसला रद्द:
भेल ने इन अनुबंधित कर्मचारियों को 2004 में हटा दिया था। लेकिन लेबर कोर्ट ने 2009 में अवार्ड दिया और कहा कि इन कर्मचारियों को पिछला वेतन दिए बिना बहाल किया जाए। भेल इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट गई, लेकिन हाईकोर्ट ने भी लेबर कोर्ट के फैसले को सही माना और कर्मचारियों को बहाल करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को गैर न्यायोचित ठहराकर रद्द कर दिया। हिंदुस्तान लाइव के सौजन्य से।