दुद्धी।। विजयादशमी के दिन रावण का पुतला जलाकर उत्सव मनाया जाता है। माना जाता है कि आज के दिन ही भगवान राम ने रावण का वध किया था। विगत वर्ष के भाँति दुद्धी के खेल मैदान पर आज रामलीला कमेटी की ओर से रावण वध के लीला का आयोजन किया गया जिसमें रावण का 51 फिट का पुतला का दहन प्रभु श्री राम ने अपने तीर से किया। जिसके बाद माता सीता को लंका से मुक्त किया। लीला के दौरान नगर के मंदिरों व पंडालो में किये गए स्थापित दुर्गा मां की प्रतिमा मौजूद रही। जिसके बाद नगर के प्राचीन शिवा जी तालाब पर मूर्तियों का विसर्जन किया गया।
बुराई पर अच्छाई की जीत से लोगो ने एक दूसरे को बधाई दिया। आयोजन में मुख्य अतिथि विधायक हरिराम चेरो व विशिष्ट अतिथि चेयरमैन राजकुमार अग्रहरी ने क्षेत्र के लोगो को बधाई देते हुए कहा कि प्रभु श्रीराम की कृपा से ही दुनिया मे सब कुछ होता है। इस मौके पर उपजिलाधिकारी रामचंद्र यादव,अपर पुलिस अधीक्षक डॉ अवधेश सिंह,क्षेत्राधिकारी सुनील विश्नोई,कोतवाल विनोद यादव सहित रामलीला कमेटी के अध्यक्ष दिनेश आढ़ती,रविन्द्र जायसवाल महामंत्री आलोक अग्रहरी कमलेश कमल नित्यानंद मिश्रा पवन सिंह भोला आढ़ती सुरेंद्र अग्रहरी, सुरेंद्र गुप्ता,कन्हैया लाल अग्रहरी सहित हजारो लोग उपस्थित रहे।
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रामलीला में आपने पढ़ा मेघनाद कैसे मरा आज पढ़ेंगे रावण का वध करने में राम कैसे सफल हुए।मेघनाद के मारे जाने पर रावण स्वयं युद्ध करने रणक्षेत्र में आया। राम और रावण के बीच घमासान युद्ध होने लगा। भगवान राम रावण के सिर काट देते लेकिन तुरंत ही रावण के धड़ पर नया सिर आ जाता। राम इस माया को देखकर हैरान थे।
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रावण के वध का कोई उपाय न देखकर भगवान राम चिंता में पड़ गए। इस बीच रावण का छोटा भाई विभिषण आकर भगवान राम से कहने लगा कि हे रघुनंदन रावण महायोगी है। इसने अपने योग बल से प्राण को नाभि में स्थिर कर रखा है।आप अपने दिव्य बाण रावण की नाभि में मारिए। इससे आप रावण का वध करने में सफल होंगे। भगवान राम इस रहस्य को जानकर उत्साहित हो गए और नाभि की ओर निशाना साध कर बाण चला दिया। रावण तड़पकर भूमि पर गिर पड़ा, इस तरह भगवान राम रावण का वध करने में सफल हुए।
प्रभु राम ने लक्ष्मण से कहा रावण से शिक्षा सूत्र ले लो
श्रीराम-रावण के बीच भीषण युद्ध के दौरान अंततः रावण बुरी तरह घायल होकर धरती पर गिर गया। उसकी मौत को सन्निकट देख प्रभु राम ने लक्ष्मण से कहा कि प्रकांड विद्वान रावण से तुम कुछ शिक्षा सूत्र ले लो। अंतिम समय में दशानन ने तीन बातें कहीं। पहली कभी शुभ काम में देर मत करना। बड़ा कदम उठाने से पहले बड़ों की सलाह पर विश्वास करना। हे लक्ष्मण तीसरी बात क्रोध के साथ कोई निर्णय नहीं करना।
मैंने क्रोध के वशीभूत होकर अनुज विभीषण को लंका से निकाल दिया। उसने मेरे सारे भेद राम को बता दिए। जिसके चलते में मृत्यु को प्राप्त हुआ। अंत में हे राम मुझे क्षमा करना…। कहते हुए लंकापति रावण ने प्राण त्याग दिए।
यह उदाहरण ध्यान सागर महाराज ने व्यक्त किए। इसके पूर्व संत श्री ने सीता के विरह में भटक रहे श्रीराम ,लक्ष्मण उनके हनुमान से मिलन के साथ ही लक्ष्मण को शक्ति लगकर मूर्छित होने के प्रसंग की मार्मिक सजीव प्रस्तुति दी, तो श्रद्धालुओं की आंखें छलक आईं।
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